Tuesday 13 May, 2008

मेरे बिना तुम्हारा घर ठीक ही चल रहा है तो...

मानस-मानसी। वह चांद तो वो चकोरी। सात साल पहले जिस तरह, जिन हालात में मिले, उसी समय उन्हें लग गया था कि वे एक दूजे के लिए हैं, made for each other… उन्होंने साथ-साथ बैठकर सोचा भी था कि बुढ़ापा आने तक उनकी शक्लें जब आपस में मिलने लगेंगी तो वे अलग-अलग कैसे दिखेंगे। खैर, इसकी परख तो अभी काफी दूर है। फिलहाल हाल यह है कि वह सोचता भी है तो वो जान लेती है। वो कुछ बोलने को होती तो वह वही बात पहले ही बोल देता है। झगड़े भी होते रहते हैं। लेकिन क्या बताऊं, इधर ऊर्मि और उर्मिलेश में कटा-कटी कुछ ज्यादा ही मची हुई है।

उस दिन भी कोई मामूली-सी बात थी। तकरार हुई। थोड़ा रोना-धोना हुआ। फिर ऊर्मि अपने ज़रूरी काम से लखनऊ चली गई। दस दिन बाद वहां से फोन पर पूछा कि घर कैसे चल रहा है तो उर्मिलेश ने कहा – मजे में चल रहा है एकदम ठीक। आने की कोई ज़रूरत नहीं है। उसके कहने का मतलब था कि आने की हड़बड़ी करने की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन ऊर्मि ने बात दिल पर ले ली। उसने फौरन एसएमएस किया – If your home is running fine without me, where is the need to come back?

फिर तो एसएमएस से ही बात करने का सिलसिला चल निकला। उर्मिलेश ने लिखा - काम चल नहीं रहा। एमरजेंसी में काम चलाने की बात होती है। बात मत बढ़ाओ। जल्दी अपने घर वापस आओ। अगले दिन फिर लिखा - Love you. Come soon...उसी दिन देर रात को लिखा - मैं एकदम तनहा हूं। तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। अब उधर से जवाब आया - बुद्धू लड़के, ये बात कल ही नहीं कह सकते थे? Remember I always love you मेरे बिगड़े शहजादे।

लेकिन न जाने क्यों उसी के बाद से छोटी-छोटी बातें बड़े झगड़ों में तब्दील होने लगीं। हालत यहां तक पहुंच गई कि ऊर्मि कहने लगी कि मैं हमेशा इस असुरक्षा में जीती हूं कि तुम कभी भी मुझे घर से बाहर निकाल दोगे। उर्मिलेश कहता – तुमने मेरे जीने की इच्छा ही खत्म कर दी है, तुम लगातार मुझे मेरी मौत की तरफ धकेल रही हो। फिर भी ऊर्मि बार-बार पूछती रहती कि तुम मुझे कितना प्यार करते हो। एक बार मामूली लड़ाई के बाद वह झल्लाकर बिना खाए-पिए दफ्तर निकल गया और वहीं से एसएमएस किया - आदमी सबसे ज्यादा खुद को, अपनी ज़िंदगी को प्यार करता है। कोई उससे कैसे प्यार करते रह सकता है जिसके बारे में लगता है कि वो उसे मौत की तरफ धकेल रहा है।

ऊर्मि घबरा गई। लिखा - I think I still have a little energy and hope left. I only want to show a big heart when I behave like this and instant forgiveness. प्लीज़, आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा। जल्दी से घर आ जाइए। मैं पागल हूं। पागलों की किचकिच से कोई नाराज़ होता है क्या?

उर्मिलेश ने ऊर्मि को समझाने की कोशिश की। कहा कि मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए। I want you to grow like anything. That’s all. ऊर्मि ने बड़े ध्यान से सुना। उसे लगता है कि उर्मिलेश छोटे बच्चे की तरफ बिफरता है। जिम्मेदारी से भागता है। पलायन उसका मूल स्वभाव बन गया है। इसीलिए मामूली बातों पर भी बिदक जाता है। बदले में उर्मिलेश को लगता है कि ऊर्मि बेहद डर-डर के जीती है, अतिवादी है, हमेशा extreme पर ही जाकर सोचती है। इस तरह दोनों में झगड़े की आवृत्ति थोड़े-थोड़े अंतराल पर झनझनाती रहती है।

इस बार नए साल के दो दिन पहले उर्मिलेश ने घर बैठे किसी दोस्त का एसएमएस ऊर्मि को फॉरवर्ड कर दिया और बाहर टहलने चला गया। वह एसएमएस कुछ यूं था - मैं हमेशा-हमेशा के लिए जा रहा हूं। मैं कभी लौटकर नहीं आऊंगा। मेरे पास सिर्फ दो दिन बाकी हैं। अपना ख्याल रखना। बाय। तुम्हारा - साल 2007... इसके बाद तो ऊर्मि की हालत खराब हो गई। लगा – जैसे उसे सन्निपात हो गया हो। उर्मिलेश ने समझाया कि मज़ाक था। फिर भी ऊर्मि ने कह दिया – कभी गलती से भी ऐसा मजाक न करना। मैं तुम्हारे न रहने पर ज़िंदा नहीं रहूंगी, याद रखना।

नए साल के पहले दिन उर्मिलेश दफ्तर के लिए निकला तो रास्ते से ही एसएमएस किया - पुरानी बातें कचरे में। हम दोनों सच्चे और सही होने के बावजूद क्यों नहीं एक-दूसरे को खुश रख सकते। हम साथ ही जिएंगे, साथ-साथ झेलेंगे। मरना हुआ तो साथ मरेंगे।

बाकी क्या लिखूं। ऊर्मि और उर्मिलेश के बीच प्यार और तकरार का नाता जारी है। किस्सा लंबा है। कभी अलग से इत्मिनान से लिखूंगा। हां, एक दिन दोनों बाज़ार में टकरा गए तो मैंने पाया कि दोनों की शक्लें करीब-करीब 20 परसेंट तक आपस में मिलने लगी हैं।
फोटो साभार: juju T

9 comments:

PD said...

आशावादी कहानी पढ़कर अच्छा लगा..

दिनेशराय द्विवेदी said...

उर्मि और उर्मिलेश कभी अलग नहीं होंगे। बल्कि नजदीक आएंगे। दूर के बरतन कभी नहीं खड़कते, जितने नजदीक होते हैं उतने ही अधिक खड़कते हैं।

शायदा said...

दो बार सोचा, लेकिन तीसरी बार खुद को रोक नहीं पाई लिखने से। बहुत अच्‍छा और सच्‍चा लिखा आपने। जब छोटी छोटी बातें बड़े झगड़ों में तब्‍दील हो रही होती हैं तब भी शक्‍लों का एक सा होते जाना रुकता नहीं। यही तो वजह है कि जब आप उन्‍हें अलग देखते हैं तो भी वे साथ नजर आने लगते हैं। वे साथ ही रहेंगे सारे पलायन और extreme के बावजूद। अच्‍छा लगा ये आशावाद।

Sandeep Singh said...

अच्छा लगा और पढ़ता रहा.....। रही बात किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की, तो वो अभी पूरी तौर पर आपके पास है। इसलिए कोई भी कयास बेकार...बस अगली कड़ी का इंतजार।

Reetesh Gupta said...

सुंदर लिखा है ...अच्छा लगा ...बधाई

Unknown said...

प्रेम परिभाषित करती सुंर कहानी, बधाई.

Udan Tashtari said...

एक आशावादी सुन्दर बहती कहानी-अगली कड़ी का इन्तजार.बधाई.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

यह तो अच्छी, भली, समझदार, ‘नॉर्मल’ जोड़ियों के बीच होते रहना उतना ही स्वाभाविक है जितना साँस लेना। पढ़ते हुए मन के भीतर गुदगुदी होने लगी। यह हाले-बयाँ काबिले-तारीफ़ है।

Amit K Sagar said...

इक्दम सटीक लिखी है मुहब्बत-ए-दास्तान. मर्म में लिपटी है...बहुत खूब.