देखिए, किन्हें कोस रही हैं चंद्रशेखर की मां!!
कौशल्या देवी उन्हीं चंद्रशेखर प्रसाद की मां है जो अपना सब कुछ छोड़कर सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बने और 34 साल की उम्र में शहीद हो गए, दस साल पहले अप्रैल 1997 में जिन्हें आरजेडी के सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के गुंडों ने गोलियों से भून दिया था और जिनके बारे में एक लेख कल समकालीन जनमत ने छापा है। 1973 में एयरफोर्स में अपने सार्जेंट पति की मौत के बाद कौशल्या देवी के लिए उनका बेटा चंद्रशेखर ही आखिरी सहारा था। पढ़ाया-लिखाया कि बेटा एक दिन बूढ़ी विधवा का सहारा बनेगा। लेकिन बेटे ने जब गरीबों की राजनीति करने का बीड़ा उठा लिया तो इस क्रांतिकारी की मां ने कहा – चलो बेटा, मैं तुम्हें देश को दान करती हूं।
इस मां की आज क्या हालत है, इस बारे में तहलका ने इसी साल जून में उनसे बात की थी। मैंने जब यह रिपोर्ट पढ़ी तो अंदर तक हिल गया था कि अवाम की राजनीति करनेवाले क्या सचमुच इतने असंवेदनशील हो सकते हैं? मुझे यकीन नहीं आया था कि उजाले और सुंदर समाज की बात करनेवालों के दिल और दिमाग में इतना अंधेरा भरा हो सकता है? इसी रिपोर्ट में मुताबिक माले के नेताओं ने कौशल्या देवी की बातों को दुख में डूबी एक मां का ‘emotional outbursts’ बताया था। आइए देखते हैं कि क्या सचमुच ऐसा है या यह ठहराव का शिकार हो चुकी राजनीति के मुंह पर मारा गया एक करारा तमाचा है।
पार्टी कहती है कि हत्यारों का दोषी ठहराया जाना दलितों और सर्वहारा की जीत है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। शहाबुद्दीन ने राजनीतिक वजहों से हत्याएं की थीं, सत्ता हासिल करने के लिए। शहाबुद्दीन की तरह सीपीआई (एमएल) के लिए भी यह शुद्ध राजनीति थी। वही गंदी राजनीति आज भी चल रही है।
वह (चंद्रशेखर) जब जेएनयू से पढ़ाई पूरी करने के बाद सीपीआई (एमएल) का पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनने के लिए सीवान वापस आया तो मुझे तकलीफ हुई। लेकिन देश की राजनीति को लेकर उसके उत्साह और गरीबों के लिए सच्चे प्यार को देखकर मुझे यकीन हो गया कि वह बड़े मकसद के लिए जीना चाहता है। उसका निस्वार्थ काम देखकर मैंने उससे सरकारी नौकरी करने की बात कहनी बंद कर दी। लेकिन अब उसकी हत्या के दस साल बाद मुझे पता चला है कि यह कितनी स्वार्थी पार्टी है।
सीपीआई (एमएल) के लिए राजनीतिक हथियार के रूप में मेरी उपयोगिता खत्म हो गई है। आज पार्टी में किसी को फिक्र नहीं है कि चंद्रशेखर की बूढ़ी मां कैसे रहती है। मेरे बेटे की हत्या के दो-तीन साल बाद तक पार्टी ने मेरा जमकर इस्तेमाल किया। सीपीआई (एमएल) लाशों पर राजनीति कर रही है।
जब शहाबुद्दीन के गैंग की तरफ से मेरे बेटे को लगातार धमकियां और चेतावनियां मिल रही थीं, तब पार्टी के कई कार्यकर्ता शहाबुद्दीन के संपर्क में थे। पार्टी ने कभी उसकी (चंद्रशेखर की) सुरक्षा की चिंता नहीं की। चंद्रशेखर की हत्या के बाद सीपीआई (एमएल) के जिन नेताओं ने एफआईआर दर्ज कराई थी, वो ही बाद में मुकर गए और जाकर शहाबुद्दीन के गैंग में शामिल हो गए। कभी-कभी तो मुझे अपने बेटे की हत्या में पार्टी का हाथ नजर आता है।
इस मां की आज क्या हालत है, इस बारे में तहलका ने इसी साल जून में उनसे बात की थी। मैंने जब यह रिपोर्ट पढ़ी तो अंदर तक हिल गया था कि अवाम की राजनीति करनेवाले क्या सचमुच इतने असंवेदनशील हो सकते हैं? मुझे यकीन नहीं आया था कि उजाले और सुंदर समाज की बात करनेवालों के दिल और दिमाग में इतना अंधेरा भरा हो सकता है? इसी रिपोर्ट में मुताबिक माले के नेताओं ने कौशल्या देवी की बातों को दुख में डूबी एक मां का ‘emotional outbursts’ बताया था। आइए देखते हैं कि क्या सचमुच ऐसा है या यह ठहराव का शिकार हो चुकी राजनीति के मुंह पर मारा गया एक करारा तमाचा है।
पार्टी कहती है कि हत्यारों का दोषी ठहराया जाना दलितों और सर्वहारा की जीत है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। शहाबुद्दीन ने राजनीतिक वजहों से हत्याएं की थीं, सत्ता हासिल करने के लिए। शहाबुद्दीन की तरह सीपीआई (एमएल) के लिए भी यह शुद्ध राजनीति थी। वही गंदी राजनीति आज भी चल रही है।
वह (चंद्रशेखर) जब जेएनयू से पढ़ाई पूरी करने के बाद सीपीआई (एमएल) का पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनने के लिए सीवान वापस आया तो मुझे तकलीफ हुई। लेकिन देश की राजनीति को लेकर उसके उत्साह और गरीबों के लिए सच्चे प्यार को देखकर मुझे यकीन हो गया कि वह बड़े मकसद के लिए जीना चाहता है। उसका निस्वार्थ काम देखकर मैंने उससे सरकारी नौकरी करने की बात कहनी बंद कर दी। लेकिन अब उसकी हत्या के दस साल बाद मुझे पता चला है कि यह कितनी स्वार्थी पार्टी है।
सीपीआई (एमएल) के लिए राजनीतिक हथियार के रूप में मेरी उपयोगिता खत्म हो गई है। आज पार्टी में किसी को फिक्र नहीं है कि चंद्रशेखर की बूढ़ी मां कैसे रहती है। मेरे बेटे की हत्या के दो-तीन साल बाद तक पार्टी ने मेरा जमकर इस्तेमाल किया। सीपीआई (एमएल) लाशों पर राजनीति कर रही है।
जब शहाबुद्दीन के गैंग की तरफ से मेरे बेटे को लगातार धमकियां और चेतावनियां मिल रही थीं, तब पार्टी के कई कार्यकर्ता शहाबुद्दीन के संपर्क में थे। पार्टी ने कभी उसकी (चंद्रशेखर की) सुरक्षा की चिंता नहीं की। चंद्रशेखर की हत्या के बाद सीपीआई (एमएल) के जिन नेताओं ने एफआईआर दर्ज कराई थी, वो ही बाद में मुकर गए और जाकर शहाबुद्दीन के गैंग में शामिल हो गए। कभी-कभी तो मुझे अपने बेटे की हत्या में पार्टी का हाथ नजर आता है।
Comments
वास्तव में उनकी मुद्रा में, यही है। नेताओं के लिए और व्यापारियों के लिए लोग केवल गिनतियों के खेल या उँगलियों पर नचाने के खिलौने हैं, यह मैंने जामनगर की रिलायंस में देखा, और कइओं से तो और वीभत्स चीज़ें सुनी हैं।
सीधे-सच्चे लोग इसी तरह से शहीद होते आए हैं, शहीदों के परिवार इसी तरह से हमेशा बदाहाल होते रहे हैं और कमीने-मक्कार लोग इसी तरह से शहीदों की लाश और उनके नाम पर राजनीति करते आए हैं।
चंद्रशेखर और उसकी मां को अपनों ने ही दगा दिया। जबकि शहाबुद्दीन पर क़ानूनी शिकंजा कसने में सिवान में कुछ अवधि के लिए तैनात ईमानदार युवा अधिकारियों सी.के. अनिल और संजय रत्न ने बहुत शिद्दत से काम किया।
इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि जिस किसी के भीतर भगत सिंह जैसी क्रांति की चिन्गारी हो, वह शहीद हो जाने की सरलता न दिखाए। जो सच्चे क्रांतिकारी हैं, उन्हें चतुर्दिक कमीनेपन के माहौल में अपने जीवन को बचाए रखते हुए धीरे-धीरे शक्ति अर्जित करनी होगी और बदलाव की लहर पैदा करनी होगी।
आज आपके माध्यम से यह पढ़कर पुनः मन व्याकुल हो गया. दुखद.