40 करोड़ बहिष्कृत हैं कल्याणकारी राज्य से
हम भाग्यशाली हैं कि हम देश के संगठित क्षेत्र के मजदूर या कर्मचारी हैं। हम देश के उन ढाई करोड़ लोगों में शामिल हैं जिनको कैशलेस हेल्थ इंश्योरेंस, पीएफ और पेंशन जैसी सुविधाएं मिलती हैं। पेंशन न भी मिले तो हम हर साल दस हजार रुपए पेंशन फंड में लगाकर टैक्स बचा सकते हैं। हमारे काम की जगहों पर आग से लेकर आकस्मिक आपदाओं से बचने के इंतज़ाम हैं। बाकी 40 करोड़ मजदूर तो अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था उनकी कोई कद्र नहीं करती। इनमें शामिल हैं प्लंबर और मिस्त्री से लेकर कारपेंटर, घर की बाई से लेकर कचरा बीननेवाले बच्चे, बूढ़े और औरतें, गांवों में सड़क पाटने से लेकर नहरें खोदने और खेतों में काम करनेवाले मजदूर।
आप यकीन करेंगे कि आजादी के साठ साल बाद भी देश के कुल श्रमिकों के 94 फीसदी असंगठित मजदूर हमारे कल्याणकारी राज्य से बहिष्कृत हैं? लगातार कई सालों से मचते हल्ले के बाद यूपीए सरकार ने इनकी सामाजिक सुरक्षा को अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शुमार तो कर लिया। लेकिन जब अमल की बात आई तो महज एक विधेयक लाकर खानापूरी कर ली। उसने संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन असंगठित क्षेत्र श्रमिक सामाजिक सुरक्षा विधेयक 2007 पेश तो कर दिया। लेकिन इसमें खुद ही असंगठित क्षेत्र के लिए बनाए गए राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों को नज़रअंदाज कर दिया।
अर्थशास्त्री अर्जुन सेनगुप्ता की अध्यक्षता में बने इस आयोग ने सिफारिश की थी कि खेती और खेती से इतर काम करनेवाले मजदूरों के लिए अलग-अलग कानून बनाया जाए। लेकिन सरकार को लगा कि जैसे यह कोई फालतू-सी बात हो। आयोग ने अपने अध्ययन में यह भी पाया था कि देश के करीब 83 करोड़ 60 लाख लोग हर दिन 20 रुपए से कम में गुजारा करते हैं। क्या 110 करोड़ आबादी के तीन-चौथाई से ज्यादा हिस्से की ये हालत 9 फीसदी आर्थिक विकास दर को बेमतलब साबित करने के काफी नहीं है?
वैसे, बड़ी-बड़ी बातें करने में हमारी सरकार किसी से पीछे नहीं है। श्रम मंत्री ऑस्कर फर्नांडीज का दावा है कि सरकार के पास असंगठित मजदूरों के लिए 11 स्कीमें हैं, जिनमें आम आदमी बीमा योजना, राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना और हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम शामिल हैं। सरकार अगले पांच सालों में 6 करोड़ परिवारों को हेल्थ इंश्योरेंस देगी, जिसका फायदा 30 करोड़ से ज्यादा मजदूरों को मिलेगा। हर परिवार साल भर में 30,000 रुपए का मुफ्त इलाज करा सकेगा। गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हर 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग को केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से 200-200 रुपए की मासिक पेंशन दी जाएगी। दुर्घटना में मजदूर के मरने या पूरी तरह विकलांग हो जाने पर उसके आश्रित को बीमा योजना से 75,000 रुपए दिए जाएंगे। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के कल्याण पर सरकार कुल 35,000 से 40,000 करोड़ रुपए का बोझ उठाने को तैयार है।
लेकिन देश की केंद्रीय मजदूर यूनियनों को ये सारी बातें चुनावी सब्ज़बाग से ज्यादा कुछ नहीं लगतीं। उनका कहना है कि विधेयक में केंद्र और राज्यों में सलाहकार बोर्ड बनाने जैसी बातें ही की गई हैं, चंद कल्याणकारी योजनाओं की गिनती की गई है। कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इन यूनियनों ने तय किया है कि वे 4 और 5 दिसंबर को पूरे देश में इस विधेयक के खिलाफ सत्याग्रह करेंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये सत्याग्रह हमारी अर्थव्यवस्था को कल्याणकारी राज्य से बहिष्कृत 40 करोड़ लोगों को उनका देय देने के लिए प्रेरित करेगा।
आप यकीन करेंगे कि आजादी के साठ साल बाद भी देश के कुल श्रमिकों के 94 फीसदी असंगठित मजदूर हमारे कल्याणकारी राज्य से बहिष्कृत हैं? लगातार कई सालों से मचते हल्ले के बाद यूपीए सरकार ने इनकी सामाजिक सुरक्षा को अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शुमार तो कर लिया। लेकिन जब अमल की बात आई तो महज एक विधेयक लाकर खानापूरी कर ली। उसने संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन असंगठित क्षेत्र श्रमिक सामाजिक सुरक्षा विधेयक 2007 पेश तो कर दिया। लेकिन इसमें खुद ही असंगठित क्षेत्र के लिए बनाए गए राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों को नज़रअंदाज कर दिया।
अर्थशास्त्री अर्जुन सेनगुप्ता की अध्यक्षता में बने इस आयोग ने सिफारिश की थी कि खेती और खेती से इतर काम करनेवाले मजदूरों के लिए अलग-अलग कानून बनाया जाए। लेकिन सरकार को लगा कि जैसे यह कोई फालतू-सी बात हो। आयोग ने अपने अध्ययन में यह भी पाया था कि देश के करीब 83 करोड़ 60 लाख लोग हर दिन 20 रुपए से कम में गुजारा करते हैं। क्या 110 करोड़ आबादी के तीन-चौथाई से ज्यादा हिस्से की ये हालत 9 फीसदी आर्थिक विकास दर को बेमतलब साबित करने के काफी नहीं है?
वैसे, बड़ी-बड़ी बातें करने में हमारी सरकार किसी से पीछे नहीं है। श्रम मंत्री ऑस्कर फर्नांडीज का दावा है कि सरकार के पास असंगठित मजदूरों के लिए 11 स्कीमें हैं, जिनमें आम आदमी बीमा योजना, राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना और हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम शामिल हैं। सरकार अगले पांच सालों में 6 करोड़ परिवारों को हेल्थ इंश्योरेंस देगी, जिसका फायदा 30 करोड़ से ज्यादा मजदूरों को मिलेगा। हर परिवार साल भर में 30,000 रुपए का मुफ्त इलाज करा सकेगा। गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हर 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग को केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से 200-200 रुपए की मासिक पेंशन दी जाएगी। दुर्घटना में मजदूर के मरने या पूरी तरह विकलांग हो जाने पर उसके आश्रित को बीमा योजना से 75,000 रुपए दिए जाएंगे। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के कल्याण पर सरकार कुल 35,000 से 40,000 करोड़ रुपए का बोझ उठाने को तैयार है।
लेकिन देश की केंद्रीय मजदूर यूनियनों को ये सारी बातें चुनावी सब्ज़बाग से ज्यादा कुछ नहीं लगतीं। उनका कहना है कि विधेयक में केंद्र और राज्यों में सलाहकार बोर्ड बनाने जैसी बातें ही की गई हैं, चंद कल्याणकारी योजनाओं की गिनती की गई है। कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इन यूनियनों ने तय किया है कि वे 4 और 5 दिसंबर को पूरे देश में इस विधेयक के खिलाफ सत्याग्रह करेंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये सत्याग्रह हमारी अर्थव्यवस्था को कल्याणकारी राज्य से बहिष्कृत 40 करोड़ लोगों को उनका देय देने के लिए प्रेरित करेगा।
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