ये जो समय है, आखिर बला क्या है?
समय क्या है? एक बच्चा तक इस सवाल का जवाब दे सकता है, मगर किसी बड़े काबिल सैद्धांतिक भौतिकशास्त्री के लिए भी समय की संतोषजनक परिभाषा दे पाना मुश्किल है। वह नहीं बता सकता कि समय की शुरुआत कब हुई और इसका अंत कब होगा और क्या दार्शनिक अर्थों में समय का वाकई कोई वजूद है भी कि नहीं। फिर भी समय की माप सारे विज्ञान का आधार है क्योंकि वैज्ञानिक समय के संदर्भ में ही बदलाव का अध्ययन कर सकते हैं।
समय दुनिया के सबसे गहरे रहस्यों में से एक है। समय के बारे में सोचना है तो बस्स उस दुनिया की कल्पना कर लीजिए जिसमें समय ही न हो। समय-विहीन दुनिया जहां की तहां ठहर जाएगी। लेकिन ऐसा संभव नहीं है। बदलाव तो होते ही हैं। जिस दीवार को हम जस का तस देखते हैं, बीस सालों तक देखते हैं, वह धीरे-धीरे मिटती रहती है। तब और अब में फर्क आ जाता है। हम अपने बच्चे को बड़ा होते नहीं देख पाते। लेकिन छह महीने बाद ही आया कोई बाहर का आदमी बता देता है कि बच्चा पहले से बदल गया है। पेड़ से सूखा पत्ता किसी एक पल गिरता है, लेकिन उस पल के आने की प्रक्रिया कोंपल बनने से ही शुरू हो जाती है।
मनुष्य के शरीर की जीव-वैज्ञानिक घड़ी ज्यादा सूक्ष्म होती है, लेकिन उसमें कई सारी घड़ियों की टिक-टिक एक साथ चलती रहती है। स्वस्थ दिल एक मिनट में 75 बार धड़कता है, फेफड़े नियमित अंतराल पर अपने अंदर हवा भरते हैं और दिमाग दिन के खास हिस्सों में ज्यादा साफ तरीके से सोचता है। शरीर की ज्यादातर घड़ियां चौबीस घंटे के हिसाब से चलती है।
इंसान सो भी जाता है तब भी उसके मस्तिष्क के विद्युत आवेग अपनी लय में चलते रहते हैं। शरीर का तापमान हाइपोथैलामस से नियंत्रित होता है और यह हर दिन बदलता है। आम तौर पर यह सामान्य नींद के दौरान रात के एक बजे से लेकर सुबह सात बजे तक अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है। यह प्राकृतिक लय-ताल भंग होती है तो इंसान के भाव-संसार पर असर पड़ता है। रात में काम करनेवाले लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
समय जीवन को निरंतरता और स्वरूप देता है। लेकिन वही समय विनाश और मौत भी लाता है। सुबह की लालिमा दोपहर आते-आते ओझल हो जाती है, रात को उजाला अंधेरे में तब्दील हो जाता है। इस सृष्टि में कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसके बारे में कहा जा सकता है कि वह शाश्वत है, हमेशा के लिए है, कालातीत है।
विज्ञान के सभी अमूर्तनों में हमारे लिए अगर सबसे ज्यादा परिचित कुछ है तो वह पदार्थ, परिस्थिति या बल नहीं, बल्कि सर्वव्यापी समय है। समय महान शिक्षक है, महान चिकित्सक है, बड़े-बड़े घावों को भर देता है, बड़ी-बड़ी विषमताओं को पाट देता है। हम चाहें तो समय को बचा सकते हैं और चाहें तो बरबाद कर सकते हैं। लियो टॉलस्टॉय ने कहा था – धैर्य और समय दो सबसे सशक्त योद्धा हैं।
मगर, हम समय को कायदे से परिभाषित नहीं कर सकते। मनोवैज्ञानिक के लिए समय चेतना का ऐसा पहलू है जिससे हम अपने अनुभवों को क्रमबद्ध करते हैं। भौतिकशास्त्री के लिए समय द्रव्यमान और दूरी के अलावा तीसरा मूलभूत गुण है, जिनके जरिए ब्रह्माण्ड की किसी चीज का वर्णन किया जा सकता है। खगोलशास्त्री ब्रह्मांड के इतिहास को अरबो सालों की यात्रा के रूप में समझते हैं। जीव-वैज्ञानिकों की मानें तो जानवर और पेड़-पौधे भी समय को मापते हैं। यहां तक कि सबसे छोटे एक कोशिकावाले जीवाणु भी अंतर और बाहर की दुनिया में अपनी जीव-वैज्ञानिक घड़ियों के जरिए सामंजस्य बैठाते हैं। दार्शनिक के लिए समय की परिभाषा के बहुत सारे रूप हैं।
विद्वान लोगों ने समय के बारे में ढेरों किताबें लिखी हैं। लेकिन समय की कोई ऐसी परिभाषा नहीं है जो हर विद्वान को संतुष्ट कर सके। समय की पहेली के बारे में डेढ़ हज़ार साल पहले उत्तर अफ्रीका के एक बिशप ऑरेलियस ऑगस्टीन ने बड़ी दिलचस्प बात कही थी, “जब कोई पूछता है कि समय क्या है तो मैं कहता हूं कि मैं जानता हूं। लेकिन जब कोई मुझे इसकी व्याख्या करने को कहता है तो मैं कह देता हूं कि मैं नहीं जानता।”
चलते-चलते समय के दो अंतर आपको बता दूं। एक है अंतराल और दूसरा है वक्त। जब कोई पूछता है कि यह समारोह कितनी देर चलेगा तो यह होता है इसका अंतराल। और जब कोई पूछता है कि यह समारोह कब शुरू होगा तो वह होता है इसका वक्त। अब अगर आप कन्फ्यूज हो गए हैं तो कोई बात नहीं क्योंकि मैं और आप ही नहीं, समय को लेकर पूरी दुनिया कन्फ्यूज्ड है।
(यूं ही नेट से जुटा ली गई जानकारियों का कोलाज)
समय दुनिया के सबसे गहरे रहस्यों में से एक है। समय के बारे में सोचना है तो बस्स उस दुनिया की कल्पना कर लीजिए जिसमें समय ही न हो। समय-विहीन दुनिया जहां की तहां ठहर जाएगी। लेकिन ऐसा संभव नहीं है। बदलाव तो होते ही हैं। जिस दीवार को हम जस का तस देखते हैं, बीस सालों तक देखते हैं, वह धीरे-धीरे मिटती रहती है। तब और अब में फर्क आ जाता है। हम अपने बच्चे को बड़ा होते नहीं देख पाते। लेकिन छह महीने बाद ही आया कोई बाहर का आदमी बता देता है कि बच्चा पहले से बदल गया है। पेड़ से सूखा पत्ता किसी एक पल गिरता है, लेकिन उस पल के आने की प्रक्रिया कोंपल बनने से ही शुरू हो जाती है।
मनुष्य के शरीर की जीव-वैज्ञानिक घड़ी ज्यादा सूक्ष्म होती है, लेकिन उसमें कई सारी घड़ियों की टिक-टिक एक साथ चलती रहती है। स्वस्थ दिल एक मिनट में 75 बार धड़कता है, फेफड़े नियमित अंतराल पर अपने अंदर हवा भरते हैं और दिमाग दिन के खास हिस्सों में ज्यादा साफ तरीके से सोचता है। शरीर की ज्यादातर घड़ियां चौबीस घंटे के हिसाब से चलती है।
इंसान सो भी जाता है तब भी उसके मस्तिष्क के विद्युत आवेग अपनी लय में चलते रहते हैं। शरीर का तापमान हाइपोथैलामस से नियंत्रित होता है और यह हर दिन बदलता है। आम तौर पर यह सामान्य नींद के दौरान रात के एक बजे से लेकर सुबह सात बजे तक अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है। यह प्राकृतिक लय-ताल भंग होती है तो इंसान के भाव-संसार पर असर पड़ता है। रात में काम करनेवाले लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
समय जीवन को निरंतरता और स्वरूप देता है। लेकिन वही समय विनाश और मौत भी लाता है। सुबह की लालिमा दोपहर आते-आते ओझल हो जाती है, रात को उजाला अंधेरे में तब्दील हो जाता है। इस सृष्टि में कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसके बारे में कहा जा सकता है कि वह शाश्वत है, हमेशा के लिए है, कालातीत है।
विज्ञान के सभी अमूर्तनों में हमारे लिए अगर सबसे ज्यादा परिचित कुछ है तो वह पदार्थ, परिस्थिति या बल नहीं, बल्कि सर्वव्यापी समय है। समय महान शिक्षक है, महान चिकित्सक है, बड़े-बड़े घावों को भर देता है, बड़ी-बड़ी विषमताओं को पाट देता है। हम चाहें तो समय को बचा सकते हैं और चाहें तो बरबाद कर सकते हैं। लियो टॉलस्टॉय ने कहा था – धैर्य और समय दो सबसे सशक्त योद्धा हैं।
मगर, हम समय को कायदे से परिभाषित नहीं कर सकते। मनोवैज्ञानिक के लिए समय चेतना का ऐसा पहलू है जिससे हम अपने अनुभवों को क्रमबद्ध करते हैं। भौतिकशास्त्री के लिए समय द्रव्यमान और दूरी के अलावा तीसरा मूलभूत गुण है, जिनके जरिए ब्रह्माण्ड की किसी चीज का वर्णन किया जा सकता है। खगोलशास्त्री ब्रह्मांड के इतिहास को अरबो सालों की यात्रा के रूप में समझते हैं। जीव-वैज्ञानिकों की मानें तो जानवर और पेड़-पौधे भी समय को मापते हैं। यहां तक कि सबसे छोटे एक कोशिकावाले जीवाणु भी अंतर और बाहर की दुनिया में अपनी जीव-वैज्ञानिक घड़ियों के जरिए सामंजस्य बैठाते हैं। दार्शनिक के लिए समय की परिभाषा के बहुत सारे रूप हैं।
विद्वान लोगों ने समय के बारे में ढेरों किताबें लिखी हैं। लेकिन समय की कोई ऐसी परिभाषा नहीं है जो हर विद्वान को संतुष्ट कर सके। समय की पहेली के बारे में डेढ़ हज़ार साल पहले उत्तर अफ्रीका के एक बिशप ऑरेलियस ऑगस्टीन ने बड़ी दिलचस्प बात कही थी, “जब कोई पूछता है कि समय क्या है तो मैं कहता हूं कि मैं जानता हूं। लेकिन जब कोई मुझे इसकी व्याख्या करने को कहता है तो मैं कह देता हूं कि मैं नहीं जानता।”
चलते-चलते समय के दो अंतर आपको बता दूं। एक है अंतराल और दूसरा है वक्त। जब कोई पूछता है कि यह समारोह कितनी देर चलेगा तो यह होता है इसका अंतराल। और जब कोई पूछता है कि यह समारोह कब शुरू होगा तो वह होता है इसका वक्त। अब अगर आप कन्फ्यूज हो गए हैं तो कोई बात नहीं क्योंकि मैं और आप ही नहीं, समय को लेकर पूरी दुनिया कन्फ्यूज्ड है।
(यूं ही नेट से जुटा ली गई जानकारियों का कोलाज)
Comments
जानकारी तो कोई भी जुटा सकता है, लेकिन उसे इस तरह एक पठनीय लेख सिर्फ एक चिंतक-रचनाकार ही बना सकता है. बधाई हो -- शास्त्री जे सी फिलिप
जिस तरह से हिन्दुस्तान की आजादी के लिये करोडों लोगों को लडना पडा था, उसी तरह अब हिन्दी के कल्याण के लिये भी एक देशव्यापी राजभाषा आंदोलन किये बिना हिन्दी को उसका स्थान नहीं मिलेगा.
"समय घटनाओं के क्रम को कहते हैं (Time is the sequence of phenomena)."
वैसे यह परिभाषा आसानी से हज़म नहीं होती, ख़ासकर उन लोगों को जो विज्ञान के विद्दार्थी नहीं रहे हैं, पर यदि आप इस पर तार्किक चिन्तन करें तो आप स्वयं को इस से सहमत होता हुआ पायेंगे।