आंकड़ों की भंवर ने सोख लिया सारा पानी
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कवर्ड-अनकवर्ड के शब्दों और आंकड़ों से जोड़ से मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि दिसंबर 2006 तक 1,11,788 गांवों तक सरकार ने पीने का पानी पहुंचा दिया है। लेकिन लक्ष्य तो ‘अनकवर्ड’ 74,000 गावों का ही था!! मेरा माथा नाच ही रहा था कि एक सरकारी विज्ञप्ति ने मुझे और परेशान कर दिया। विश्व जल दिवस से एक दिन पहले 21 मार्च 2007 को जारी इस विज्ञप्ति में बताया गया है कि ‘अनकवर्ड’ गांव असल में 55,067 ही हैं जो 16 राज्यों और चार संघशासित क्षेत्रों में फैले हुए हैं।
साथ ही यह भी पता चला कि राज्य सरकारों से मिले आंकड़ों के मुताबिक 2.17 लाख गांवों में (यानी देश के कुल 6.38 लाख गांवों में से एक-तिहाई से ज्यादा) पीने के पानी की समस्या है। इनमें से 31,306 गांवों के पानी में फ्लोराइड, 5029 गांवों में आर्सेनिक, 23,495 गांवों में खारेपन, 1,18,088 गांवों में लौह, 13,958 गांवों में नाइट्रेट की अधिकता और 25,092 गांवों में पानी की गुणवत्ता की बहुत सारी समस्याएं हैं।
फिर मैंने एक रिपोर्ट पढ़ी कि इस सभी 2.17 लाख गांवों में साफ पेयजल पहुंचाना भारत-निर्माण के चार साला लक्ष्यों में शामिल है और इस साल अप्रैल तक मात्र 7300 गांवों में कामयाबी मिल पाई है। मैं अब एक बार फिर चिदंबरम के दिए 1,11,788 गांवों के आंकड़े को लेकर कन्फ्यूज हो गया।
खैर, अगर मिंट अखबार की इस रिपोर्ट को सही मानें तो योजना आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि बाकी बचे 2.10 लाख गांवों तक साफ पीने का पानी पहुंचाने का लक्ष्य 2009 तक कभी पूरा नहीं हो सकता है और हो सकता है कि इस परियोजना को बढ़ाकर साल 2011 तक ले जाना पड़े।
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