ठीक नहीं है लिंक देने में भाव खाना
कई ब्लॉगर हैं जो अपने ब्लॉग पर किसी दूसरे का लिंक देने में भाव खाते हैं। उनके ब्लॉगरोल में गिने-चुने पांच-छह नाम ही होते हैं। ई-मेल से अनुरोध करने पर या तो जवाब नहीं देते या कोई न कोई महान बहाना बना देते हैं। अब रवीश कुमार जैसे बड़े पत्रकार ऐसा करें तो बात समझ में आती है कि उनकी फैन फॉलोइंग बड़ी है, लोग अपने आप चले आएंगे। दिक्कत है कि अपने नए-नए हिंदी ब्लॉगर भी गिनती के दो चार लोगों का ही लिंक अपने ब्लॉग पर देते हैं। लेकिन इसी शनिवार को मिंट अखबार में मैने एक लेख पढ़ा – The 4ps of blog marketing, जिसके मुताबिक ऐसा करने में अपना ही नुकसान है।
लिखनेवाले अजय जैन खुद एक ब्लॉगर हैं। उनका कहना है कि हमें अपने ब्लॉग पर दूसरों का लिंक बहुत उदारता से देना चाहिए। बिना यह सोचे कि सामनेवाले ने तो हमारा लिंक दिया नहीं तो हम क्यों दें? हम उससे कम थोड़े ही हैं! लेकिन यह अहंकार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में बाधा है, उनके बीच स्वीकार्य होने की रुकावट है। हमें सोचना चाहिए कि का रहीम प्रभु को घट्यो जो भृगु मारी लात। अजय जैन बताते हैं कि जब भी हम किसी और का लिंक देते हैं तो वह कभी न कभी हमारे ब्लॉग पर आता ही है। इस तरह हमें एक विजिटर मिल जाता है और फिर उस निर्दयी का दिल कभी न कभी तो पसीजेगा तो वह भी आपका लिंक दे देगा।
आप कहेंगे और मेरा भी ये सवाल है कि हम तो उन्हीं का लिंक दे सकते हैं जिन्हें पसंद करते हैं, अपने जैसा समझते हैं, फिर हम बाकी लोगों का लिंक क्यों दें? मुझे लगता है कि हम ब्लॉगरोल में श्रेणियां बना सकते हैं। अपनी पसंद के ब्लॉग अलग श्रेणी में, हिंदी ब्लॉगिंग दुनिया के पुरोधा अलग श्रेणी में, तकनीकी ज्ञान वाले अलग आदि-इत्यादि। फिर भी कुछ लोग कट जाएं तो कटने दीजिए क्योंकि इतनी उदारता भी ठीक नहीं कि बिच्छू को अपने हाथ पर बैठा कर रखा जाए।
एक सवाल यह भी है कि ब्लॉग में जगह की सीमा है तो हम आखिर कितनों का लिंक दे सकते हैं? तो इस मुश्किल को सागरचंद नाहर जी ने सुलझा दिया। उन्होंने लिंक की रोलिंग व्यवस्था का जो तरीका सुझाया है, वह बेहद दिलचस्प है। हालांकि अभी तक इसे मैं लागू नहीं कर पाया हूं, लेकिन फुरसत मिलते ही ज़रूर इस नई जानकारी से अपने ब्लॉग का लुक बदलूंगा। वैसे, ब्लॉग का साफ-सुथरा लुक भी बहुत मायने रखता है। मिंट के लेख में बहुत सारी और भी बातें हैं। हालांकि संदर्भ अंग्रेजी के ब्लॉगों का है, लेकिन इससे हम भी अपने काम की चीजें निकाल सकते हैं।
लिखनेवाले अजय जैन खुद एक ब्लॉगर हैं। उनका कहना है कि हमें अपने ब्लॉग पर दूसरों का लिंक बहुत उदारता से देना चाहिए। बिना यह सोचे कि सामनेवाले ने तो हमारा लिंक दिया नहीं तो हम क्यों दें? हम उससे कम थोड़े ही हैं! लेकिन यह अहंकार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में बाधा है, उनके बीच स्वीकार्य होने की रुकावट है। हमें सोचना चाहिए कि का रहीम प्रभु को घट्यो जो भृगु मारी लात। अजय जैन बताते हैं कि जब भी हम किसी और का लिंक देते हैं तो वह कभी न कभी हमारे ब्लॉग पर आता ही है। इस तरह हमें एक विजिटर मिल जाता है और फिर उस निर्दयी का दिल कभी न कभी तो पसीजेगा तो वह भी आपका लिंक दे देगा।
आप कहेंगे और मेरा भी ये सवाल है कि हम तो उन्हीं का लिंक दे सकते हैं जिन्हें पसंद करते हैं, अपने जैसा समझते हैं, फिर हम बाकी लोगों का लिंक क्यों दें? मुझे लगता है कि हम ब्लॉगरोल में श्रेणियां बना सकते हैं। अपनी पसंद के ब्लॉग अलग श्रेणी में, हिंदी ब्लॉगिंग दुनिया के पुरोधा अलग श्रेणी में, तकनीकी ज्ञान वाले अलग आदि-इत्यादि। फिर भी कुछ लोग कट जाएं तो कटने दीजिए क्योंकि इतनी उदारता भी ठीक नहीं कि बिच्छू को अपने हाथ पर बैठा कर रखा जाए।
एक सवाल यह भी है कि ब्लॉग में जगह की सीमा है तो हम आखिर कितनों का लिंक दे सकते हैं? तो इस मुश्किल को सागरचंद नाहर जी ने सुलझा दिया। उन्होंने लिंक की रोलिंग व्यवस्था का जो तरीका सुझाया है, वह बेहद दिलचस्प है। हालांकि अभी तक इसे मैं लागू नहीं कर पाया हूं, लेकिन फुरसत मिलते ही ज़रूर इस नई जानकारी से अपने ब्लॉग का लुक बदलूंगा। वैसे, ब्लॉग का साफ-सुथरा लुक भी बहुत मायने रखता है। मिंट के लेख में बहुत सारी और भी बातें हैं। हालांकि संदर्भ अंग्रेजी के ब्लॉगों का है, लेकिन इससे हम भी अपने काम की चीजें निकाल सकते हैं।
Comments
यह विचार बहुत बार व्यक्त किया जाता रहा है. कई बार कोशिश हुई है. पहले अक्षरग्राम से एल तैयार स्क्रिप्ट भी मिलती थी. उसे लगा लो, सबके ब्लॉग उसमें आ जाते थे, हाँ साँप बिच्छू के भी :)
आपने बहुत सही कहा और इस बात को अपनाते/मानते हुए अपना पहला ब्लॉगरोल तैयार कर लिया है और साईडबार में लगा भी दिया है। जो कि अभी प्राथमिक स्थिती में है अभी बहुत से लिंक जोड़ने बाकी है।
आपने मैरे जिस लेख का जिक्र इस पोस्ट में किया है वह कुछ ज्यादा ही जटिल और तकनीकी हो गया था। सो मैने उस को काट कर ब्लोगरोल के लिंक की फाइल को अपलोड कर दिया है। यह फाइल मात्र 2Kb की है।
जिस पर राईट क्लिक कर आप फाईल को अपने कम्प्यूटर पर सेव कर सकते हैं, और अपने मनचाहे लिंक जोड़कर अपने चिट्ठे के साईडबार में लगा सकते हैं।
ब्लॉगिंग कम्युनिटी का फैलाव ऐसे ही तो होता है। कुछ चिट्ठाकार अपने चिट्ठे के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष यत्न भी करते हैं और दूसरे चिट्ठों पर अपने चिट्ठे का लिंक देने के लिए अनुरोध भी करते हैं। यह कुछ हद तक परस्पर सहयोग जैसा मामला भी है। लेकिन कुछ चिट्ठाकार इस मामले में संकीर्णता दिखाते हैं, और दूसरों के लिंक देने के लिए जो मानदंड अपनाते हैं, उसमें गुटबाजी की बू भी आती है।
sir
can you please see this blog and give your link here we made this blog after reading your post
thank you
मैं अपने ब्लॉग मे "मेरी पसंद" को समय समय पर अपडेट करता रहता हूं।
मैं एक काम तो करता हूं - अपनी पोस्ट में सयास लिंक देने का यत्न करने लगा हूं।
घुघूती बासूती
अनामदास
अब सागर भाई वाली स्कीम के तहत कुछ मामला फिट करता हूँ.