साहस की पत्रकारिता या बेशर्म दलाली
इंसान भरोसा करे तो किस पर? अभी तक देश के बहुतेरे लोगों की तरह मैं भी इंडियन एक्सप्रेस को साहस की पत्रकारिता का प्रतीक मानता था। जिस तरह भ्रष्टाचार के खिलाफ वह मुहिम चलाता है, लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित करनेवाली रिपोर्टें छापता है, बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक को नहीं बख्शता, उससे रामनाथ गोयनका की इस विरासत की अलग साख बन चुकी है। लेकिन अमेरिकी परमाणु संधि को बचाने के अंधे उन्माद में यह अखबार जिस हद तक सफेद झूठ का ढिंढोरा पीटने पर उतर आया है, उससे मेरी नज़र में इसकी साख अब दलाली की खाल से ढंके भेड़िए जैसी हो गई है।
पिछले हफ्ते 5 सितंबर के अंक में इसने एक संपादकीय लिखा, जिसका शीर्षक था – 40,000 मेगावॉट का सवाल। इसमें स्थापित किया गया है कि अमेरिकी संधि की बदौलत भारत 40,000 मेगावॉट परमाणु बिजली बना सकता है, लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक के चक्कर में भयंकर बिजली संकट से जूझते देश और जनता को इस सुविधा से महरूम रखना चाहती हैं। भावुक तर्कों से साबित किया गया कि ये पार्टियां कितनी जनविरोधी हैं। इतने बड़े आंकड़े पर मैं चौंका ज़रूर था। लेकिन मुझे लगा कि जब इंडियन एक्सप्रेस के संपादक-गण ऐसा कह रहे हैं तो सच ही कह रहे होंगे और अगर ये आंकड़ा सही है तो किसी भी राजनीतिक दल को अपने अल्पकालिक हितों के लिए भारतीय अवाम के दीर्घकालिक हितों की कुर्बानी नहीं देनी चाहिए।
लेकिन आज मैंने टाइम्स ऑफ इंडिया में रिपोर्ट पढ़ी कि किसी छोटे-मोटे आम बुद्धिजीवी ने नहीं, बल्कि भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के पूर्व प्रमुख ए एन प्रसाद ने 40,000 मेगावॉट तो छोड़ दीजिए, 20,000 मेगावॉट परमाणु विद्युत हासिल करने तक के लक्ष्य को असंभाव्य बता दिया है। उन्होंने कहा कि साल 2020 तक 20,000 मेगावॉट परमाणु विद्युत हासिल करने की बात गरीबी हटाओ के नारे जैसी है और परमाणु वैज्ञानिकों को इस तरह की नारेबाज़ी नहीं करनी चाहिए।
ए एन प्रसाद ने शुक्रवार को स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में बताया कि इस समय देश के 15 रिएक्टर कुल 3300 मेगावॉट बिजली बना रहे हैं। जो रिएक्टर अभी निर्माणाधीन हैं, उनसे 1400 मेगावॉट बिजली बनेगी। तमिलनाडु के कुडुनकुलम में दो लाइट वॉटर रिएक्टर बन रहे हैं, जिनसे 2000 मेगावॉट बिजली बनेगी। इसके अलावा कलपक्कम में 500 मेगावॉट का फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बन रहा है। इन सबसे कुल मिलाकर ज्यादा से ज्यादा 7000 मेगावॉट परमाणु बिजली बन पाएगी।
20,000 मेगावॉट के लक्ष्य को पूरा करने के लिए और 13,000 मेगावॉट की ज़रूरत पड़ेगी। कहा जा रहा है कि इसके लिए चार फास्ट ब्रीडर रिएक्टर, 700 मेगावॉट के आठ रिएक्टर और 6000 मेगावॉट आयातित रिएक्टरों से हासिल किए जाएंगे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगले 12 सालों में ऐसा कर पाना असंभव है। सोचिए, जब जानेमाने परमाणु वैज्ञानिक 20,000 मेगावॉट के लक्ष्य को असंभव बता रहे हैं, तब इंडियन एक्सप्रेस में चाकरी करनेवाले संपादक 40,000 मेगावॉट की बात करके जनकल्याण के नाम पर किसको फुसला रहे हैं?
इसी संगोष्ठी में रक्षा विशेषज्ञ भरत करनाड ने बताया कि अमेरिका इस संधि के तहत भारत को केवल रिएक्टर की टेक्नोलॉजी देगा और इसमें ईंधन की सप्लाई पर कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। इस प्रावधान के चलते भारत परमाणु ऊर्जा के लिए पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर हो जाएगा। हम हज़ारों करोड़ की लागत से रिएक्टर लगाएंगे और अमेरिका को जब भी लगेगा कि हम संधि का पालन नहीं कर रहे, वह इन्हें डिएक्टीवेट कर देगा।
करनाड का कहना था कि भारत के पास थोरियम का पर्याप्त भंडार है और उसे परमाणु ऊर्जा में इसी ईंधन का इस्तेमाल करना चाहिए। इस मौके पर एटॉमिक एनर्जी कमीशन के पूर्व चेयरमैन पी के अयंगर ने भी संधि के खिलाफ जमकर तर्क दिए और साफ कहा कि मनमोहन सिंह सरकार को इस संधि को कतई आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। सोचिए, साहस की पत्रकारिता का दावा करनेवाला इंडियन एक्सप्रेस कितनी बेशर्मी से अमेरिका के व्यावसायिक और राजनीतिक हितों का पोषण करने में जुटा हुआ है।
पिछले हफ्ते 5 सितंबर के अंक में इसने एक संपादकीय लिखा, जिसका शीर्षक था – 40,000 मेगावॉट का सवाल। इसमें स्थापित किया गया है कि अमेरिकी संधि की बदौलत भारत 40,000 मेगावॉट परमाणु बिजली बना सकता है, लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक के चक्कर में भयंकर बिजली संकट से जूझते देश और जनता को इस सुविधा से महरूम रखना चाहती हैं। भावुक तर्कों से साबित किया गया कि ये पार्टियां कितनी जनविरोधी हैं। इतने बड़े आंकड़े पर मैं चौंका ज़रूर था। लेकिन मुझे लगा कि जब इंडियन एक्सप्रेस के संपादक-गण ऐसा कह रहे हैं तो सच ही कह रहे होंगे और अगर ये आंकड़ा सही है तो किसी भी राजनीतिक दल को अपने अल्पकालिक हितों के लिए भारतीय अवाम के दीर्घकालिक हितों की कुर्बानी नहीं देनी चाहिए।
लेकिन आज मैंने टाइम्स ऑफ इंडिया में रिपोर्ट पढ़ी कि किसी छोटे-मोटे आम बुद्धिजीवी ने नहीं, बल्कि भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के पूर्व प्रमुख ए एन प्रसाद ने 40,000 मेगावॉट तो छोड़ दीजिए, 20,000 मेगावॉट परमाणु विद्युत हासिल करने तक के लक्ष्य को असंभाव्य बता दिया है। उन्होंने कहा कि साल 2020 तक 20,000 मेगावॉट परमाणु विद्युत हासिल करने की बात गरीबी हटाओ के नारे जैसी है और परमाणु वैज्ञानिकों को इस तरह की नारेबाज़ी नहीं करनी चाहिए।
ए एन प्रसाद ने शुक्रवार को स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में बताया कि इस समय देश के 15 रिएक्टर कुल 3300 मेगावॉट बिजली बना रहे हैं। जो रिएक्टर अभी निर्माणाधीन हैं, उनसे 1400 मेगावॉट बिजली बनेगी। तमिलनाडु के कुडुनकुलम में दो लाइट वॉटर रिएक्टर बन रहे हैं, जिनसे 2000 मेगावॉट बिजली बनेगी। इसके अलावा कलपक्कम में 500 मेगावॉट का फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बन रहा है। इन सबसे कुल मिलाकर ज्यादा से ज्यादा 7000 मेगावॉट परमाणु बिजली बन पाएगी।
20,000 मेगावॉट के लक्ष्य को पूरा करने के लिए और 13,000 मेगावॉट की ज़रूरत पड़ेगी। कहा जा रहा है कि इसके लिए चार फास्ट ब्रीडर रिएक्टर, 700 मेगावॉट के आठ रिएक्टर और 6000 मेगावॉट आयातित रिएक्टरों से हासिल किए जाएंगे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगले 12 सालों में ऐसा कर पाना असंभव है। सोचिए, जब जानेमाने परमाणु वैज्ञानिक 20,000 मेगावॉट के लक्ष्य को असंभव बता रहे हैं, तब इंडियन एक्सप्रेस में चाकरी करनेवाले संपादक 40,000 मेगावॉट की बात करके जनकल्याण के नाम पर किसको फुसला रहे हैं?
इसी संगोष्ठी में रक्षा विशेषज्ञ भरत करनाड ने बताया कि अमेरिका इस संधि के तहत भारत को केवल रिएक्टर की टेक्नोलॉजी देगा और इसमें ईंधन की सप्लाई पर कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। इस प्रावधान के चलते भारत परमाणु ऊर्जा के लिए पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर हो जाएगा। हम हज़ारों करोड़ की लागत से रिएक्टर लगाएंगे और अमेरिका को जब भी लगेगा कि हम संधि का पालन नहीं कर रहे, वह इन्हें डिएक्टीवेट कर देगा।
करनाड का कहना था कि भारत के पास थोरियम का पर्याप्त भंडार है और उसे परमाणु ऊर्जा में इसी ईंधन का इस्तेमाल करना चाहिए। इस मौके पर एटॉमिक एनर्जी कमीशन के पूर्व चेयरमैन पी के अयंगर ने भी संधि के खिलाफ जमकर तर्क दिए और साफ कहा कि मनमोहन सिंह सरकार को इस संधि को कतई आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। सोचिए, साहस की पत्रकारिता का दावा करनेवाला इंडियन एक्सप्रेस कितनी बेशर्मी से अमेरिका के व्यावसायिक और राजनीतिक हितों का पोषण करने में जुटा हुआ है।
Comments
पर नाभिकीय ऊर्जा की दिशा में तेज कदम रखने की जरूरत अवश्य है. बहुत देर की जा चुकी है और 9-10 प्रतिशत विकास दर सस्टेन करने के लिये मात्र पारम्परिक साधनों से काम नहीं चल पायेगा.
आपकी पोस्ट बहस का हिस्सा है, बहस का पटाक्षेप नहीं!
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
बहस इस पर होने की बजाय कि परमाणु उर्जा चाहिये या नहीं बहस इस पर होने की जरूरत है कि विकास का यह माडल हमें चाहिए या नहीं?