Thursday 27 September, 2007

मैंने देखी आस्तीन के अजगर की मणि, कल ही

आस्तीन के सांप के बारे में आपने ही नहीं, मैंने भी खूब सुना है। आस्तीन के सांपों से मुझे भी आप जैसी ही नफरत है। लेकिन कल मैंने आस्तीन का अजगर देखा और यकीन मानिए, दंग रह गया। मैंने उसकी मणि को छूकर-परखकर देखा और पाया कि आस्तीन के इस अजगर में छिपा हुआ है एक उभरता हुआ प्रतिभाशाली लेखक।
माफ कीजिएगा। इस नए ब्लॉगर से आपका परिचय कराने के लिए इस पोस्ट में चौकानेवाला शीर्षक लगाकर मैं आपको यहां तक खींच कर लाया हूं। क्या करता मैं? इस ब्लॉगर ने अपना नाम ही आस्तीन का अजगर रखा है और इसके बारे में मैं और कुछ जानता ही नहीं। इसके प्रोफाइल से पता ही नहीं लगता कि इसका असली नाम क्या है, इसकी उम्र क्या है, रहता कहां है। और इसने अपने नए-नवेले ब्लॉग का नाम भी रखा है – अखाड़े का उदास मुगदर। मैंने धड़ाधड़ इस ब्लॉग की सभी पोस्ट पढ़ डाली और तभी पता चला कि इनके लेखन में कितना दम है, इनकी सोच में कितनी ताज़गी है। कुछ बानगी पेश है।
पहले जिये का कोई अगला पल नहीं होता की कुछ लाइनें देख लीजिए।
"कभी गौतम बुद्ध ने पीछे मुड़कर अपने दुनियादार अतीत को देखा होगा भी तो शायद किसी दृष्टांत के साथ ही. जो गैरजरूरी था, अस्वीकार्य था वह छोड़ दिया गया है, अब उसके लिए परेशान होने की क्या जरूरत है. जो सामने है उसे देखो और अगर तुम जी रहे हो उसे जो हाथ में है, तो फिर परेशान होने की क्या बात है. मेरा सोच ये है कि दुख हो या सुख अगर असली है तो इतना घना होगा कि आप सोच विचार करने लायक ही नहीं होंगे....
अक्सर वही दिन होते हैं, जब हमें सिर झुकाए सूरजमुखी और टूटे पर वाले परिंदे दिखलाई पड़ते हैं."
अब दूसरी पोस्ट लौटने की कोई जगह नहीं होती की एक झलक देखिए...
"कुछ खास लोगों के साथ आप अपने जिंदगी के सबसे अच्छे पल, सूर्यास्त, सबसे अच्छी शराब बांटना चाहते हैं. आप पहले तो ये साबित करना चाहते हैं कि वे आपके लिए खास हैं और दूसरा ये कि आप ऐसे किसी खास मुकाम तक पंहुच चुके हैं जो लोगों को जताना बताना जरूरी है. वरना उस चीज की कीमत ही वसूल नहीं होती, जो आपने हासिल की हो."
इस ब्लॉग की ताज़ातरीन पोस्ट है अमहिया के एक जीनियस दोस्त को चिट्ठी। इसे आप खुद पढ़े। इससे पहले की कल 26 सितंबर वाली पोस्ट में सुनीता विलियम्स के गुजरात आने और नरेंद्र मोदी से मिलने-जुलने का रोचक विश्लेषण किया गया है। मुझे चारों पोस्टों को पढ़कर यह पता चला है कि आस्तीन का अजगर साइंस का विद्यार्थी रहा है। शायद वह भोपाल के किसी मीडिया संस्थान में काम करता है। बस, इसके अलावा उसका ब्लॉग कुछ नहीं बताता। हां, पूत के पांव पालने में ही दिख गए हैं। आस्तीन के अजगर ने अपनी मणि की झलक दिखला दी है। शायद आपको भी इसके ब्लॉग पर जाकर मेरे जैसा ही कुछ लगे। खैर, जो भी हो। इस नए अपरिचित ब्लॉगर का तहेदिल से स्वागत और उसके दमदार लेखन की शुभकामनाएं।

6 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

बड़ा बेनाम सा ब्लॉग है. जब तक बन्दे का नाम-गांव पता न चले तब तक यही लगता है कि जनाब ज्यादा होशियार हैं या फिर ज्यादा शर्मीले.

आस्तीन का अजगर said...

अनिल जी बहुत अच्छा लगा आपकी दरियादिली देखकर. मेहरबानी बनाए रखिएगा. और मैं आपका ये पोस्ट अपने ब्लॉग में आपके नाम से लगाना चाह रहा था. एक तमगे की तरह. इज़ाजत मिले और रास्ता भी.

अनिल रघुराज said...

मित्र, यकीनन आप इसे अपने ब्लॉग पर लगा सकते हैं। और रास्ता तो यही है कि यहां से कॉपी करके पेस्ट कर दें।

रवि रतलामी said...

आपके चिट्ठे पर दो चीज़ें तकलीफ़ देती हैं -

वर्ड वेरीफ़िकेशन. गूगल तंत्र आजकल होशियार है, और आमतौर पर वर्ड वेरीफ़िकेशन की आवश्यकता नहीं के बराबर ही है. गुजारिश करूंगा कि उसे हटा दें, यदि कोई समस्या न हो. दूसरा ये कि आपका रेडियो पेज लोड होते ही बजता है. इससे पेज लोड होने में ज्यादा समय तो लगता ही है, नाहक ही बैंडविड्थ खराब होता है - खासकर तब जब मैं इसे एक बार सुन चुका होता हूँ. तो कृपया इसे बाइ डिफ़ॉल्ट बंद रखें तो बेहतर

अनिल रघुराज said...
This comment has been removed by the author.
अनिल रघुराज said...

रवि जी, आपकी सलाह मानते हुए मैंने दोनों काम कर दिए। सुझाव के लिए धन्यवाद।