14 करोड़ एडवांस टैक्स तो कमाई कितनी होगी?

क्या आप यकीन करेंगे कि दलित की बेटी और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बहन मायावती इस साल अभी तक 14 करोड़ रुपए का एडवांस टैक्स जमा करवा चुकी हैं और इस तरह देश में सबसे ज्यादा टैक्स देनेवाली राजनेता बन गई हैं। इन 14 करोड़ रुपए में से 1.5 करोड़ का टैक्स उन्होंने जुलाई महीने में भरा और 12.5 करोड़ रुपए का टैक्स 15 सितंबर को जमा कराया है। यह टैक्स आकलन वर्ष 2008-09 के लिए है यानी चालू वित्तीय वर्ष 2007-08 में हो रही कमाई पर टैक्स का अग्रिम भुगतान है। नियमत: सितंबर तक साल भर में होनेवाली कमाई के 30 फीसदी हिस्से पर ही टैक्स देना होता है। बाकी 70 फीसदी कमाई पर टैक्स साल की बाकी दो तिमाहियों में दिया जा सकता है।

इस तरह अगर टैक्स की दर 30 फीसदी मानें तो बहनजी सितंबर तक ही अपनी कमाई कम से कम 42 करोड़ दिखा रही हैं, यानी पूरे साल में उन्हें कुल 140 करोड़ रुपए कमाई होने का पक्का भरोसा है। इसी साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए दायर अपने हलफनामे में उन्होंने घोषित किया था कि पिछले साल उनकी कमाई 52 करोड़ रुपए की रही है। मतलब, मुख्यमंत्री बनने के पहले ही साल में उनकी सालाना आमदनी तीन गुनी होने जा रही है। आप जानते ही हैं कि नेताओं की कमाई के बारे में यह कहावत पूरी तरह लागू होती है कि हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और होते हैं। तो बहनजी की असली कमाई का अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं।

बहनजी ने 1984 में बीएसपी की स्थापना के साथ जब राजनीति में प्रवेश किया, तब वे एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका थीं। उनके पिता सरकारी डाक विभाग में सीनियर क्लर्क थे। मायावती अपने पिता की आठ संतानों (छह भाइयों और दो बहनों) में से एक हैं। साल 2004 में चुनाव आयोग में दायर अपने हलफनामे में उन्होंने अपनी संपत्ति 1.67 करोड़ रुपए दिखाई थी। लेकिन 2007 तक उनकी संपत्ति 52 करोड़ पर जा पहुंची और इस साल 150 करोड़ रुपए तक पहुंचने जा रही है। उनके पास दिल्ली के कनॉट प्लेस और ओखला में कॉमर्शियल प्रॉपर्टी है, सरदार पटेल मार्ग पर महलनुमा बंगला है और लखनऊ में नेहरू रोड पर शानदार कोठी है।

खुद बहनजी की मानें तो वे पेशे से वकील और राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उनके जीवन का मसकद है : बहुजन समाज की सामाजिक और आर्थिक मुक्ति ताकि भारत की सौ करोड़ आबादी का 85 फीसदी हिस्सा अपने अधिकारों और समानता के बारे में वाकिफ हो सके। साथ ही समाज के दूसरे तबकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों का उत्थान हो सके।

सचमुच अगर सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता के पेशे और जनता की सेवा में इतना मेवा है तो हर किसी को इस काम में उतरना चाहिए। लेकिन बहनजी हैं कि छात्रों को राजनीति में नहीं उतरने देना चाहती हैं। तभी तो उन्होंने राज्य में छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगा दी है। वैसे बहनजी, कैसा कामकाज चला रही हैं और उनकी कमाई का स्रोत क्या हो सकता है, इसके लिए एक बानगी पेश कर रहा हूं।

उनका चुनाव क्षेत्र अकबरपुर रहा है। यही अकबरपुर पहले मेरी तहसील हुआ करता था और अब अम्बेडकरनगर बनने के बाद मेरा भी ज़िला है। यहां करोड़ों की लागत से एक ओवरब्रिज तैयार किया गया और वह चार-पांच दिन पहले ही (30 सितंबर) लोकार्पण के 24 घंटे के भीतर ढह गया। विपक्षी कहते हैं कि यह बहनजी के राज में चल रहे भ्रष्टाचार का नमूना है और उनकी अकूत कमाई का प्रमुख स्रोत है। लेकिन बहनजी कहती हैं कि उनकी कमाई की एक-एक कौड़ी उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं और उनके मकसद से सहानुभूति रखनेवालों ने दिया है। सच क्या है, यह तो कोई जांच एजेंसी ही पता लगा सकती है।

कार्टून सौजन्य - डीएनए, खबर का स्रोत - इकोनॉमिक टाइम्स

Comments

देश में ऐसे नेता हों जो अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत बनने पर ही लगे हों , तो उनसे देश की प्रगति की उम्मीद कैसे की जा सकती है . हमारे पुराने नेताओ को रहने को एक घर नहीं हुआ करता था और आज सबने धन सम्पति का ढेर लगा लिया है .
Udan Tashtari said…
क्या कहा जाये सिर्फ तमाशा देखने के सिवा!!! अब जनता ही तो ऐसे लोगों को चुन चुन कर सर पर बैठाती है.
भाई आज राजनीति का मतलब लूटनीति ही है...और कुछ नहीं...
Manish Kumar said…
पिछली बार चुनाव के पहले जब उत्तर प्रदेश गया था तो लोगों को कहता पाया था कि बहन जी के शासन काल में मुलायम राज की अपेक्षा व्यवस्था ज्यादा चुस्त दुरुस्त थी। आपकी क्या राय है इस बारे में?
काश कोई एजंसी , इन नेताओ की सच मे जांच कर सके!!
इस सब की गंगोत्री चुनाओं-रैलियों में होने वाला अनाप-शनाप खर्च है.
तत्पश्चात हर व्यक्ति के व्यक्तिगत स्वार्थ उसमें नदी-नालों की तरह आ मिलते हैं.
Srijan Shilpi said…
बहन जी ने मैडम सोनिया के साथ दोस्ती गांठ रखी है। भला कौन जांच एजेंसी उनके मामले में हाथ डालने की गुस्ताखी करेगी?

यह हाल केवल बहन जी का ही नहीं, बल्कि जो कोई भी किसी राज्य का मुख्यमंत्री और केन्द्र सरकार में मंत्री रह चुका है, या है, उनमें से अधिकांश के पास इसी तरह सैकड़ों करोड़ की संपत्ति जमा है। सब जानते हैं कि यह भ्रष्टाचार से कमाई हुई संपत्ति है, लेकिन नपुंसकों के इस देश में भला किसमें इस भ्रष्टाचार को जड़मूल से मिटाने का माद्दा है?

जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों तक के बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में लिप्त में होने के संकेत मिल रहे हों तो आखिर किसमें दम है कि यह स्थिति बदल सके। देश की कुल जीडीपी का लगभग चालीस फीसदी काला धन है, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा विदेशी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं में जमा है, जो कभी भी किसी भी रूप में भारत के हित में काम नहीं आना है।

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