अनामियों-बेनामियों से आजकल मोदी भी तंग हैं
अनाम और बेनामी लोग आजकल बेहद चालाक और शातिर होते जा रहे हैं। वर्ल्डप्रेस या ब्लॉगर पर दी गई सुविधाओं का इस्तेमाल करते हुए वे अब अपना नाम भी रखने लगे हैं। यहां तक कि वेबपेज के नाम वे किसी की भी साइट चस्पा कर दे रहे हैं। काकेश भाई के ब्लॉग पर मैं इसका नमूना देख चुका हूं और इधर बराबर अपने ब्लॉग पर भी देख रहा हूं। ऐसे लोग कभी एनॉनिमस के नाम से टिप्पणी करते थे, तो कभी खुद को बेनामी बता देते थे। लेकिन अब तो बाकायदा राजन मुंबई और अजय वर्मा पटना का नाम लिखकर झांसा दे रहे हैं कि वे मुंबई या पटना से टिप्पणी कर रहे हैं। कुछ और कलाकार हैं जो अभिव्यक्ति नाम की लड़की या चापलूसी लाल जैसे बनावटी नाम का ढोंग कर रहे हैं।
मैं समझ नहीं पाता कि इस शुतुरमुर्गी अदा का मतलब क्या है। इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी के इस दौर में कम से कम आपके कंप्यूटर के आईपी एड्रेस से तो पता चल ही जाता है कि आप मुंबई या पटना से नहीं, गाज़ियाबाद और दिल्ली में बैठकर यह प्रपंच कर रहे हैं और नाम बदल-बदल कर रहे हैं। मैं भी अपने साइटमीटर में दर्ज सूचना और आपकी टिप्पणी के समय के मिलान से इसे आसानी से देख सकता हूं। तकनीक में ज्यादा पारंपत नहीं हूं, वरना आपके चेहरे को भी तार-तार कर देता। आप से बचने का एक तरीका यह है कि मैं एनॉनिमस टिप्पणियों का रास्ता ही बंद कर दूं या टिप्पणियों को मॉडरेशन में डाल दूं। लेकिन न तो मेरे पास मॉडरेशन के लिए पर्याप्त समय है और न ही मैं कुछ लोगों के लिए अपने कान बंद करना चाहता हूं।
फिर मैं आपको बंद करके कर ही क्या सकता हूं। आजकल तो आप एक राजनीतिक परिघटना बन गए हैं। आप जैसे अनाम बेनामियों ने नरेंद्र मोदी तक को नहीं छोड़ा है। जैसे-जैसे गुजरात में विधानसभा चुनावों की तारीख नजदीक आती जा रही है, अनामियों की हरकतें बढ़ गई हैं। वो पैंफलेट निकाल रहे हैं, परचे बंटवा रहे हैं, जिनमें मोदी के दावों की कलई खोली गई है। इनमें लिखी बातों से लगता है कि यह भीतरघातियों का काम है क्योंकि इसमें मोदी सरकार की बड़ी क्लासीफाइड जानकारियां हैं।
इन परचों में ब्यौरेवार तरीके से बताया गया है कि कैसे नरेंद्र मोदी और उनके इर्दगिर्द कुंडली मारकर बैठी मंडली ने निजी स्वार्थो के लिए हिंदू वोटों और संघ परिवार की मेहनत का इस्तेमाल किया है। बीजेपी के कुछ नेताओं का कहना है कि या तो मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बौखला गए हैं या गुजरात में इस बार जनता का राजनीतिक मूड बदल गया है।
हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया में पाठकों के राजनीतिक मूड की बात तो नहीं की जा सकती है। लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि अनामी-बेनामी टिप्पणियां विरोधियों की बौखलाहट को साफ कर देती हैं।
मैं समझ नहीं पाता कि इस शुतुरमुर्गी अदा का मतलब क्या है। इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी के इस दौर में कम से कम आपके कंप्यूटर के आईपी एड्रेस से तो पता चल ही जाता है कि आप मुंबई या पटना से नहीं, गाज़ियाबाद और दिल्ली में बैठकर यह प्रपंच कर रहे हैं और नाम बदल-बदल कर रहे हैं। मैं भी अपने साइटमीटर में दर्ज सूचना और आपकी टिप्पणी के समय के मिलान से इसे आसानी से देख सकता हूं। तकनीक में ज्यादा पारंपत नहीं हूं, वरना आपके चेहरे को भी तार-तार कर देता। आप से बचने का एक तरीका यह है कि मैं एनॉनिमस टिप्पणियों का रास्ता ही बंद कर दूं या टिप्पणियों को मॉडरेशन में डाल दूं। लेकिन न तो मेरे पास मॉडरेशन के लिए पर्याप्त समय है और न ही मैं कुछ लोगों के लिए अपने कान बंद करना चाहता हूं।
फिर मैं आपको बंद करके कर ही क्या सकता हूं। आजकल तो आप एक राजनीतिक परिघटना बन गए हैं। आप जैसे अनाम बेनामियों ने नरेंद्र मोदी तक को नहीं छोड़ा है। जैसे-जैसे गुजरात में विधानसभा चुनावों की तारीख नजदीक आती जा रही है, अनामियों की हरकतें बढ़ गई हैं। वो पैंफलेट निकाल रहे हैं, परचे बंटवा रहे हैं, जिनमें मोदी के दावों की कलई खोली गई है। इनमें लिखी बातों से लगता है कि यह भीतरघातियों का काम है क्योंकि इसमें मोदी सरकार की बड़ी क्लासीफाइड जानकारियां हैं।
इन परचों में ब्यौरेवार तरीके से बताया गया है कि कैसे नरेंद्र मोदी और उनके इर्दगिर्द कुंडली मारकर बैठी मंडली ने निजी स्वार्थो के लिए हिंदू वोटों और संघ परिवार की मेहनत का इस्तेमाल किया है। बीजेपी के कुछ नेताओं का कहना है कि या तो मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बौखला गए हैं या गुजरात में इस बार जनता का राजनीतिक मूड बदल गया है।
हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया में पाठकों के राजनीतिक मूड की बात तो नहीं की जा सकती है। लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि अनामी-बेनामी टिप्पणियां विरोधियों की बौखलाहट को साफ कर देती हैं।
Comments
आपके पोस्ट पर अपने नाम पर इस प्रकार का आरोप देख कर मैं समझ गयी हूं कि आपने एक मार्क्सवादी का मुखौटा लगाया है और उसके पीछे एक दकियानूस सांमती चेहरा छुपाया है....क्यों कि आप इस बात को पचा ही नहीं पा रहे हैं कि आपकी इस बौद्धिक, वैचारिक बहस में एक लडकी भाग ले सकती है।
मुझे नहीं पता कि मुझे आपको अपनी पहचान बताने के लिए अपना ई-मेल पता देना चाहिए या फोन नम्बर या कुछ भी नहीं, बल्कि इस तरह के दंभी व्यक्ति के लेखन पर टिप्पणी करना ही छोड देना चाहिए।
और महिलाओं के प्रति पूरा सम्मान मैं करता हूं क्योंकि गार्गी और मैत्रेयी की परंपरा का सम्मान करता हूं। अगर आप सचमुच अभिव्यक्ति ही हैं तो बगैर किसी परवाह के आपको अपना पढ़न-पाठन और चिंतन जारी रखना चाहिए। यह हमारे पूरे समाज और देश के हित में अच्छा रहेगा।
मैं बेनामी टिप्पणियों से पहले डरता था अब स्वागत करता हूँ...
बेनामी का रंग ही अलग होता है....