नए साल में इस गुनाह से बचाना मेरे मौला
अभी-अभी एक मनोहारी धुन कानों में बजी। एक सुंदर एहसास मन के ऊपर से निकल गया। एक मुलायम-सी सुंदर अनुभूति लहराती हुई पास से गुजरी। किसी कोमल भाव का पंख पलकों की बरौनियों को सहलाता हुआ उड़ गया। रंग-बिरंगी तितलियां छोटी-बड़ी, खूबसूरत परिंदे छोटे-बड़े-मझोले। तेज़ी से तय-ताल में उड़ते झुंड के झुंड। चारो तरफ मंडराती लगातार बहती हुई रंग-बिरंगी छवियां जैसे रिमझिम फुहारों में उड़ते अनंत इंद्रधनुष। इस पल हैं, अगले पल फ्रेम से बाहर, दिल-दिमाग आंखों से ओझल। सेकंड भी नहीं लगे और उड़ गईं छवियां। जितनी देर में झुकी पलक ऊपर उठी, आंख खुली, बस इत्ते में ही छवियां-आकृतियां गायब हो गईं।
यहां-वहां, जहां-तहां, नीचे से ऊपर, दिग-दिगंत हर तरफ निहारा, ढूंढा। कहीं नहीं दिखतीं। बस, रह गए तो गालों और बालों पर लगे तितलियों के रंग, फूलों के पराग कण, कपड़ों से उलझे खूबसूरत परिंदों के इक्का-दुक्का पंख। सब अपने निशान छोड़कर चले गए। और, जो चला गया, वह कहां लौटकर आता है उसी रूप में? वक्त के साथ सारे के सारे झुंड उड़ गए। एक रिक्तता का एहसास पीछे छोड़कर। उन्हें दर्ज न करने के अपराध बोध की फांस में जकड़कर रह गए हम। लेकिन हे सुंदर छवियों, एहसास के उमड़ते बादलों! वादा रहा तुमसे कि जब कभी भी दोबारा लौटकर पास से गुजरोगे, तुम्हें दर्ज न करने की गलती दोबारा नहीं करेंगे हम। मेरे मालिक, मेरे मौला, मेरे परवरदिगार! तुझसे भी मेरी यही गुजारिश है कि नए साल में इस गुनाह से बचा लेना मुझे।
सोचता हूं क्या हूं मैं, क्या हो तुम, क्या हैं हम? खास दौर के अदने-से चश्मदीद! बहती धारा की एक बूंद! नहीं, शायद इससे कहीं ज्यादा, क्योंकि हम मनुष्य हैं। ऊपर से हालात ने हमें वह फुरसत बख्शी है कि हम गुजरते वक्त की नब्ज़ थाम सकते हैं। हालात ने हमें वह संवेदना दी है, ज्ञान हासिल करने का वह हौसला दिया है, अभिव्यक्ति का वो माध्यम दिया है जिसके दम पर हम अपने दौर की विसंगतियों की शिनाख्त कर सकते हैं, उनके बारे में सबको बता सकते हैं। हम दंतकथाओं वाले Pied Piper of Hamelin तो नहीं हैं, लेकिन इतना ज़रूर है कि तान लगाकर बैठ जाएं तो सुंदर अनुभूतियां, गहरे मनोभाव और अनकही कथाएं नीर-क्षीर विवेक के साथ झुंड की झुंड हमारे पीछे दौड़ी चली आती हैं।
हां, इतना ज़रूर है कि निश्छलता इसकी अपरिहार्य शर्त है। छल और कपट की मानसिकता वालों को सच के दीदार नहीं हो सकते। लेकिन यह छल और कपट सायास ही नहीं, अनायास भी होता है। जीवन स्थितियां इसका आधार बनती हैं। फिर, अतीत से मिले तमाम ऐसे विचार और धाराएं हैं, धारणाएं हैं जो हमारी दृष्टि को इतना धुंधला कर देती हैं कि कोई भी रीडिंग ग्लास, भले ही कितना भी ‘प्रोगेसिव’ क्यों न हो, हमारे काम नहीं आता। नए साल में मेरा संकल्प है कि ऐसे हर विचार से मैं लडूंगा जो मेरी नज़रों को धुंधला कर देते हैं।
हमें कमज़ोर बनानेवाले हर विचार की चिंदी-चिंदी बिखेरनी होगी नए साल में। तभी हम उस सच को सामने ला सकेंगे जो लोकतंत्र और राष्ट्र-विरोधी ताकतों को बेनकाब करेगा। एक सुंदर इंसान बनने और बनाने का संकल्प है मेरा, तुम्हारा, हमारा। एक सच्चे लोकतांत्रिक भारत का स्वप्न है हमारा। एक मजबूत राष्ट्र का सपना है हमारा। निष्छल, निष्कलुष इंसानों की बस्ती बनाना चाहते हैं हम, धवल आत्माओं की आकाशगंगा में विचरना चाहते हैं हम। अगर आप सब की दुआ रही तो हमारा यह संकल्प ज़रूर पूरा होगा, इस साल नहीं तो अगले साल, अगले साल नहीं तो उसके अगले साल।
ये सच है कि गुजरा वक्त कभी वापस नहीं आता। लेकिन वक्त की हर बूंद को निचोड़ने की चाहत और तैयारी हो तो उसका जाना कभी नहीं सालता। मैं तो आज, साल के आखिरी दिन 31 दिसंबर 2007 को खुद को यही ढांढस बंधा रहा हूं कि खोयी हुई छवियां कल फिर लौटकर आएंगी पहले से ज्यादा सघन रूप में। सुंदर मनोभाव लौटेंगे पूरे दल-बल के साथ। तितलियों और परिंदों के झुंड फिर गुजरेंगे अपनी छत से। नए साल में उन्हें बिना दर्ज किए ओझल हो जाने का मौका मैं नहीं दूंगा। अब अपने मोबाइल में तो कैमरा भी हैं और लिखने के लिए पड़ा है पूरा ब्लॉग।
साल 2008 प्रमाद से मुक्ति और सक्रियता का साल हो, यही मेरी ख्वाहिश है अपने लिए, आपके लिए। नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं...
यहां-वहां, जहां-तहां, नीचे से ऊपर, दिग-दिगंत हर तरफ निहारा, ढूंढा। कहीं नहीं दिखतीं। बस, रह गए तो गालों और बालों पर लगे तितलियों के रंग, फूलों के पराग कण, कपड़ों से उलझे खूबसूरत परिंदों के इक्का-दुक्का पंख। सब अपने निशान छोड़कर चले गए। और, जो चला गया, वह कहां लौटकर आता है उसी रूप में? वक्त के साथ सारे के सारे झुंड उड़ गए। एक रिक्तता का एहसास पीछे छोड़कर। उन्हें दर्ज न करने के अपराध बोध की फांस में जकड़कर रह गए हम। लेकिन हे सुंदर छवियों, एहसास के उमड़ते बादलों! वादा रहा तुमसे कि जब कभी भी दोबारा लौटकर पास से गुजरोगे, तुम्हें दर्ज न करने की गलती दोबारा नहीं करेंगे हम। मेरे मालिक, मेरे मौला, मेरे परवरदिगार! तुझसे भी मेरी यही गुजारिश है कि नए साल में इस गुनाह से बचा लेना मुझे।
सोचता हूं क्या हूं मैं, क्या हो तुम, क्या हैं हम? खास दौर के अदने-से चश्मदीद! बहती धारा की एक बूंद! नहीं, शायद इससे कहीं ज्यादा, क्योंकि हम मनुष्य हैं। ऊपर से हालात ने हमें वह फुरसत बख्शी है कि हम गुजरते वक्त की नब्ज़ थाम सकते हैं। हालात ने हमें वह संवेदना दी है, ज्ञान हासिल करने का वह हौसला दिया है, अभिव्यक्ति का वो माध्यम दिया है जिसके दम पर हम अपने दौर की विसंगतियों की शिनाख्त कर सकते हैं, उनके बारे में सबको बता सकते हैं। हम दंतकथाओं वाले Pied Piper of Hamelin तो नहीं हैं, लेकिन इतना ज़रूर है कि तान लगाकर बैठ जाएं तो सुंदर अनुभूतियां, गहरे मनोभाव और अनकही कथाएं नीर-क्षीर विवेक के साथ झुंड की झुंड हमारे पीछे दौड़ी चली आती हैं।
हां, इतना ज़रूर है कि निश्छलता इसकी अपरिहार्य शर्त है। छल और कपट की मानसिकता वालों को सच के दीदार नहीं हो सकते। लेकिन यह छल और कपट सायास ही नहीं, अनायास भी होता है। जीवन स्थितियां इसका आधार बनती हैं। फिर, अतीत से मिले तमाम ऐसे विचार और धाराएं हैं, धारणाएं हैं जो हमारी दृष्टि को इतना धुंधला कर देती हैं कि कोई भी रीडिंग ग्लास, भले ही कितना भी ‘प्रोगेसिव’ क्यों न हो, हमारे काम नहीं आता। नए साल में मेरा संकल्प है कि ऐसे हर विचार से मैं लडूंगा जो मेरी नज़रों को धुंधला कर देते हैं।
हमें कमज़ोर बनानेवाले हर विचार की चिंदी-चिंदी बिखेरनी होगी नए साल में। तभी हम उस सच को सामने ला सकेंगे जो लोकतंत्र और राष्ट्र-विरोधी ताकतों को बेनकाब करेगा। एक सुंदर इंसान बनने और बनाने का संकल्प है मेरा, तुम्हारा, हमारा। एक सच्चे लोकतांत्रिक भारत का स्वप्न है हमारा। एक मजबूत राष्ट्र का सपना है हमारा। निष्छल, निष्कलुष इंसानों की बस्ती बनाना चाहते हैं हम, धवल आत्माओं की आकाशगंगा में विचरना चाहते हैं हम। अगर आप सब की दुआ रही तो हमारा यह संकल्प ज़रूर पूरा होगा, इस साल नहीं तो अगले साल, अगले साल नहीं तो उसके अगले साल।
ये सच है कि गुजरा वक्त कभी वापस नहीं आता। लेकिन वक्त की हर बूंद को निचोड़ने की चाहत और तैयारी हो तो उसका जाना कभी नहीं सालता। मैं तो आज, साल के आखिरी दिन 31 दिसंबर 2007 को खुद को यही ढांढस बंधा रहा हूं कि खोयी हुई छवियां कल फिर लौटकर आएंगी पहले से ज्यादा सघन रूप में। सुंदर मनोभाव लौटेंगे पूरे दल-बल के साथ। तितलियों और परिंदों के झुंड फिर गुजरेंगे अपनी छत से। नए साल में उन्हें बिना दर्ज किए ओझल हो जाने का मौका मैं नहीं दूंगा। अब अपने मोबाइल में तो कैमरा भी हैं और लिखने के लिए पड़ा है पूरा ब्लॉग।
साल 2008 प्रमाद से मुक्ति और सक्रियता का साल हो, यही मेरी ख्वाहिश है अपने लिए, आपके लिए। नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएं...
Comments
इंतजार रहेगा आपके मोबाईल कैमरे और आपके विचारों का।
शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया। आपकी ख्वाहिशें पूरी हो!
माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं,
तू मेरा शौक़ देख, इन्तजार देख...
मंगलमय हो नया साल.
शब्दों और भावों का अद्भुत संसार रचा है आपने. भाई वाह. इश्वर नूतन वर्ष में आप वो सब कुछ दे जिसकी आप चाह करें .
नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ.
नीरज
निश्छलता अनिवार्य है - जरूर। कमजोरी का बहिष्कार हो। पर प्रचण्ड (लोकतांत्रिक ही सही) राष्ट्रवाद? यह नहीं जमा हमें। विश्व तक पंख पसारिये।
बहुत सुंदर।
नया वर्ष आप सब के लिए शुभ और मंगलमय हो।
महावीर शर्मा
आपकी हर चाह में मेरी चाह की झलक है। ये सब पूरी हों।
नववर्ष पर मेरी तरफ से भी हार्दिक शुभकामनाएं