कुछ होते हैं पैदाइशी ठग और कुछ महाठग
और देशों की बात मैं नहीं जानता, लेकिन अपने यहां ठगों की सुदीर्घ और स्थापित परंपरा रही है। आज ये परंपरा भले ही गंगा-यमुना के संगम में सरस्वती की तरह विलुप्त हो गई हो, लेकिन उसका वजूद नहीं मिटा है। इन ठगों की कोई जाति नहीं होती, इसलिए ये हर जाति में पाए जाते हैं। ज्यादातर ये द्विज जातियों में ही पाए जाते हैं। ये ब्राह्मण हो सकते हैं, क्षत्रिय भी और वैश्य भी। वैसे, अब इन्होंने ओबीसी जातियों और आरक्षण से आगे बढ़े दलितों में भी घुसपैठ कर ली है। इनका कोई धर्म भी नहीं होता।
पूरे देश में, उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक ये सर्वव्यापी हैं। गांवों, कस्बों और छोटे-बड़े शहरों से लेकर महानगरों तक में इनकी उपस्थिति है। इनमें हमारी तरह ऐसी कोई नैतिकता नहीं होती जो इन्हें ठगी करने से रोके। ये तो बड़े ही निष्काम और भक्ति भाव से ठगी को अंजाम देते हैं। ठगी का जाल फैलाने के लिए ये लोग एक साथ कई अलग-अलग दिखने वाली 'दुकानें' खोल लेते हैं।
इनकी स्थापित और गहरी परंपरा की एक झलक आप महाश्वेता देवी की कहानी पर बनाई गई दिलीप कुमार, संजीव कुमार और बलराज साहनी की बहुचर्चित फिल्म संघर्ष में देख चुके होंगे। इस फिल्म में बनारस के ठगों का किस्सा बड़े ही जानदार तरीके से पेश किया गया है। वह किस्सा भी आपने सुना ही होगा कि कैसे एक बुजुर्ग ठग परदेश से सालों बाद लौटे अपने ही बेटे को आम राहगीर समझकर सराय में रुकवाता है और रात में सोते वक्त उसकी हत्या कर देता है। बताते हैं कि खुद मां भवानी ने भगवान शंकर की मदद के लिए इनकी रचना की थी। भारतीय ठगों पर तो अनेक किताबें भी लिखी जा चुकी हैं। गूगल पर बस Thugs in India सर्च में डालिए और डेढ़ लाख से ज्यादा मज़ेदार परिणाम आपके सामने खुल जाएंगे।
जिस तरह कहा गया है कि न जाने किस भेस में नारायण मिल जाएं, उसी तरह ठग आपको किसी भी रूप में मिल सकता है। वह दोस्त का बाना पहनकर भी मिल सकता है और अपरिचित के रूप में भी। मेरा भी बनारस के एक ठग से पाला पड़ चुका है। वह मुझसे दोस्त के रूप में मिला था। ठगों के लिए सबसे मुफीद चीज़ होती है आपका भरोसा। उस दोस्त ने भी मेरे भरोसे का जबरदस्त फायदा उठाया। गाढ़ी कमाई के दो लाख रुपए झटकने के बाद ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सिर से सींग।
ठग आपके घर में भी आपका खास बनकर बैठा हो सकता है। आप अपनी सहजता में उस पर भरोसा किए जाते हैं और वह इस भरोसे का फायदा उठाकर आपको दीमक की तरह खोखला करता जाता है। ठग आपसे किसी क्रेडिट कार्ड या बैंक का एग्जीक्यूटिव बनकर भी मिल सकता है। वह एसएमएस करके आपको बता सकता है कि आपका नंबर लकी ड्रॉ में निकला है और आप सपरिवार मुफ्त में गोवा की यात्रा करने के लिए चुन लिए गए हैं।
कई साल पहले एक बार मुंबई आने पर ट्रेन से उतरते ही एक अधेड़ ने मेरे कंधे पर हाथ मारा और बोला – अबे असलम, कहां था तू इतने दिन। मैंने बताया कि न तो मैं असलम हूं और न ही उससे कभी मिला हूं तो उसने कहा कि मेरी शक्ल उसके दोस्त के बेटे से बहुत मिलती है। वह मुझे अपने साथ ले जाने को तैयार था। लेकिन मुझे अपने चाचा का किस्सा याद आ गया कि किस तरह ऐसे ही एक सज्जन नाना का दोस्त बताकर उनका सारा माल-असबाब लखनऊ के चारबाग स्टेशन से लेकर चंपत हो गए थे।
वैसे ठगों ने भारतीय राजनीति में बड़ा संगठित रूप ले रखा है। बल्कि कुछ तो राजनीति की चासनी में पगकर महाठग बन गए हैं। अमर सिंह, जॉर्ज फर्नांडीस और लालू यादव जैसे नेता इसी संप्रदाय में आते हैं। अरुण नेहरू भी इसी परंपरा की एक कड़ी रहे हैं। सोनिया गांधी तो विदेशी हैं। वैसे, ठग इतने शातिर होते हैं कि उन्हें पहचान पाना नितांत कठिन होता है। फिर अगर वो नेता ही बन गए हैं तो उनकी शिनाख्त तो मां भवानी ही कर सकती हैं।
पूरे देश में, उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक ये सर्वव्यापी हैं। गांवों, कस्बों और छोटे-बड़े शहरों से लेकर महानगरों तक में इनकी उपस्थिति है। इनमें हमारी तरह ऐसी कोई नैतिकता नहीं होती जो इन्हें ठगी करने से रोके। ये तो बड़े ही निष्काम और भक्ति भाव से ठगी को अंजाम देते हैं। ठगी का जाल फैलाने के लिए ये लोग एक साथ कई अलग-अलग दिखने वाली 'दुकानें' खोल लेते हैं।
इनकी स्थापित और गहरी परंपरा की एक झलक आप महाश्वेता देवी की कहानी पर बनाई गई दिलीप कुमार, संजीव कुमार और बलराज साहनी की बहुचर्चित फिल्म संघर्ष में देख चुके होंगे। इस फिल्म में बनारस के ठगों का किस्सा बड़े ही जानदार तरीके से पेश किया गया है। वह किस्सा भी आपने सुना ही होगा कि कैसे एक बुजुर्ग ठग परदेश से सालों बाद लौटे अपने ही बेटे को आम राहगीर समझकर सराय में रुकवाता है और रात में सोते वक्त उसकी हत्या कर देता है। बताते हैं कि खुद मां भवानी ने भगवान शंकर की मदद के लिए इनकी रचना की थी। भारतीय ठगों पर तो अनेक किताबें भी लिखी जा चुकी हैं। गूगल पर बस Thugs in India सर्च में डालिए और डेढ़ लाख से ज्यादा मज़ेदार परिणाम आपके सामने खुल जाएंगे।
जिस तरह कहा गया है कि न जाने किस भेस में नारायण मिल जाएं, उसी तरह ठग आपको किसी भी रूप में मिल सकता है। वह दोस्त का बाना पहनकर भी मिल सकता है और अपरिचित के रूप में भी। मेरा भी बनारस के एक ठग से पाला पड़ चुका है। वह मुझसे दोस्त के रूप में मिला था। ठगों के लिए सबसे मुफीद चीज़ होती है आपका भरोसा। उस दोस्त ने भी मेरे भरोसे का जबरदस्त फायदा उठाया। गाढ़ी कमाई के दो लाख रुपए झटकने के बाद ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सिर से सींग।
ठग आपके घर में भी आपका खास बनकर बैठा हो सकता है। आप अपनी सहजता में उस पर भरोसा किए जाते हैं और वह इस भरोसे का फायदा उठाकर आपको दीमक की तरह खोखला करता जाता है। ठग आपसे किसी क्रेडिट कार्ड या बैंक का एग्जीक्यूटिव बनकर भी मिल सकता है। वह एसएमएस करके आपको बता सकता है कि आपका नंबर लकी ड्रॉ में निकला है और आप सपरिवार मुफ्त में गोवा की यात्रा करने के लिए चुन लिए गए हैं।
कई साल पहले एक बार मुंबई आने पर ट्रेन से उतरते ही एक अधेड़ ने मेरे कंधे पर हाथ मारा और बोला – अबे असलम, कहां था तू इतने दिन। मैंने बताया कि न तो मैं असलम हूं और न ही उससे कभी मिला हूं तो उसने कहा कि मेरी शक्ल उसके दोस्त के बेटे से बहुत मिलती है। वह मुझे अपने साथ ले जाने को तैयार था। लेकिन मुझे अपने चाचा का किस्सा याद आ गया कि किस तरह ऐसे ही एक सज्जन नाना का दोस्त बताकर उनका सारा माल-असबाब लखनऊ के चारबाग स्टेशन से लेकर चंपत हो गए थे।
वैसे ठगों ने भारतीय राजनीति में बड़ा संगठित रूप ले रखा है। बल्कि कुछ तो राजनीति की चासनी में पगकर महाठग बन गए हैं। अमर सिंह, जॉर्ज फर्नांडीस और लालू यादव जैसे नेता इसी संप्रदाय में आते हैं। अरुण नेहरू भी इसी परंपरा की एक कड़ी रहे हैं। सोनिया गांधी तो विदेशी हैं। वैसे, ठग इतने शातिर होते हैं कि उन्हें पहचान पाना नितांत कठिन होता है। फिर अगर वो नेता ही बन गए हैं तो उनकी शिनाख्त तो मां भवानी ही कर सकती हैं।
Comments
मानसिकता बदली कहां है। ओवर नाइट धनवान बनने की लिप्सा कहीं गयी नहीं।
आपने जिस फिल्म का जिक्र किया है ठीक वैसी ही एक कहानी राजथान के प्रख्यात लेखक विजयदान देथा ने लिखि थी, और उस पर फिल्म भी बनी थी परिणती।
जिसमें अनंग देसाई उन दंपति के बेटे बने थे, जो अपने पुत्र कि हत्या कर देते हैं।