Wednesday 10 December, 2008

अजी हां, मारे गए गुलफाम

ब्लॉग की दुनिया से वनवास के इस दौर में रेणु की कहानी मारे गए गुलफाम और उस पर बनी फिल्म तीसरी कसम का वह अंश बराबर याद आ रहा है जहां कहानी का नायक हीरामन महुआ घटवारिन की कहानी सुनाता है। जिस तरह महुआ घटवारिन को सौदागर उठा ले गया था, वही हालत मुझे अपनी हो गई लगती है। एक मीडिया ग्रुप ने चंद हजार रुपए ज्यादा देकर मुझे उस दुनिया से छीन लिया है जहां मैं चहकता था, लहकता था, बहकता था। लिखना तो छोड़िए, देख भी नहीं पाता कि हिंदी ब्लॉग की दुनिया में चल क्या रहा है। नहीं पता कि समीर भाई कितने सक्रिय है, ज्ञानदत्त जी के मन की हलचल क्या है, कोलकाता वाले बालकिशन क्या कर रहे हैं, कोई टिप्पणियों में समीरलाल को फतेह करने की मुहिम पर निकला कि नहीं? मुंबई में रहते हुए भी न अजदक, न निर्मल आनंद, न ठुमरी और न ही विनय-पत्रिका का हाल मिल पाता है। हां, गाहे-बगाहे विस्फोट की झलक जरूर देख लेता हूं क्योंकि यकीन है कि वहां कोई विचारोत्तेजक बहस चल रही होगी।

क्या करूं? लिखना भी चाहता हूं और पढ़ना भी। लेकिन नौकरी के चक्कर में फुरसत ही नहीं मिल रही। पहले अपना हफ्ता दो दिन का और काम का हफ्ता पांच दिन का था। अब अपना हफ्ता एक दिन का और काम का हफ्ता छह दिन का हो गया है। अपने हिस्से के एक दिन में हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में लगी बेटी को पढ़ाना पड़ता है। फिर, क्योंकि काम सीखने और सिखाने का है, टीम को बनाने और निखारने का है तो दिन में कम से कम 10 घंटे देने पड़ते हैं। कभी-कभी तो 12 घंटे चाकरी में निकल जाते हैं। आने-जाने के दो घंटे ऊपर से। सुबह उठते ही आर्थिक घटनाक्रमों की थाह लेने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो सोते वक्त तक जारी रहता है। सपने में भी रिजर्व बैंक के किसी सर्कुलर का जोड़-घटाना, सेबी की किसी पहल की पड़ताल या बैंकों के किसी कदम की ताल गूंजती रहती है।

मन को यह समझाकर तसल्ली देता हूं कि आर्थिक और वित्तीय जगत में गहरे पैठकर थाह ले रहा हूं। बीमारी चरम पर है तो सारे रहस्य को तार-तार करने का यही मौका है। इसी से वह समझ हासिल होगी कि इसे बदला कैसा जाए। अब मैं कोई वामपंथी विचारक या लिख्खाड़ तो हूं नहीं जिसके पास सारे जवाब तैयार रहते हैं और जो सवालों को आमंत्रित करता फिरता है। न ही मैं अपने रुपेश श्रीवास्तव की तरह हूं कि नब्ज पर हाथ रखते ही जिद्दी से जिद्दी बीमारी का निदान कर दूं। तो, कोशिश में लगा हूं कि कॉरपोरेट जगत से लेकर बैंकिंग की दुनिया की अद्यतन समझ हासिल कर सकूं। उसी हिसाब से अपने अखबार बिजनेस भास्कर में लिखता भी हूं। इन रिपोर्टों को ब्लॉग पर डाल नहीं सकता क्योंकि ऑफिस में विंडोज एक्सपी होते हुए भी उस पर यूनिकोड नहीं चढ़ा पा रहा हूं। कई बार आईटी विभाग की मदद ली, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।

काम के दौरान द्वंद्व, संघर्ष और टकराव की स्थितियां भी आती हैं। लेकिन अपने ही लेख कण-कण में संघर्ष की याद कर तनावमुक्त हो जाता हूं। दोस्तों! नई-नई अनुभूतियों और संवेदनाओं का आना पहले की तरह अनवरत जारी है। बस, ब्लॉग पर दर्ज कर आप लोगों का सानिध्य नहीं ले पा रहा हूं। लेकिन यह स्थिति स्थाई नहीं है। यही बात आपसे ज्यादा खुद को जताने के लिए आज जिद करके लिखने बैठ गया। न लिख पाने की सफाई पूरी हुई। आगे से कोई गिला-शिकवा नहीं। ठोस बातें लिखूंगा, जिससे मेरी और आपकी दुनिया थोड़ी ज्यादा धवल और विस्तृत हो सके।
फोटो सौजन्य: m.paoletti

14 comments:

सतीश पंचम said...

अजी हम भी कभी-कभी इसी तरह से साईडिया जाते हैं। नून तेल लकडी के चक्कर में क्रमश टाटा नमक, पेटरउल डीजल के भाव और गैस के चढते उतरते दामों में बिजी रहते हैं.....का किया जाय...पर करना पडता है....लगे रहिये....जोडना घटाना तो लगिये रहेगा :)

इस रोज-रोज की जिंदगानी पर कभी-कभी तीसरी कसम का वो गीत गाया किजिये -


...तेरी बाँकी अदा पर मैं खुद हूँ फिदा ,

तेरी चाहत को दिलबर बयाँ क्या करूँ,

यही ख्वाहिश है कि तू मुझको देखा करे

और दिलोजान मैं तुझको देखा करूँ....
..किर्र...र्र र्र र्र ...कडडडडर्र घन-घन-धडाम..


- जिंदगी खुद हँस-हँस कर लोटपोट हो जायेगी :)

azdak said...

जय रघुबर धनराम गोसाईं..

विधुल्लता said...

समय को थोडा सा ,बचा कर लिखें ....

अफ़लातून said...

उलफ़त भी रास ना आई ?

अभय तिवारी said...

आप की कमी खलती है.. लौट आइये!

सुनीता शानू said...

समय सचमुच भाग रहा है, मगर फ़िर भी कुछ समय निकालना ही होगा...

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत दिन बाद दिखे बन्धु! हम सब से कुछ नाराज थे?

प्रवीण त्रिवेदी said...

इश्वर से प्रार्थना करेंगे की आप जल्द सक्रिय हो इस बवाल -ऐ -जान में!!!!

VIMAL VERMA said...

aapka inzaar rahata hai...kuchh to upaay karna hoga mitrawar|

Udan Tashtari said...

आप दिखे-थोड़ी राहत आई. उम्मीद भी जागी कि चिट्ठाकारी के आकर्षण से दूरी बनाई नहीं-व्यवसायिक मजबूरियों के कारण हैं. समय के साथ सेटल हो जायेंगे तो पुनः पूर्ण प्रवाह में वापस आयेंगे, इसकी ओर आशान्वित हो चला हूँ.

सक्रियता आपके स्नेह से बरकरार है. बेटे की शादी के सिलसिले में भारत में हूँ, अतः नेट को वांछित समय नहीं दे पा रहा हूँ मगर दूरी फिर भी नहीं है. समय बे समय मौका तड़ ही लेता हूँ.

आपको शुभकामनाऐं-जल्द सेटल हों और लौटें.

अनूप शुक्ल said...

सही है। ठोस कदम/लेखन का इंतजार है।

बोधिसत्व said...

आपको तो कई बार खोज कर थक हर गया हूँ...आपका लिखा पढ़ना अच्छा लगता है

ghughutibasuti said...

अनुपस्थिति का कारण जान और यह जान कि चिट्ठा लेखन से मोह भंग कारण नहीं था अच्छा लगा । स्वागत है ।
घुघूती बासूती

Unknown said...

भाई पहली बार आपको पढ़ा है. मजा आ गया. बधाई.
मुकुंद

097814-97818