बिजली गुल पड़ी है भारत निर्माण की
पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐलान किया। फिर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने साल 2005-06 के बजट में डुगडुगी बजाकर मुनादी कर दी कि भारत निर्माण कार्यक्रम के तहत मार्च 2009 तक देश के बचे हुए सवा लाख गांवों तक बिजली पहुंचा दी जाएगी और 2.3 करोड़ घरों को रौशनी से जगमग कर दिया जाएगा। लेकिन सरकार की मंशा इसी बात से साबित हो जाती है कि 16,000 करोड़ रुपए की लागत वाली इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए इस साल अप्रैल के बाद से कोई फंड जारी नहीं किया गया है।
मार्च 2007 तक की प्रगति के बारे में चिदंबरम ने यही बताया था कि 20,124 गांवों तक बिजली पहुंचा दी गई है। साफ है कि योजना के लिए मुकर्रर आधी अवधि में उसका आधा तो छोड़िए, एक-चौथाई लक्ष्य भी पूरा नहीं किया गया है। पहले दो सालों के लिए 5000 करोड़ रुपए का बजट का था। कितना खर्च हुआ, इसके बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। उसके बाद तो राजीव गांधी के नाम पर बनी इस ग्रामीण विद्युतीकरण योजना पर अमल फंड के अलावा ‘ठेकेदारों और उपकरणों के अभाव’ के चलते रुका पड़ा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस देरी के चलते योजना की लागत बढ़कर 50,000 करोड़ रुपए हो गई है। एक तो नए फंड का जारी न किया जाना, ऊपर से अनुमानित लागत का तीन गुना से भी ज्यादा हो जाना। ऐसे में अगर सरकार अब बिजली की रफ्तार से भी काम करे (जो कि मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है) तब भी मार्च 2009 तक सवा लाख गांवों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता। आपको बता दें कि गांवों तक बिजली पहुंचाने की योजना को सार्वजनिक क्षेत्र के निगम आरईसी (Rural Electrification Corporation) के जरिए लागू किया जा रहा है और इसकी पूंजी लागत का 90 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार को देना है।
जानकारों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार इस योजना के लिए फौरन ज़रूरी रकम मुहैया करा दे, तब भी नई परियोजना को शुरू करने में ही कम से कम चार महीने लगते हैं। इसलिए इस सरकार के कार्यकाल में सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने की उम्मीद तो छोड़ ही दी जानी चाहिए। वैसे बताते हैं कि मीडिया में हल्ला मचने के बाद सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) के तहत इस मद में अब 28,000 करोड़ रुपए जारी कर दिए हैं।
हमारी सरकार बिजली को लेकर कितनी संजीदा है, इसका और उदाहरण है बिजली के वितरण और आवाजाही में होनेवाले नुकसान को रोकने के लिए बना त्वरित विद्युत विकास सुधार कार्यक्रम (एपीडीआरपी), जिसके लिए इस वित्त वर्ष में एक धेला भी जारी नहीं किया गया है। मतलब साफ है, देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाना महज एक नारे के सिवाय और कुछ नहीं है। यह एक मदारी की डुगडुगी थी जो मजमा जुटाकर गायब हो चुका है।
वैसे भी यकीन नहीं आता कि देश के कुल 6,38,365 गांवों में से केवल 1.25 लाख गांवों तक ही बिजली नहीं पहुंची है। फिर अगर इसे सच भी मान लें तो जहां तक बिजली पहुंची है, उन गांवों का क्या हाल है, आप जानते ही होंगे। गांवों में ज्यादा से ज्यादा दो-चार घंटे ही बिजली रहती है। ऊपर से हमारे प्रधानमंत्री कह ही चुके हैं कि हमारे किसान मुफ्त बिजली का दुरुपयोग कर रहे हैं क्योंकि वो ट्यूबवेल चलाकर बेवजह धरती के भीतर का पानी निकाल रहे हैं, जिससे हमारा पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
मार्च 2007 तक की प्रगति के बारे में चिदंबरम ने यही बताया था कि 20,124 गांवों तक बिजली पहुंचा दी गई है। साफ है कि योजना के लिए मुकर्रर आधी अवधि में उसका आधा तो छोड़िए, एक-चौथाई लक्ष्य भी पूरा नहीं किया गया है। पहले दो सालों के लिए 5000 करोड़ रुपए का बजट का था। कितना खर्च हुआ, इसके बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। उसके बाद तो राजीव गांधी के नाम पर बनी इस ग्रामीण विद्युतीकरण योजना पर अमल फंड के अलावा ‘ठेकेदारों और उपकरणों के अभाव’ के चलते रुका पड़ा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस देरी के चलते योजना की लागत बढ़कर 50,000 करोड़ रुपए हो गई है। एक तो नए फंड का जारी न किया जाना, ऊपर से अनुमानित लागत का तीन गुना से भी ज्यादा हो जाना। ऐसे में अगर सरकार अब बिजली की रफ्तार से भी काम करे (जो कि मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है) तब भी मार्च 2009 तक सवा लाख गांवों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता। आपको बता दें कि गांवों तक बिजली पहुंचाने की योजना को सार्वजनिक क्षेत्र के निगम आरईसी (Rural Electrification Corporation) के जरिए लागू किया जा रहा है और इसकी पूंजी लागत का 90 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार को देना है।
जानकारों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार इस योजना के लिए फौरन ज़रूरी रकम मुहैया करा दे, तब भी नई परियोजना को शुरू करने में ही कम से कम चार महीने लगते हैं। इसलिए इस सरकार के कार्यकाल में सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने की उम्मीद तो छोड़ ही दी जानी चाहिए। वैसे बताते हैं कि मीडिया में हल्ला मचने के बाद सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) के तहत इस मद में अब 28,000 करोड़ रुपए जारी कर दिए हैं।
हमारी सरकार बिजली को लेकर कितनी संजीदा है, इसका और उदाहरण है बिजली के वितरण और आवाजाही में होनेवाले नुकसान को रोकने के लिए बना त्वरित विद्युत विकास सुधार कार्यक्रम (एपीडीआरपी), जिसके लिए इस वित्त वर्ष में एक धेला भी जारी नहीं किया गया है। मतलब साफ है, देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाना महज एक नारे के सिवाय और कुछ नहीं है। यह एक मदारी की डुगडुगी थी जो मजमा जुटाकर गायब हो चुका है।
वैसे भी यकीन नहीं आता कि देश के कुल 6,38,365 गांवों में से केवल 1.25 लाख गांवों तक ही बिजली नहीं पहुंची है। फिर अगर इसे सच भी मान लें तो जहां तक बिजली पहुंची है, उन गांवों का क्या हाल है, आप जानते ही होंगे। गांवों में ज्यादा से ज्यादा दो-चार घंटे ही बिजली रहती है। ऊपर से हमारे प्रधानमंत्री कह ही चुके हैं कि हमारे किसान मुफ्त बिजली का दुरुपयोग कर रहे हैं क्योंकि वो ट्यूबवेल चलाकर बेवजह धरती के भीतर का पानी निकाल रहे हैं, जिससे हमारा पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
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उम्मीद है देश के विकास की ज़िम्मेदारी उठाने वाला हर व्यक्ति इस बात को हमसे बेहतर जानता होगा!
आगे हम सब उम्मीद रखें ।