राजनीति के दल्ले कहीं के!
संसदीय राजनीति हो या मकान की खरीद, शेयर बाज़ार या किसी चीज़ की मंडी,
दलाल, ब्रोकर या बिचौलिए लोगों की भावनाओं को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।
राजनीति में सेवा-भाव ही प्रधान होना चाहिए था। लेकिन यहां भी भावनाओं के ताप पर पार्टी
या व्यक्तिगत स्वार्थ की रोटियां सेंकी जाती हैं। इसीलिए इसमें वैसे ही लोग सफल भी
होते हैं। जैसे, भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह पेशे व योग्यता से शेयर ब्रोकर हैं।
पूर्णकालिक राजनीति में उतरने से पहले वे पीवीसी पाइप का धंधा करते थे। मनसा
(गुजरात) में उनका करोड़ों का पैतृक निवास और घनघोर संपत्ति है। मां-बाप बहुत सारी
ब्लूचिप कंपनियों के शेयर उनके लिए छोड़कर गए हैं।
भावनाओं से खेलने में अमित शाह उस्ताद हैं। अयोध्या में राम मंदिर की
शिलाएं भेजने में वे सबसे आगे रहे हैं। 2002 में गोधरा से कारसेवकों के शव वे ही अहमदाबाद
लेकर आए थे। सोमनाथ मंदिर के वे ट्रस्टी हैं। बताते हैं कि उनके बहुत सारे मुस्लिम
मित्र हैं। अहमदाबाद के सबसे खास-म-खास मुल्ला तो उनके अभिन्न पारिवारिक मित्र
हैं। उनके साथ वे शाकाहारी भोजन करते रहते हैं, लेकिन इस बाबत वे सार्वजनिक तौर पर
बात नहीं करते।
कांग्रेस तो ऊपर से नीचे तक दलालों की ही पार्टी हैं। भाजपा, कांग्रेस, सपा
व बसपा जैसी तमाम पार्टियों के नेतागण समझते हैं कि भारतीय अवाम को भावनाओं और चंद
टुकड़ों के दम पर नचाया जा सकता है। चर्चा है कि जब प्रधानमंत्री मोदी से कुछ
लोगों ने कहा कि आपकी छवि इधर खराब होती जा रही है तो उनका कहना था कि आखिरी दो
साल (2017 से 2019) में सब संभाल लेंगे और उनकी यह रणनीति गुजरात में सफल होती रही
है। लेकिन इन तमाम नेताओं को जनता की तरफ से रोहित बेमुला की मां राधिका ने बहुत
सही जवाब दिया है।
सरकार की तरफ से दिए जा रहे 8 लाख रुपए को ठुकराते हुए इस 49 साल की
स्वाभिमानी महिला ने कहा, “हमें तुम्हारे पैसे नहीं
चाहिए। आठ लाख क्या, तुम आठ करोड़ रुपए भी दोंगे तो हमें नहीं चाहिए। मुझे बस इतना
बता दो कि मेरा बेटा क्यों मरा?”
राधिका वेमुला का यह भी कहना था, “जब निर्भया नाम की लड़की से नृशंस बलात्कार व
हत्या हुई, तब क्या किसी ने उसकी जाति पूछी थी? फिर रोहित की जाति पर क्यों सवाल उठाए जा
रहे हैं?” मालूम हो कि रोहित की
जाति पर पहला सवाल मोदी सरकार की चहेती मंत्री व अभिनेत्री स्मृति ईरानी ने
बाकायदा प्रेस कॉन्फरेंस करके उठाया था। मोदी ने रोहित को ‘मां भारती का लाल’ कह कर जनभावना का दोहन
करने की कोशिश की है। लेकिन हमें भी राधिका बेमुला की तरह आगे बढ़कर जवाब देना
चाहिए – भावनाओं की दुकान कहीं और जाकर खेलो, अब हम तुम्हारे झांसे में आनेवाले
नहीं हैं।
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