Thursday 4 September, 2008

रवीश, कुछ ज्यादा ही नहीं हो गई तारीफ!!

कल के हिंदुस्तान में संपादकीय पेज़ पर रवीश कुमार ने अपने कॉलम में मेरे ब्लॉग की चर्चा की। लिखा है, “डायरी के कई ऐसे पन्ने खुलते हैं जो पढ़ने के बाद बेचैन करते हैं, आशंकाओं के सामने खड़े कर देते हैं। जीडीपी के बहाने तरक्की की कहानी को वो अपने गांव के गजा-धर पंडित (जीडीपी) की कहानी से उल्टा टांग देते हैं। जीडीपी हमारे खर्च के अनुपात में बढ़ता है। इसे ट्रैफिक जाम में फंसे लोगों की मुसीबत से कोई मतलब नहीं होता। इसे मतलब होता है ट्रैफिक जाम के चलते हमने कितने का डीजल या पेट्रोल जला डाला। कैंसर का कोई मरीज बिना इलाज के मर जाए तो जीडीपी नहीं बढ़ेगा। तब बढ़ेगा जब मरीज महंगा इलाज करवाएगा। एक हिंदुस्तानी की डायरी ऐसे ही सवाल खड़े करती है। जो असहज हैं और जिन पर हंसी आती है क्योंकि लोग ऐसे सवालों पर हंसना सीख गए हैं। वो जानते हैं कि अगर गंभीर हुए तो एक हिंदुस्तानी की तरह वे भी बेचैन हो जाएंगे।”

रवीश कहते हैं कि यह एक गंभीर ब्लॉग है। सोच-समझ कर लिखा जा रहा है। उन मुद्दों के साथ खड़े होने के लिए लिखा जा रहा है जिनके बारे में कोई बात नहीं करता। इस ब्लॉग पर मुझे रेल बजट पर लालू प्रसाद के भाषण का विश्लेषण काफी पसंद आया है। हिंदुस्तानी ने अपने भाषण से अंग्रेजी और हिंदी अंग्रेजी शब्द युग्मों की अच्छी छानबीन की है। लाभांश पूर्व कैश सरप्लस, यात्रा समय को घटाकर थ्रुपुट बढ़ाना, थ्रुपुट संवर्धन, आइरन-ओर मूवमेंट के नए डेडीकेटेट रूट।

लालू के भाषण में यह बेमेल भाषा के लिहाज से नया प्रयोग हो सकता है, इसका अहसास कराते हैं अपने हिंदुस्तानी। लेकिन अगली पंक्ति में लालू की खिंचाई भी करते हैं। कहते हैं कि इसके अलावा लालू जी दस लाख टन को मिलिटन टन ही बोलते रहे। राजनेताओं को लगा कि लालू ने बेवकूफ बनाया है। अनिल रघुराज को लगा कि यह भाषा का नया लुक यानी लालू लुक है। जहां हिन्दी के खांटी शब्द, अंग्रेजी के तकनीकी शब्द ट्रैक बदलते हुए एक दूसरे से टकराते रहते हैं। एक हिन्दुस्तानी की डायरी भी ऐसी ही होनी चाहिए।

अब...क्या कहूं? तारीफ सुनना किसे अच्छा नहीं लगता। मैं भी रवीश के इस लेख को पढ़कर मुदित हो गया। हालांकि फॉन्ट की वजह से पढ़ने में काफी दिक्कत आयी। लेकिन हिंदी के समर्पित सिपाहियों की मेहनत से मुश्किल पलक झपकते ही आसान हो गई। एचटी चाणक्य को फौरन यूनिकोड में बदल डाला। इसी के चलते मैं रवीश के लेख के कुछ अंश यहां पेश कर पाया। अंत में, रवीश का शुक्रिया अदा करते हुए मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि चाहे एक लाइन ही सही, ब्लॉग की किसी कमी के बारे में तो लिख दिया होता। मैं तो रहींम की इस बात का कायल हूं कि निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय। चलिए मेरा मेल तो खुला ही है। रवीश, आप जब भी चाहें मेरे लिखे की जमकर खिंचाई कर सकते हैं। आलोचनाएं ज़रूरी हैं ताकि हम और ज्यादा सही और सटीक हो सकें, ताकि हमारे संप्रेषण की शैली और दायरा बढ़ता चला जाए।
फोटो सौजन्य: LightSpectral

15 comments:

प्रेमलता पांडे said...

'यह एक गंभीर ब्लॉग है। सोच-समझ कर लिखा जा रहा है।' sahmat hain ham bhI.

azdak said...

बीच-बीच में ऐसी लड़ि‍याहटें बुरी बात नहीं. अलबत्‍ता दूसरों को लग सकती हैं. मैं किसी दिन जल्‍दी ही ढंग से आपको खींचने, फींचने की सोच रहा हूं.

Anil Pusadkar said...

sahmat hun aapse

Nitish Raj said...

रवीश कुमार जी से सहमत हूं पर कई बार आप भटक भी जाते हैं और पंगे ले लेते हैं, फिर अपनी सही बात पर हार भी जल्दी ही मान जाते हैं।

Gyan Dutt Pandey said...

वास्तव में आपका लेखन बहुत स्तरीय है - यह अलग बात है कि वैचारिक मतभेद हो सकते हैं।

अनूप शुक्ल said...

मैंने यह अखबार देखा था। अच्छा लिखा है रवीशजी ने और सही ही लिखा है। शर्माते, लजाते हुये इसे ग्रहण किया जाये।

दिनेशराय द्विवेदी said...

रवीश जी ने गलत नहीं लिखा है। आप को बधाई और आप के इष्ट(इच्छित लक्ष्य) को प्रणाम।

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है । सस्नहे

राजेश कुमार said...

ब्लॉग अब एक ताकत के रूप में उभर रहा है। अखबारों के कॉलम में आपकी ब्लॉग की चर्चा हो रही है। बधाई । आपने रहीम को उल्लेखित किया है वो सही है लेकिन जबरदस्ती किसी की निंदा नहीं की जानी चाहिये। यदि आलोचना हो तो बेहतर। निंदा में सिर्फ नाकारात्मक बातें हीं सामने आती है और आलोचना में दोनों सकारात्मक और नकारात्मक।

महुवा said...

u dsrv more dn ds... :-)

नीरज गोस्वामी said...

रविश जी ने कुछ अधिक प्रशंशा नहीं की है जितनी करनी चाहिए उतनी ही की है...अब इस लेख पर इतना कुछ लिखना जायज है...
नीरज

Abhishek Ojha said...

तारीफ़ ज्यादा तो नहीं हुई.

हाँ मैं खुलकर कहूं तो आपकी अधिकतर पोस्ट पढने के बाद कई चीज़ें दिमाग में चलती हैं, पर टिपण्णी नहीं कर पाता कुछ ऐसा नहीं मिलता जो टिपिया जाऊँ. शायद ऐसे कई मुद्दों पर मेरा कम ज्ञान ही इसका कारण हो सकता है. कई बार असहमति भी होती है... पर बहुत कम.

ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं. बाकी रविशजी ने तो सब सच ही लिखा है.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

हमारी भी सहमति है भाई.
====================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

अजित वडनेरकर said...

सहमत हैं भई सहमत है।
रवीश जो लिखते हैं सो गंभीरता से । आप प्रमोद जी की बात पर ध्यान दें। शर्माते - लड़ियाते इस प्रसाद को ग्रहण करें और बांटें।
जै जै।

संजय बेंगाणी said...

कर दी तो कर दी, आप भी मौका देख कर उनकी देना. हिसाब बराबर.