भारत ग्लोबल हो रहा है तो अमेरिका लोकल
भारतीय मध्यवर्ग पर ग्लोबलाइजेशन का रंग चढ़ता जा रहा है। आज 89 फीसदी भारतीय विदेशी व्यापार का समर्थन करते हैं, जबकि अमेरिका के 59 फीसदी लोग ही मानते हैं कि विदेशी व्यापार के जारी रहने में उनकी भलाई है। और, यह अंतर पिछले पांच सालों में आया है। साल 2002 में 78 फीसदी अमेरिकी मानते थे कि विदेशी व्यापार का उनके जीवन पर सकारात्मक असर पड़ रहा है। लेकिन पांच साल बाद 19 फीसदी अमेरिकी इस राय से पीछे हट चुके हैं।
यह नतीजा है प्यू ग्लोबल एटीट्यूड्स प्रोजेक्ट के तहत किए गए ताजा सर्वे का। इसके तहत दुनिया के 47 देशों में 45,000 से ज्यादा लोगों से बात की गई। सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में तेज़ी से बढ़ रही विदेशी अर्थव्यवस्थाओं का भय छाने लगा है। अमेरिकियों को खास डर चीन की बढते विदेशी व्यापार से लगने लगा है। वैसे, इसका ठोस आधार भी है क्योंकि अमेरिकी बाज़ार इस समय चीन में बने सामानों से भरे पड़े हैं।
विदेश व्यापार से चीन को फायदा हो रहा है तो चीन के 91 फीसदी लोग इसे जारी रखने के पक्ष में हैं। लेकिन देश के भीतर सक्रिय बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लेकर चीन के लोग ज्यादा सकारात्मक रुख नहीं रखते। जहां, चीन के 64 फीसदी लोग मानते हैं कि विदेशी कंपनियां उनके देश की मदद कर रही हैं, वहीं भारत के 73 फीसदी लोगों की राय है कि विदेशी कंपनियां देश की मदद कर रही हैं। अमेरिका के केवल 45 फीसदी लोग मानते हैं कि विदेशी कंपनियां उनके देश का भला कर सकती हैं। स्वतंत्र बाज़ार की बात करें तो 70 फीसदी अमेरिकी इसके पक्ष में हैं, जबकि भारत और चीन के तीन-चौथाई लोग मानते हैं कि बाज़ार पर कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
ग्लोबल एटीट्यूड्स इस सर्वे को आम भारतीयों की राय के बतौर पेश किया है। लेकिन साफ-सी बात है कि उसकी टीम की पहुंच ग्रामीण इलाकों में बसनेवाले करीब 70 करोड़ लोगों तक नहीं हो पाई होगी। इसलिए हम इतना भर मान सकते हैं कि भारतीय मध्यवर्ग ग्लोबलाइजेशन, विदेशी कंपनियों और बाज़ार में मोह में कसता जा रहा है। लेकिन सर्वे से यह भी पता चला है कि इसमें से 84 फीसदी लोग मानते हैं कि बाहरी लोगों को देश में नहीं आने देना चाहिए क्योंकि इससे हमारी संस्कृति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
यह नतीजा है प्यू ग्लोबल एटीट्यूड्स प्रोजेक्ट के तहत किए गए ताजा सर्वे का। इसके तहत दुनिया के 47 देशों में 45,000 से ज्यादा लोगों से बात की गई। सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में तेज़ी से बढ़ रही विदेशी अर्थव्यवस्थाओं का भय छाने लगा है। अमेरिकियों को खास डर चीन की बढते विदेशी व्यापार से लगने लगा है। वैसे, इसका ठोस आधार भी है क्योंकि अमेरिकी बाज़ार इस समय चीन में बने सामानों से भरे पड़े हैं।
विदेश व्यापार से चीन को फायदा हो रहा है तो चीन के 91 फीसदी लोग इसे जारी रखने के पक्ष में हैं। लेकिन देश के भीतर सक्रिय बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लेकर चीन के लोग ज्यादा सकारात्मक रुख नहीं रखते। जहां, चीन के 64 फीसदी लोग मानते हैं कि विदेशी कंपनियां उनके देश की मदद कर रही हैं, वहीं भारत के 73 फीसदी लोगों की राय है कि विदेशी कंपनियां देश की मदद कर रही हैं। अमेरिका के केवल 45 फीसदी लोग मानते हैं कि विदेशी कंपनियां उनके देश का भला कर सकती हैं। स्वतंत्र बाज़ार की बात करें तो 70 फीसदी अमेरिकी इसके पक्ष में हैं, जबकि भारत और चीन के तीन-चौथाई लोग मानते हैं कि बाज़ार पर कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
ग्लोबल एटीट्यूड्स इस सर्वे को आम भारतीयों की राय के बतौर पेश किया है। लेकिन साफ-सी बात है कि उसकी टीम की पहुंच ग्रामीण इलाकों में बसनेवाले करीब 70 करोड़ लोगों तक नहीं हो पाई होगी। इसलिए हम इतना भर मान सकते हैं कि भारतीय मध्यवर्ग ग्लोबलाइजेशन, विदेशी कंपनियों और बाज़ार में मोह में कसता जा रहा है। लेकिन सर्वे से यह भी पता चला है कि इसमें से 84 फीसदी लोग मानते हैं कि बाहरी लोगों को देश में नहीं आने देना चाहिए क्योंकि इससे हमारी संस्कृति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
Comments
अमेरिका की तुलना इस महान मनु के देश से
उनका तो प्राचिन नवीन सब इतिहास यहाँ के किसी शहर के इतिहास से भी कम होगा....
अब हमारी बारी है, उनसे कहिये कि जगह खाली करें