Tuesday 16 October, 2007

नमोनम: सौ मूस खाइकै बिलारि भईं भगतिन

अवधी की इस कहावत का मर्म समझने के लिए कहीं पीछे जाने की ज़रूरत नहीं है। नमो-नमो जपिए और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेद्र मोदी का वह ताज़ा बयान याद कर लीजिए जिसमें उन्होंने कहा था कि वे सांप्रदायिक नहीं हैं। वे सबको साथ लेकर चलने की राजनीति में यकीन रखते हैं। वे अल्पसंख्यकवाद के साथ ही बहुसंख्यकवाद के भी खिलाफ हैं और गुजरात विधानसभा के आनेवाले चुनाव में अपने सु-शासन का रिकॉर्ड चलाएंगे, न कि कट्टर हिंदुत्व का कॉर्ड। उनका दावा है कि जहां देश के तमाम नेता जाति और धर्म की भाषा बोलते हैं, वहां वे इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपने राज्य के साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों की भाषा बोलते हैं।

दो महीने बाद होनेवाले चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी गुजरात शाइनिंग का एजेंडा लेकर उतर पड़े हैं। हालांकि इंडिया शाइनिंग की दुर्गति याद करके उन्होंने शाइनिंग शब्द से परहेज किया है। लेकिन उनकी बात का सार वही है। 45 मिनट की पूरी डॉक्यूमेंट्री उन्होंने जारी कर दी है जिसमें गुजरात के चमत्कार के दम पर कल के भारत को हासिल करने का नारा दिया गया है। एक तरफ निशाने पर पश्चिम बंगाल है जहां तीस सालों से वामपंथियों की सरकार है, तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र भी निशाने पर है जो कांग्रेसी शासन में औद्योगिक निवेश के मामले में गुजरात से पिछड़ गया है। इससे पहले मोदी सरकार अपने प्रचार के लिए वंदे गुजरात समेत अलग-अलग मुद्दों पर तीन और सीडी जारी कर चुकी है, जिसे दिखाना राज्य के सभी केबल ऑपरेटरों के लिए अनिवार्य है।

मोदी नहीं चाहते कि कोई उन्हें ऐसे नेता के रूप में याद करे, जिसके दामन पर गोधरा के बाद हुए दंगों में मारे गए हज़ारो बेगुनाहों के खून के दाग लगे हों। वो कह रहे हैं कि उनके लिए महात्मा गांधी के आदर्श और रामराज्य की अवधारणा दोनों ही बेहद प्रासंगिक हैं। मोदी जी को याद ही होगा कि बीजेपी भी एक समय गांधीवादी समाजवाद और एकात्म मानवतावाद की खिचड़ी पका चुकी है। इसका हश्र भी उन्हें याद होगा। फिर भी प्रयोग करना चाहते हैं तो उन्हें कौन रोक सकता है!

एक तरफ मुर्दे मोदी की निर्ममता की गवाही दे रहे हैं तो दूसरी तरफ निर्जीव आंकड़े मोदी की कामयाबी का प्रमाण पेश कर रहे हैं। जहां गुजरात सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर के मामले में राष्ट्रीय दर से आगे बढ़ चुका है, वहीं निवेश के मामले में वह महाराष्ट्र को दूसरे नंबर पर धकेल चुका है। कंपनियां अपनी बैठकें करने के लिए गुजरात की तरफ दौड़ रही हैं क्योंकि शराब पीने-पिलाने पर वहां अच्छा खासा इनसेंटिव है। ऊपर से मुख्यमंत्री ने आदिवासियों से लेकर, मछुआरों, महिलाओं, सरकारी कर्मचारियों के लिए चुन-चुनकर स्कीमें पेश की हैं। नवरात्रि के मौसम पर गरबा नाचनेवालों तक पर विशेष कृपा की गई है।

नरेंद्र मोदी ने अपने राजनीतिक विरोधियों को पैदल करने की हरचंद कोशिश की है। ग्रामीण इलाकों में भले ही पटेल समुदाय नाराज़ हो, लेकिन बताते हैं कि शहरी मध्यवर्ग में शामिल पटेल लोग मोदी का गुणगान कर रहे हैं। मोदी को अपने चमत्कार पर यकीन है। लेकिन कांग्रेस ने भी ‘जनमित्र’ जैसे कुछ प्रयोग किए हैं। ऊपर से उसे लगता है कि असंतुष्टों की वजह से बीजेपी के वोट बंट जाएंगे, जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। देखिए, दिसंबर में क्या होता है? लेकिन इतना तो तय है कि मोदी ने गुजरात को एक प्रयोगशाला बना दिया है, जहां फैसला होना है कि राजनीतिक अवसरवाद विकास की ‘शाइनिंग’ को किस हद तक वोटों में भुना सकता है।

1 comment:

chavannichap said...

आपकी सक्रियता अभिभूत करती है और प्रेरणा देती है.