Saturday 27 October, 2007

ज़िंदगी ने एक दिन कहा...

एक बहुत प्यारा-सा गीत पेश है जो हम लोग 20-22 साल पहले गली-मोहल्लों, चौराहों और गांवों में गाया करते थे। नाटक की एक मंडली थी हमारी, जिसका नाम था दस्ता नाट्य मंच। इसमें विमल और प्रमोद भी शामिल थे। आज यूं ही याद आ गया तो विमल से मदद ली और इसे आप सभी के लिए पेश कर रहा हूं। जो लाइनें याद नहीं आईं, उन्हें अपनी समझ से रफू कर दिया है। जिसको याद हो, वे इसे सही कर सकते हैं। इस गीत को शायद गोरखपुर के शशिप्रकाश ने लिखा था। शशिप्रकाश कहां हैं, कैसे हैं, क्या कर रहे हैं नहीं पता।

ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम हँसो, तुम हँसो, तुम हँसो
तुम हँसो कि बंधनों के बंध सब बिखर उठें
तुम हँसो कि जिंदगी चहक उठे, महक उठे
तुम हँसो कि खिलखिला पड़े दिशा-गगन
और फिर प्यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते

ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम उठो, तुम उठो, तुम उठो
तुम उठो कि उठ पड़ें असंख्य हाथ
चल पड़ो कि चल पड़ें असंख्य पैर साथ
मुस्करा उठे क्षितिज पर भोर की किरण
और फिर प्यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते

जिंदगी ने एक दिन कहा कि तुम उड़ो, तुम उड़ो, तुम उड़ो
तुम उड़ो कि चहचहा उठें हवा के परिंदे
तुम उड़ो कि आसमान चूम ले ज़मीन को
तुम उड़ो कि ख्बाव-ख्बाव सच बनें
और फिर प्यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते

ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम जलो, तुम जलो, तुम जलो
तुम जलो कि रोशनी के पंख फड़फड़ा उठें
कुचल दिये गए दिलों के तार झनझना उठें
सुसुप्त आत्मा कहीं गरज उठे
और फिर प्यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते

ज़िदगी ने एक दिन कहा कि तुम रचो, तुम रचो, तुम रचो
तुम रचो हवा पहाड़ रोशनी नई
जिंदगी नई महान आत्मा नई
सांस सांस भर उठे अमर सुंगध से
और फिर प्यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते

ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम हँसो
ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम उठो
ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम उड़ो
ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम जलो
ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम रचो....

7 comments:

सचिन श्रीवास्तव said...

अनिल भाई,
बहुत खूब जी. जिंदगी काश ऐसी निर्दोष इच्छाओं को सुन लिया करे.
और हां मसला कम या ज्यादा का नहीं संगत का भी है. लगता है मुझे जल्दी समझदार लोगों की संगत मिल गई. आप, प्रणय जी और प्रमोद जी जैसे लोगों की संगत मिलने का लाभ तो मिलेगा ही. और फिर प्रिंट की पत्रकारिता में तो छह लाईन में खबर खत्म करना ही सीखा है. लेकिन आप पूरा ही लिखिये जब तक आपका लंबे पैरे नहीं पडते तब तक लगता ही नहीं यह एक हिंदुस्तानी की डायरी है फिर तो लगता है कोई हाइकू कहा है जो शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया.
शुभरात्रि फिर आउंगा

अजित वडनेरकर said...

बहुत बढ़िया चीज़ लाए अनिलजी, मज़ा आ गया । हमने इसे सहेज लिया है। शुक्रिया...

काकेश said...

जीवन है क्या
मतिभ्रम जैसा
ना जानूँ मैं
ना कोई जाने
बदल जायेगा
एक पल में वो
जो है अच्छा
और बुरा जो
मत चिंता कर
बस तू जी ले
जो है जीवन
मधुरस सम तू
उसको पी ले
थोड़ा जी ले

Manish Kumar said...

इस सुंदर गीत को यहाँ पेश करने का शुक्रिया !

Anonymous said...

वाह अनिल जी इस बार का आपका पोस्ट वाकइ बहुत अच्छा है। पढते हुए बार-बार वह समय याद आ रहा था जब हम भी इसी तरह सक्रीय हुआ करते थे।

Yunus Khan said...

वाह । क्‍या कहें बस हमें सफदर हाशमी के परचम गीत याद हो आए । जो सहमत के बैनर पर कैसेट पर रिलीज़ किए गये थे । कब से खोज रहे हैं कमबख्‍त मिलते ही नहीं ।

Anita kumar said...

वाह अनिल जी बहुत ही ओजपूर्ण गीत है।