नक्सली और श्री श्री की राज-नीति कला

इस समय नक्सली समस्या सरकार को ही नहीं, आर्ट ऑफ लिविंग के गुरु श्री श्री रविशंकर को भी परेशान किए हुए है। देश के 600 ज़िलों में से 172 में माओवादी नक्सली पहुंच चुके हैं। ऊपर से करीब 100 ज़िलों में किसान खुदकुशी कर रहे हैं। कहीं इन ज़िलों के किसान भी नक्सलियों की शरण में चले गए तो? श्री श्री रविशंकर किसके कहने पर विदर्भ के किसानों के बीच गए थे, ये तो मुझे नहीं पता, लेकिन यह बात जगजाहिर हो चुकी है कि भरी सभा में उन्होंने किसानों से वचन लिया कि वे कभी भी नक्सली नहीं बनेंगे।

आप कहेंगे कि अहिंसा और प्रेम का संदेश देनेवाले श्री श्री ने ऐसा किया तो इसमें गलत क्या है? गलत है क्योकि वे वहां आध्यात्म का संदेश देने नहीं बल्कि राजनीतिक वक्तव्य देने गए थे। देखिए, गुजरात दंगों के ताज़ा स्टिंग ऑपरेशन पर उनका क्या कहना है।

मैं गुजरात पर खुलासा करनेवाले पत्रकार को बधाई देता हूं। लेकिन मैं उनसे अनुरोध करूंगा कि वे (1984 के) सिख दंगों पर भी ऐसा खुलासा करें।...यह (गुजरात में दंगाइयों का बर्ताव) हमारी संस्कृति में नहीं है। लेकिन हमें समझना पड़ेगा कि एक धर्म के अतिवाद का दूसरे धर्म के अतिवाद में बदलना तय है। आप किसी धर्म के लोगों से हमेशा नरमी से बरतने की उम्मीद नही कर सकते।
आप ही बताइए, श्री श्री रविशंकर किसकी भाषा बोल रहे हैं। उनकी भाषा और भाजपा या संघ परिवार के किसी नेता के बयान का कोई फर्क रह गया है क्या? क्रिया-प्रतिक्रिया का यह सिद्धांत तो सबसे पहले नरेंद्र मोदी ने ही गोधरा के बाद हुए दंगों पर लागू किया था। फिर रविशंकर घोषित क्यों नहीं कर देते कि वो भाजपा और संघ की राजनीति के साथ हैं? वे क्यों दुनिया भर में घूम-घूमकर अहिंसा, प्रेम और जीने की कला का पाठ पढ़ा रहे हैं?

विदर्भ के किसानों के बीच बोले गए उनके कुछ और वचन काबिलेगौर हैं। जब एक किसान नेता ने उनसे कहा कि विदर्भ के किसानों की सबसे बड़ी समस्या कपास की कम कीमतों का मिलना है, तब श्री श्री का कहना था : हम इस देश को इथियोपिया नहीं बनने दे सकते जहां लोग पूरी तरह सरकारी सहायता पर निर्भर हो गए हैं...किसानों को शून्य बजट और रसायनों से मुक्त खेती करनी चाहिए। यानी श्री श्री कह रहे हैं कि किसान खाद और बीज पर पैसा ही क्यों खर्च करते हैं! जब किसान खेती पर पैसा ही खर्च नहीं करेंगे तो उन्हें कर्ज क्यों लेना पड़ेगा और कर्ज नहीं लेगें तो परेशान होकर जान भी नहीं देंगे। धन्य है आप श्री श्री रविशंकर जी और आपका संदेश तो आपसे भी ज्यादा धन्य हैं!!!

श्री श्री अपना यह प्रवचन यवतमाल ज़िले के बोधबोदन गांव में कर रहे थे। इस अकेले गांव में 12 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। गुरु जी ने गुरुदक्षिणा के रूप में गांव वालों से यह वचन लिया कि वे कृषि संकट से खुद लड़ेंगे। सरकार की तरफ नहीं देखेंगे और कोई भी आत्महत्या नहीं करेगा। यानी मरो, मगर सरकार के खिलाफ कुछ मत कहो। एक बार फिर धन्य हैं आप श्री श्री रविशंकर जी।

आखिर में श्री श्री की एक और मार्के की बात। उन्होंने कहा : नक्सलवाद इस समय देश की सबसे बडी़ समस्या है। वे (नक्सली) आध्यात्म के विरोधी हैं। वे उद्योग के विरोधी हैं और मानते हैं कि सभी अमीर लोग बुरे हैं। ईसाई और मुस्लिम युवक हिंदुओं की तरह नक्सलवाद की तरफ नहीं जाते क्योंकि उनमें आध्यात्म का इतना अकाल नहीं है। इतना कुछ कहने के बाद श्री श्री ने किसानों को शपथ दिलवाई कि वे कभी भी खुद को नक्सली नहीं बनने देंगे। इस तरह श्री श्री ने साफ कर दिया कि आर्ट ऑफ लिविंग का ये मसीहा कितना ‘निष्पक्ष’ है और उसका ‘एजेंडा’ क्या है।

Comments

श्री श्री अपना यह प्रवचन यवतमाल ज़िले के बोधबोदन गांव में कर रहे थे। इस अकेले गांव में 12 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। गुरु जी ने गुरुदक्षिणा के रूप में गांव वालों से यह वचन लिया कि वे कृषि संकट से खुद लड़ेंगे। सरकार की तरफ नहीं देखेंगे और कोई भी आत्महत्या नहीं करेगा।

ऐसा कह कर श्री श्री ने देशवासियों को भारत की चि‍त्ति और विराट से साक्षात्‍कार कराया है। वास्‍तव में सरकार के भरोसे कुछ नहीं होता है। देशवासियों को खुद अपने पुरूषार्थ से आगे बढना होगा। समाजवाद और नेहरूवाद का फल हम भुगत चुके है।

वास्‍तव में धन्य हैं श्री श्री रविशंकर जी।
Anonymous said…
ये श्री श्री जो हैं, वे फ़्री फ़्री नहीं हैं . जरा उनके क्लाइंटेल पर नज़र दौड़ाइए . सब उच्च-मध्य और उच्च वर्ग के खाए-अघाए लोग हैं . शहर के जिन इलाकों में कार्यक्रम होते हैं उनका सोशिओ-इकनॉमिक प्रोफ़ाइल भी ध्यान देने योग्य है . इधर चौंचला-गुरुओं की मांग खासी बढी है . थोड़ा योग, थोड़ा संगीत,थोड़ी भक्ति और थोड़ा अध्यात्म के कॉकटेल के साथ रोकड़े की अपरिमित गुंजाइश तथा नेटवर्किंग में ही इन दिनों श्री का निवास है . जहां श्री , वहां श्री श्री .
Anonymous said…
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Satyendra PS said…
अनिल जी, यह बड़ी समस्या है। हमारे धर्मगुरु टाइप के लोग इसी तरह का बयान देते हैं और ज्यादातर जनता पर उनका प्रभाव भी पड़ता है। कोई भी घर्मगुरु हो, हमेशा सत्ता, पूंजीवादियों और बूजुॆआ वर्ग से चिपका रहता है। उन्हीं से उनका जीवन चलता है, आय होती है और उन्हीं की जीवनशैली में जीते भी हैं। उन्हीं के लाभ के साथ लाभ कमाते हैं और उनके नुकसान से ही संतों का भी नुकसान होता है। आम लोग तो उनके मूर्खों की लिस्ट में शामिल होते हैं।
यही तो जीने की कला है। बोले तो आर्ट आफ लिविंग है। प्रियंकरजी की बात से इत्तफ़ाक है!
यही तो जीने की कला है। बोले तो आर्ट आफ लिविंग है। प्रियंकरजी की बात से इत्तफ़ाक है!
Pankaj Oudhia said…
समस्याए इतनी विकट होती जा रही है कि अब देश को 'मार्शल आर्ट आफ लीविंग' की जरूरत है। :)
Udan Tashtari said…
आप हम चाहे जितनी आवाज उठायें-लोग भक्ति भाव से उनके साथ लगे हैं बड़ी तादाद में. आखिर जिन्दगी जीने का तरीका बताते है-आर्ट ऑफ लिविंग. हमें तो आता ही नहीं जीना.
प्रियंकर जी पते की बात कह गए!!
drdhabhai said…
भई हमारी राय मानो तो एक बार आप भी जीने का तरीका सीखकर देखे सचमुच बङा आनंद है.और स्टिंग ओपरेशन के बारे में जो कहा वो कहां गलत है के हमेशा एक ही सहिष्णु क्यों बना रहे,सीधी सी गणित है आप भी चश्मा लगाकर देखना बंद करें.
चौपट स्वामी की टिप्पणी मस्त है। मैं नक्सलियों के पक्ष में नहीं पर धर्म के कमर्शियलाइजेशन के भी खिलाफ हूं।
समाधान कहीं और तलाशना है समस्या का।
श्री श्री रवि शंकर को नहीं पता कि भूख क्या होती है। उन्हें सिर्फ चोचले बाजी करना आता है। अनिल जी आपने जो जानकारी दी उससे यही लगता है कि रवि शंकर जी के पहले जो श्री श्री लगा है वह केवल दिखावे के लिये है। मानव कल्याण से उनका कोई मतलब नहीं होता। इन्हें तो पता हीं नहीं होगा कि किसान क्यों आत्म हत्या कर रहें हैं। नक्सली क्या है। ये सिर्फ आर्ट ऑफ लिविंग के नाम पर धनवानों से पैसे बना सकता है। ऐसे हीं लोग धर्म को बदनाम करते हैं।
Kavya Lahri said…
मेरा ऐसा मानना है कि श्री श्री रविशंकर जी के गुजरात के दंगों कि सिर्फ एक वजह बता रहे थे। एक धर्म के अतिवाद का दूसरे धर्म के अतिवाद में बदलना तय है। असल में कोई किसी को दंगे जैसा घृणित कार्य करने के लिये उकसा नहीं सकता, कहीं न कहीं दंगाइयों के मन में एक-दूसरे के धर्म के लिये द्वेष की भावना होगी। जो जरा सा मोका पाते हि भडक गई। इसे आप चिंगारी का भडकना कह सकते हैं। और हमारे राजनेताओं ने आग में घी का काम किया।
जहाँ तक किसानों से लिये गए वचन की बात है, उन्होने बिलकुल सही कहा है। सरकारी सहायता पर निर्भर होने के बजाय, किसानों को आत्मनिर्भर बनना चाहिये। नकदी फसल उगाने के बजाय, सहकारिता कि भावना से मिलजुल कर खाद्य फसलें उगानी चाहिये। सरकार का मुँह देखने से कुछ नहीं होगा किसानों को अपने पुरूषार्थ से आगे बढना होगा।
रासायनिक खादों की जगह जैविक खेती स्वास्थ्य के लिए भी और वातावरण के लिए भी. साथ ही सरकारी सहायता के ऊपर निर्भरता की बजाय आत्मनिर्भरता ही बेहतर है. श्री श्री रविशंकर के ये सन्देश वाकई काबिले तारीफ है.

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