नए साल में इस गुनाह से बचाना मेरे मौला
अभी-अभी एक मनोहारी धुन कानों में बजी। एक सुंदर एहसास मन के ऊपर से निकल गया। एक मुलायम-सी सुंदर अनुभूति लहराती हुई पास से गुजरी। किसी कोमल भाव का पंख पलकों की बरौनियों को सहलाता हुआ उड़ गया। रंग-बिरंगी तितलियां छोटी-बड़ी, खूबसूरत परिंदे छोटे-बड़े-मझोले। तेज़ी से तय-ताल में उड़ते झुंड के झुंड। चारो तरफ मंडराती लगातार बहती हुई रंग-बिरंगी छवियां जैसे रिमझिम फुहारों में उड़ते अनंत इंद्रधनुष। इस पल हैं, अगले पल फ्रेम से बाहर, दिल-दिमाग आंखों से ओझल। सेकंड भी नहीं लगे और उड़ गईं छवियां। जितनी देर में झुकी पलक ऊपर उठी, आंख खुली, बस इत्ते में ही छवियां-आकृतियां गायब हो गईं। यहां-वहां, जहां-तहां, नीचे से ऊपर, दिग-दिगंत हर तरफ निहारा, ढूंढा। कहीं नहीं दिखतीं। बस, रह गए तो गालों और बालों पर लगे तितलियों के रंग, फूलों के पराग कण, कपड़ों से उलझे खूबसूरत परिंदों के इक्का-दुक्का पंख। सब अपने निशान छोड़कर चले गए। और, जो चला गया, वह कहां लौटकर आता है उसी रूप में? वक्त के साथ सारे के सारे झुंड उड़ गए। एक रिक्तता का एहसास पीछे छोड़कर। उन्हें दर्ज न करने के अपराध बोध की फांस में जकड़कर रह गए हम। लेकिन हे स