भारत-निर्माण : सड़कों पर मचा झूठा कमाल
वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 28 फरवरी 2005 को भारत-निर्माण कार्यक्रम की घोषणा करते हुए कहा था कि मार्च 2009 तक देश में एक हज़ार आबादी (पहाड़ी और आदिवासी इलाकों में 500 आबादी) तक के सभी गांवों को पक्की सड़क से जोड़ दिया जाएगा। चार सालों में 66,802 गावों को जोड़ने के लिए कुल 1.46 लाख किलोमीटर नई सड़कें बनाने का लक्ष्य रखा गया था। इसके लिए रकम तय की गई थी 48,000 करोड़ रुपए। और, आज ही जारी ग्रामीण विकास मंत्रालय के पूरे पेज के विज्ञापन के दावों को सही मानें तो इस मामले में सरकार का काम एकदम चकाचक चल रहा है।
इस विज्ञापन में दावा किया गया है कि 68,752 गांवों को जोड़नेवाली 2.32 लाख किलोमीटर लंबी सड़कों के लिए 47,510 करोड़ रुपए मंजूर किए जा चुके हैं। और जून 2007 के अंत तक 40,633 गांवों को जोड़नेवाली 1.32 लाख किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई जा चुकी हैं। साथ ही 28,000 गांवों को जोड़नेवाली एक लाख किलोमीटर से ज्यादा लंबी सड़कों पर काम चल रहा है। मैं अचंभे में पड़ गया और मेरे मुंह से निकला – वाह क्या बात है, सड़कों पर काम तो बेहद तेज़ रफ्तार से चल रहा है!!
लेकिन इन दावों में भारत-निर्माण कार्यक्रम का नाम गायब था तो मेरा माथा ठनका। मैंने इससे जुड़ी साइट पर जाकर देखा तो मेरे सारे उत्साह पर पानी फिर गया। पता चला कि अप्रैल 2005 से अगस्त 2007 तक केवल 16,397 गांवों को सड़कों से जोड़ा जा सका है और इस दौरान 47,716 किलोमीटर ही लंबी नई सड़कों का निर्माण हुआ है। यानी करीब ढाई साल में भारत निर्माण के लक्ष्य का एक चौथाई हिस्सा ही पूरा हो सका है। इसलिए बाकी डेढ़ साल में इस लक्ष्य के पूरा होने का सवाल ही नहीं उठता।
सवाल यह भी उठता है कि अगर भारत-निर्माण कार्यक्रम में ग्रामीण सड़कों को बनाने में यह प्रगति हुई है तो प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बाकी सड़कें कहां से बन गईं? वाकई विज्ञापनों से झूठ फैलाने में सरकार ने निजी क्षेत्र को भी पीछे छोड़ दिया है। वैसे, खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस योजना पर अमल में भ्रष्टाचार को बड़ी बाधा बता चुके हैं। उन्होंने मई में एक समारोह में कहा था, “सड़कों की खराब हालत की एक बड़ी वजह भ्रष्टाचार है। सड़क निर्माण परियोजना में भ्रष्टाचार कैंसर की तरह देश के कोने-कोने तक पहुंच चुका है।”
अंत में बस एक तथ्य देना चाहूंगा। ग्रामीण सड़कों के लिए जहां केंद्र सरकार ने भारत-निर्माण के तहत 48,000 करोड़ रुपए के निवेश का प्रावधान रखा है, वहीं नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट के लिए निर्धारित रकम 2.2 लाख करोड़ रुपए की है।
इस विज्ञापन में दावा किया गया है कि 68,752 गांवों को जोड़नेवाली 2.32 लाख किलोमीटर लंबी सड़कों के लिए 47,510 करोड़ रुपए मंजूर किए जा चुके हैं। और जून 2007 के अंत तक 40,633 गांवों को जोड़नेवाली 1.32 लाख किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई जा चुकी हैं। साथ ही 28,000 गांवों को जोड़नेवाली एक लाख किलोमीटर से ज्यादा लंबी सड़कों पर काम चल रहा है। मैं अचंभे में पड़ गया और मेरे मुंह से निकला – वाह क्या बात है, सड़कों पर काम तो बेहद तेज़ रफ्तार से चल रहा है!!
लेकिन इन दावों में भारत-निर्माण कार्यक्रम का नाम गायब था तो मेरा माथा ठनका। मैंने इससे जुड़ी साइट पर जाकर देखा तो मेरे सारे उत्साह पर पानी फिर गया। पता चला कि अप्रैल 2005 से अगस्त 2007 तक केवल 16,397 गांवों को सड़कों से जोड़ा जा सका है और इस दौरान 47,716 किलोमीटर ही लंबी नई सड़कों का निर्माण हुआ है। यानी करीब ढाई साल में भारत निर्माण के लक्ष्य का एक चौथाई हिस्सा ही पूरा हो सका है। इसलिए बाकी डेढ़ साल में इस लक्ष्य के पूरा होने का सवाल ही नहीं उठता।
सवाल यह भी उठता है कि अगर भारत-निर्माण कार्यक्रम में ग्रामीण सड़कों को बनाने में यह प्रगति हुई है तो प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बाकी सड़कें कहां से बन गईं? वाकई विज्ञापनों से झूठ फैलाने में सरकार ने निजी क्षेत्र को भी पीछे छोड़ दिया है। वैसे, खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस योजना पर अमल में भ्रष्टाचार को बड़ी बाधा बता चुके हैं। उन्होंने मई में एक समारोह में कहा था, “सड़कों की खराब हालत की एक बड़ी वजह भ्रष्टाचार है। सड़क निर्माण परियोजना में भ्रष्टाचार कैंसर की तरह देश के कोने-कोने तक पहुंच चुका है।”
अंत में बस एक तथ्य देना चाहूंगा। ग्रामीण सड़कों के लिए जहां केंद्र सरकार ने भारत-निर्माण के तहत 48,000 करोड़ रुपए के निवेश का प्रावधान रखा है, वहीं नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट के लिए निर्धारित रकम 2.2 लाख करोड़ रुपए की है।
Comments
--कम से कम यह नासूर हमारे शहर जबलपुर में तो बदबदा रहा है. हद है!! सड़क पर सड़क खोजनी पड़ती है.