एक जोड़ी काबिल मेहनती सपने
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दो अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए थे वे दोनों। दोनों का अपना अतीत था। मां-बाप, भाई-बहन, रिश्तेदारियां थी। खान-पान, रहन-सहन, पसंद-नापसंद सब अलग। क्या करते, अलग-अलग भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों से साबका जो पड़ा था उनका। इसलिए उनके सपनों में अलग-अलग छवियां, अलग-अलग बिम्ब आते थे। लेकिन कई साल साथ रहने के बाद दोनों एकाकार होने लगे। एक दिन उनके चेहरों के अंदर का चेहरा एक हो गया। उनके बाहरी चेहरे भी एक-दूसरे से बहुत हद तक मिलने लगे। जो भी उन्हें देखता, या तो भाई-बहन कहता या मेड फॉर ईच अदर।
अद्भुत तर्कपरायणता थी दोनों के बीच। वह जो सोचता था, उसे वह बोलती थी और वह जो सोच रही होती थी, उसे पूरी शिद्दत के साथ वह पेश कर देता। और मज़े की बात ये है कि दोनों परस्पर विरोधी बातें बोल रहे होते थे। यानी, दूसरे की विरोधी बात उसके नहीं, दूसरे के मुंह से निकलती थी।
ये सच है कि दो ही नहीं, हज़ारों-लाखों लोगों के आंखें खोलकर देखे जाने वाले ख्वाब एक हो सकते हैं। लेकिन दो लोग सोते वक्त भी क्या एक ही सपना देख सकते हैं? सपने का रंग एक, सपने के बिम्ब एक! शायद नहीं। वैसे, लाखों में घटनेवाला संयोग कुछ भी हो सकता है। लेकिन अलग-अलग सोच और पृष्ठभूमि से आए लोगों के सपने और छवियां एक नहीं हो सकतीं।
मगर, उन दोनों के सा
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तो, मैं कह रहा था कि दोनों पत्ते पर पड़ी ओस की बूंदों की तरह एक हो गए। लेकिन बूंदें तो एक होने के बाद नीचे धरती पर गिरती हैं, जहां भुरभुरी मिट्टी उन्हें सोख लेती है। पर, वे न तो नीचे गिरे और न ही मिट्टी ने उन्हें सोखा। उन्होंने दूर आसमान में उड़कर कहीं अपना घोंसला बनाया। दोनों वहीं कहीं रहने लगे। धरती पर आते थे तो उसी तरह जैसे सीगल चिड़िया समुद्र की सतह पर उतरे बिना ही बस झपट्टा मारकर उड़ जाती है।
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