Thursday 13 September, 2007

मोर ही क्यों नाचता है, मोरनी क्यों नहीं...

प्रकृति का यही नियम है। कई सारे मोर मोरनी के आसपास नाचते हैं। मोरनी बस घूमती-टहलती देखती रहती है, उनको ऑब्जर्व करती है। वह किसको चुनेगी, इसका पूरा अधिकार उसके पास ही होता है। प्रकृति ने मोर की संतति को आगे बढ़ाने का काम उसे सौंप रखा है तो वही तय करती है कि कौन-सा नर सर्वश्रेष्ठ है, कौन सबसे सुंदर है और किसका नाच सबसे अच्छा है। फिर उसी के साथ वह जोड़ा बनाती है ताकि आनेवाली संतान प्राकृतिक रूप से सबसे फिट, चुस्त-दुरुस्त हो।
पशु-पक्षी जगत में यह सामान्य नियम है कि नर के चयन का अधिकार मादा के पास ही होता है। जो भी जीव जोड़ा बनाते हैं, उनमें मादा जब नर की काबिलियत को लेकर हर तरीके से संतुष्ट हो जाती है कि तभी उसे हरी झंडी दिखाती है। कई पक्षी तो ऐसे हैं, जिनमें नर पहले घोंसला बनाकर उसको हरसंभव तरीके से सजाकर पेश करते हैं। मादा पूरी ऐंठ के साथ आती है, एक-एक घोंसले का मुआयना करती है। जिस घोंसले की सजधज, डिजाइन सबसे अच्छी होती है, उसी के डिजाइनर नर को वह अपना साथी चुनती है।
मादा इशारा करती है कि वह तैयार है। बस उसकी गंध से बावले होकर नर उसके पीछे लग जाते हैं। शुतुरमुर्ग तो दोनों पंख फैलाकर इस अदा से नाचता है मानो बाकायदा कहीं से डांस की ट्रेनिंग लेकर आया हो। पक्षियों में नर ज्यादातर अपनी अदाएं दिखाकर मादा को रिझाता है, जबकि पशुओं में नर लड़-झगड़कर अपनी ताकत साबित करता है और मादा को पाने का अधिकारी बनता है। जहां चिड़ियों में अदाकार नर चुना जाता है, वहीं पशुओं में सबसे ताकतवर। लेकिन चयन का अधिकार मादा के पास ही रहता है।
शायद इसीलिए स्वयंवर की प्रथा को प्राकृतिक नियम के ज्यादा करीब माना जा सकता है। राम ही नहीं, रावण और दूसरे तमाम राजा सीता पर मुग्ध थे, लेकिन शिव धनुष को तोड़ने के बाद राम के गले में वरमाला सीता ने ही डाली थी। स्वंयवर अब भले ही बीते ज़माने की चीज़ बन गया हो, लेकिन मादा को पटाने का प्राकृतिक खेल अब भी जारी है। लड़कियों को पटाने के लिए लड़के क्या-क्या नहीं करते! शान दिखाना, गाड़ी में घुमाना, महंगे होटलों में ले जाना, उसके हर नाज-नखरे उठाना। क्या फिरकी बने रहते हैं लड़के, तब जाकर लड़की उसे लिफ्ट देती है। लड़कियों के पीछे-पीछे भागने की यह प्रवृति पूरी तरह प्राकृतिक है। इस मामले में कोई दर्शन या सिद्धांत नहीं चलता।
लेकिन पशु-पक्षी और इंसान के जोड़े बनाने में फर्क है। पशु-पक्षी अपनी प्रजाति को आगे बढ़ाने के लिए जोड़े बनाते हैं। अपनी सुरक्षा के लिए झुंड में भी रहते हैं। लेकिन इससे उनका परिवार नहीं बन जाता। प्राकृतिक रूप से कोई ज़रूरी नहीं है कि मां-बाप और बच्चे एक साथ एक परिवार में रहें। लेकिन इंसान अभी की सोचता है, आगे की योजना बनाता है, उसके हिसाब के काम करता है। इंसान की इसी फितरत का नतीजा होता है परिवार और समाज। फिर यही परिवार और समाज उसकी मूल पशु-प्रवृति को रिफाइन करता चलता है।
वैसे, वैज्ञानिकों की मानें तो साथी के चयन का फैसला दिमाग के न्यूरॉन्स करते हैं। आकर्षण, फिदा होने और आखिरकार प्यार तक पहुंचने के दौरान ये न्यूरॉन्स जमकर रहस्यमयी तरीके से डूबते-उतराते हैं, नृत्य करते हैं। न्यूरॉन्स की इन्हीं हरकतों के चलते लोगों पर प्यार का नशा छा जाता है। पाया गया है कि प्यार की दीवानगी में इंसान के दिमाग का वही हिस्सा आंदोलित होता है जो सिगरेट, शराब या जुए की तलब के समय बेचैनी दिखाता है। यकीनन, परिवार और समाज ने इंसान के जोड़े बनाने के प्राकृतिक नियम में काफी तब्दीलियां की है।
वैसे, कभी आपने गौर किया है कि जानवर कभी बलात्कार नहीं करते। इंसान या ओरांगउटांग जैसे उसके कुछ पूर्वजों में ही यह प्रवृति पाई जाती है। फिर भी बलात्कारी को हम कहते हैं कि उसने जानवरों जैसी हरकत की है?

2 comments:

Udan Tashtari said...

वैसे तो कल ठीक से टिप्पणी करुँगा. मगर ऐसा गजब न लिखो भाई.

अभी कल ही एक मित्र से मिला. पति पत्नी के नाम पर दोनों ही पुरुष हैं और १० सालों से साथ रह रहे हैं, शायद दोनों ही नाचते हों रिझाने को..मगर एक माह पूर्व एक बच्चा गोद ले लिया है..उसके भविष्य को ले चिंतित हूँ..कि वो कैसा नाचेगा बड़ा हो कर..मोर कि मोरनी.

आप भी न?!!! बस प्रश्न डाल देते हैं.

हम तो अब भौजी का ही ब्लॉग पढ़ा करेंगे. आपका नहीं. हा हा!! एड्रेस हमारे पास है, भाभी जी ने दे दिया है.

Arun Arora said...

यहा भी मोर पहले नाचता ही है..फ़िर धमकाता है काहे पसंद नही आ रहा..? फ़िर जानवर की तरह बल प्रयोग करता है..फ़िर उससे आगे निकल जाता है ..बस कहानी वही है लेकिन अंत बदल जाता है..