Monday 21 April, 2008

मेरे बाद मेरे इस ब्लॉग का क्या होगा?

भगवान न करे कि ऐसा हो। लेकिन मौत तो किसी भी रूप में कभी भी आ सकती है। अब अजय रोहिला को ही ले लीजिए। उनको गुजरे एक महीना होने को है, लेकिन उनका ब्लॉग नई राहें एयरपोर्ट पर अनक्लेम्ड बैगेज की तरह अभी तक पड़ा है और न जाने कब तक यूं ही पड़ा रहेगा। आखिरी पोस्ट 18 फरवरी की है। उसी के बाद शायद तबीयत बिगड़ने लगी होगी और होली के दिन दुनिया से कूच कर गए। भाई को इतनी फुरसत तक न मिली कि ब्लॉग पर ब्लॉगिंग की दुनिया के सभी दोस्तों को आखिरी सलाम लिख देते या धुरविरोधी की तरह अपना ब्लॉग ही डिलीट कर देते या ब्लॉग पर कोई लिंक दे देते कि यह ब्लॉग मैं खत्म कर रहा हूं, अब आप मुझसे यहां मिल सकते हैं।

ऐसे ही कोई भी ब्लॉगर कभी भी हमें बिना बताए विदा हो जाए तो! मैं या आप में से कोई भी ऊपरवाले से सट्टा-बयाना तो लिखाकर आया नहीं है कि अनंत समय तक ज़िंदा रहेगा, कि हमें हमेशा-हमेशा के लिए धरती पर रहने का पट्टा दे दिया गया है। भीष्म पितामह तक को इच्छा-मृत्यु का वर मिला था, मृत्यु से मुक्ति का नहीं। मरने के बाद शरीर को दफना या जला दिया जाता है। लेकिन ब्लॉग तो हमारे अंतर्मन की एक छाया है, उसका क्या किया जा सकता है। वह तकिए के नीचे या सूटकेस की तह से निकली कोई डायरी नहीं है जिसे यूं ही कहीं यादगार निशानी मानकर रख दिया जाए।

ब्लॉग अगर कोई जायदाद होती, बैंक खाता होता, बीमा पॉलिसी होती, घर होता तो यह कानूनी वारिसों के नाम ट्रांसफर हो जाता। ब्लॉग अगर कोई साहित्यिक रचना होती तो इसका कॉपीराइट मैं बच्चों के नाम कर देता और वो ताज़िंदगी इसकी रॉयल्टी पाते रहते। लेकिन यह तो अनंत अंतरजाल का एक नानो-कण है जहां मैं अपनी शैली में, अपने अंदाज़ में कुछ भी लिखता रहता हूं। मैं नहीं रहूंगा तो कोई दूसरा मेरी शैली और अंदाज़ तो ला नहीं सकता। फिर यह कोई क्लोज-एंडेड मामला नहीं है, ओपन एंडेड है।

किसी रचना का आदि-अंत नहीं है। वो तो एक सतत प्रकिया है। जो बातें अधूरी हैं उन्हें कौन पूरा करेगा। जैसे अजय रोहिला को एक कहानी लिखनी थी, उसे अब कौन लिखेगा। कोई तो नहीं कर सकता क्योंकि अजय जैसे भी थे, दूसरा वैसा नहीं हो सकता। ये सच है कि हम एक साथ एक ही समय में अलग-अलग रूपों में मौजूद रहते हैं। लेकिन कोई भी दूसरा हमारी अनुकृति ही तो होता है, हम तो कतई नहीं होते।

सोचता हूं कि मेरा एक व्यक्तिगत ब्लॉग है। अगर यह पच्चीस-पचास लोगों को सामूहिक ब्लॉग होता या मियां-बीवी का साझा ब्लॉग होता तो यकीनन इसका जारी रहना तय था। कल अजय रोहिला का ब्लॉग देखने के बाद मेरे दिमाग में यही सवाल नाच रहा है कि मेरे बाद मेरे इस ब्लॉग का क्या होगा। इस सवाल का कोई सुसंगत जवाब मुझे नहीं सूझ रहा। बस यही लगता है कि किसी रेगिस्तान में छूटे हुए सामान की तरह यह धीरे-धीरे रेत के टीले में दबकर रह जाएगा। एकदम निर्जीव, कोई सांस नहीं, कोई आस नहीं।

देखिए न, मोह कितनी भयानक चीज़ है। सवा साल के ब्लॉग से इतने मोह का कोई तुक है क्या? लेकिन क्या कीजिएगा, इंसान है ही ऐसा कि उसे अपने से जुड़ी हर चीज़ से, हर जीव से, हर इंसान से देर-सबेर मोह हो जाता है। वह मरने से इसलिए नहीं घबराता कि उसकी जान चली जाएगी। बल्कि वह इसलिए परेशान होता है कि उसके बाद उन लोगों का क्या होगा जो उससे जुड़े रहे हैं। इंसान मरते वक्त आगे नहीं देखता। वह बार-बार मुड़कर पीछे ही देखता है। लेकिन सीधी-सी बात तो यह है कि आगे एक अनंत शून्य होता है जिसकी थाह लगाना मुश्किल है। वहां पहुंचने पर तो किसी भी याद का रेशा तक नहीं बचता। फिर काहे की चिंता, काहे की चिकचिक कि मेरे बाद मेरे ब्लॉग का क्या होगा? या मेरे बाद मेरे शरीर का क्या होगा? अरे, लोग उसे जलाएं या दफनाएं या लावारिस फेंक दें, क्या फर्क पड़ता है!!!
फोटो सौजन्य: Joe McIntyre

26 comments:

Udan Tashtari said...

आप तो नाहक ही भावुक हो गये. हम हैं न-फिर भी आते रहेंगे टिपियाने. नई पोस्ट नहीं मिलेगी तो भी पुरानी पर टिपिया जायेंगे.

आप बिल्कुल निश्चिंत होकर निकलो.

वैसे, चिन्तन उम्दा भी है और जायज भी. मैं तो बस तसल्ली देने आया था, अब चलता हूँ. :)

यशवंत सिंह yashwant singh said...

ए महराज, सबेरे सबेरे रोवायेंगे क्या? आपकी बातों ने दिल दुखा दिया। अंदर से थरथराहट होने लगी। मौत....ये वही शब्द है जिस पर हर समय के लोग जाने कितने कितने एंगिल से सोचते गुनते बुनते करते जीते मरते आये हैं....पर मौत अटल रहा। ज़िंदगी की हाय हाय में भागते हुए मुसाफिर को जब कभी वक्त मिलता है तो वो अगर गलती से खुद की मौत के बारे में कल्पनाएं करना लगता है तो सारा कुछ बेगाना लगने लगता है, खून थमता सा नजर आने लगता है। कभी श्मशान पर जाना पड़े तो वहां जलती चिताओं को देखकर अजीब सा अनुभव होता है....रहना नहीं देस बेराना है....

अनिल भाई, आप जैसे संवेदनशील इंसान ब्लागिंग में हैं तो भरोसा है कि चलो, उन मुद्दों, बातों, चीजों को भी सुनने पढ़ने को मिलेगा जो और जगहों पर नारेबाजी के चक्कर में दबी-कुचली स्थितियों में है। लेकिन मौत को इतनी सीरियसली लेने की जरूरत नहीं है, यही फंड़ा है ज़िंदगी का। हर पल को जी लेने की कोशिश करना ही हमारा कर्तव्य है, बाकी कल की कौन जाने। और अजाने कल के लिए इतना सोच सोच कर इतना वक्त बरबाद करने की क्या जरूरत......

जी लेने दो इस पल को
कल की देखेंगे कल को.....

....पर सब कुछ हांकने के बाद भी इतना कह सकता हूं कि मौत पर जितनी बार सोचो, मौत को जितनी बार जियो...हमेशा शरीर में झुरझुरी सी होती है......पर मुझे लगता है कि संभवतः इसी प्रक्रिया से मौत के इतर भी जाया जाता है।

शायद मैं कह पा रहा हूं या नहीं कह पा रहा हूं अपनी बात....

जय भड़ास
यशवंत सिंह

Sanjay Tiwari said...

मैं हूं तो सब है. मैं नहीं तो कोई नहीं. मैं आया तो सब आ गया. मैं गया तो सब चला गया. बत्ती जली तो दुनिया दिखी बत्ती गुल तो दुनिया गुल. मैं कहां देखता हूं कि मेरे जाने पर कौन रो रहा है. कौन हंस रहा है. किसपर फर्क पड़ता है और किसपर नहीं पड़ता है.

मैंने लिखा ही क्या? वही जो ब्रह्माडरूपी सर्वर में एनकोडेड था. मेरा ब्लाग बंद हो सकता है सर्वर तो तब भी रहेगा. यानी "मैं" तो रहूंगा ही. रूप बदल जाएगा. रंग बदल जाएगा. चेहरे बदल जाएंगे लेकिन नाना रूपों में "मैं" अभिव्यक्त होता रहूंगा.

(वैसे इतना सोचने की जरूरत नहीं है गलती से एक बटन दब जाए तो भी सारा ब्लाग डिलिट हो सकता है.)

rakhshanda said...

आजीब होता है ये इंसान भी ,अगले लम्हे की ख़बर नही होती और सदियों की सोचता है,आपने दिल में एक अजीब सी बेक़रारी जगा दी..लेकिन हकीकत तो यही है ,तो जब किसी लम्हे पर हमारा बस ही नही है तो क्यों न उन्हीं लम्हों को जियें और उन्हीं पलों को सोचें जो हमारे हाथ में है...आगे जो होता है होने दें...बकोल शाएर....
कल की बातें करेंगे कल वाले,
वज्द तुम आज ही की बात करो

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अनिल जी,
आपका सवाल सहज और चिंता स्वाभाविक है,
लेकिन मुझे लगता है स्वयं से संवाद करते हुए
आपने अपने ही चिंतन से इस चिंता का
समाधान भी सुझा दिया है !
==============================
मौत उसकी है करे ज़माना जिसका अफ़सोस
यूँ तो आए हैं दुनिया में सभी मरने के लिए.

और यह भी कि -
जियो तो ऐसे जियो जैसे सब तुम्हारा है
मरो तो ऐसे की तुम्हारा यहाँ कुछ भी नहीं .

जब दुनिया में यात्री ही हैं तो पुल पार कर लें काफ़ी है
उस पर घर बनाना ज़रूरी है क्या ?

अच्छे भाव-विचार दिलों में सुरक्षित रहे हैं,रहेंगे.
==============================
आपका
डा.चंद्रकुमार जैन

Unknown said...

क्या, भाई साहब । आप नाहक परेशान हो रहे हैं । ये सृष्टि ऐसे ही चलती रहती है। इससे पहले भी लोगों को जिंदगी से मोह पैदा हुआ है। बड़े-बड़े महाकाव्य इस मोह से पिंड छुटाने के लिए लिखे गए हैं। आप तो इतने झंझावात झेल चुके हैं कि इन छोटी मोटी परेशानियों से बहुत ऊपर उठ चुके है । इस छोटे से प्रश्न पर व्यथित मत हों। आत्मा तो अजर-अमर होती है।शास्त्रों के अनुसार पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीर को धारण करती है। वैसे मेरी भगवान से प्रार्थना है कि आपको बहुत लंबी उम्र दे। लेकिन इस सबसे बड़े सत्य को झुठलाया तो नहीं जा सकता। खैर इस कटु सत्य के बाद आपकी आत्मा निश्चित तौर पर किसी शरीर में प्रवेश करेगी और फिर समाज की भलाई के लिए नए रचनात्मक एवं सृजनात्मक कामों को अंजाम देती रहेगी। हो सकता है ब्लाग से आगे की कोई तकनीकी तब तक आ गयी हो।
क्या आप अब भी परेशान है । तो लो एक कहानी सुनो। एक बार महात्मा बुद्ध किसी गांव से जा रहे थे । इलाके में लोग इनके दर्शनार्थ इकट्ठे हो रहे थे। उसी दिन गांव में एक बुढिया का एक मात्र बेटा गुजर गया। वही जीने का सहारा था कोई नहीं था परिवार में । बुढ़िया का रो-रो कर बुरा हाल था। लोगों ने सांत्वना दी कि महात्मा जी आ रहे हैं। बड़े सिद्ध पुरूष है। जाके उनसे विनती करो,जिला देंगे बच्चे को । बुढ़िया गयी। जार जार होकर रोयी कहा कि मेरे एकमात्र बेटे को जीवित करें। अन्यथा वो भी प्राण त्याग देगी। बुद्ध जी बड़े पशोपेश में। प्रकृति के नियम के विपरीत कैसे जाए। हारकर उन्होंने बुढ़िया से कहा अच्छा जाओ किसी के घर से एक मुट्ठी सरसों ले आओ। मै जीवित कर दूंगा तुम्हारे पुत्र को। पर ध्यान रहे सरसों उसी घर से ले आना जिसके परिवार में कोई मरा न हो। बुढ़िया लगभग भागते हुए सरसों लेने गयी। उसको तो पता था कि बस अभी गयी और अभी आयी। लेकिन जब दिन ढल जाने के बाद बुढ़िया वापस आयी तो उसके ग्यान चछु खुल चुके थे। उसको पता चल गया कि जब सबके घर में किसी न किसी प्रियजन की मौत हुई है तो उसका बेटा कोई अनोखा नहीं है।

आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना के साथ

Anonymous said...

अजय रोहिला ko shardhanjali daetey hue aur bina unka apmaan kiyae sirf ek baat kehtee hun
google ko nomination facility bhi daene chaheyae khaas kar unkae liyae jinkae blog per adsense haen
kyon anil jii ??

Ajeet Shrivastava said...
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Ajeet Shrivastava said...

ज़िंदगी को कुछ इस तरह से जी कि मौत से मिलना हुआ अभी-२,
दुआ सलाम की और कहा कि मिलते रहा करो कभी-कभी.

पारुल "पुखराज" said...

अनिल जी,

चिंता चिता समान-so iss tarah kii baato.n me naa ulajhiye.....iss par bas bhii to nahii kisii kaa.....vaisey ye chintaa aksar mujhe bhi sataatii hai :}

Gyan Dutt Pandey said...

ब्लॉग भी तो चोला है - वासांसि जीर्णानि यथा विहाय---
और कुछ लोग तो जीते जी अनक्लेम्ड छोड़ कर चल देते होंगे।

चंद्रभूषण said...

OH DEAR, THIS REGULAR MORBIDITY IS SOOOOOOOO BOOOOOOORING!

कंचन सिंह चौहान said...

बात मजाक में टाल दी जाये तो ही ठीक वर्ना सत्य तो यही है कि दिन भर में १० बार जिस ब्लॉग को हम सहेज सहेज कर देखते हैं..अपनी सबसे प्रिय निधि मानते हैं, उसका कोई वारिस भी नही है।

Dr.Bhawna Kunwar said...

एक दिन ये ख्याल मेरे मन में भी आया और मैं बहुत देर तक अपने ही ख्यालों में डूबती उतरती रही ...आपने इसको इतनी अच्छी पोस्ट बनाकर दिया है कि कहीं दिल के कोने में एक दर्द का लम्हा सा ठहर गया है और ये वो लम्हा है जो हकीकत से जुड़ा है ...बहुत अच्छा लिखा है आपने बधाई स्वीकारें...

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,संसार की जो लघुत्तम लघुकथाएं हैं क्या उनका असर हो गया या मेरी दवाएं देने से पहले ही आप मेरी दुकान बंद कराने की भूमिका बना रहे हैं? चलिये कथाएं बाकी लोग भी जान लें...
१.एक आदमी था,एक दिन वो मर गया।
२.एक आदमी था,वो बहुत धनी था एक दिन वो मर गया।
३.एक आदमी था,वो बहुत बलवान था एक दिन वो मर गया।
४.एक आदमी था,वो बहुत विद्वान था एक दिन वो मर गया।
पहली और शेष तीन कहानियों में बस एक अंतर मूल में है कि पहली कहानी दो लाइन की है और शेष तीन कहानियों में एक लाइन ज्यादा है।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मित्रों, आप लोगों ने तो अनिल जी को आखिरी सत्य के करीब खड़ा मान कर बेहद भावुक माहौल बना दिया...जरा ठहरिये ...अभी तो इन्हे ब्लोगिंग की दुनिया के अन्दर और बाहर ढेर कारनामें करने हैं. हम जैसे नौसिखियों को बहुत कुछ सिखाना है. एक भरपूर जिंदगी का बहुत कुछ आना अभी बाकी है इनसे. फ़िर अभी से इतनी डरावनी बातें क्यों करें?
ऐसे बुरे ख्यालों को अन्दर आने ही क्यों दें? मृत्यु से पहले जीवन भी तो है. अनेक शानदार रंगो और कलेवर में. जिंदगी के खूबसूरत पहलुओं की छाव में मन लगा रहे तो मौत की काली परछाई डराने नहीं पायेगी.
अनिलजी,हमें आपसे अभी बहुत उम्मीदें हैं.

मसिजीवी said...

पति पत्‍नी के साथ साथ ब्‍लॉगिंग करने का ये फायदा तो हमने सोचा ही न था। :))

azdak said...

मेरी आवाज़ चंदू के साथ है. महाराज, आप तो सच्‍चे ज़मीन-आसमान एक करने लगे, एत्‍ता बड़ा मसला है? तेवारी जी कह ही रहे हैं कि एगो, ससुरा, बटन दब गया पूरा बिलाग वइसे ही टें बोल जावेगा..

राज भाटिय़ा said...

अरे भाई दिल छोटा मत करो, कल सपने मे मेने देखा उपर भी हाई स्पीड इन्टर्नेट कनेकशन हे ओर वो भी फ़्रि,लेपटाप साथ मे लेजाना वहा भी हम सब टिपण्णी करे गे, ओर हमे आप उपर की रोचक बाते ओर परियो की फ़ोटू भेज देना,फ़िर हम भी सोचे गे कहा ज्याद अच्छा हे, वही सेट हो जाये गे

Alpana Verma said...

Chinta karne ke aur bhi vishay hain---

1-kalpana kijeeye ki blogging service hi achank band ho jaye--?
2--ya fir ban lag jaaye?
3-ya fir achank paid service ho jaye??
4-ya fir blogging bhi censor hone lage?
5--ab har insaan ko ek din jaana hai--kya karen vidhi ka vidhan hi aisa hai--
mritu ke baad bhi ek duniya hoti hai-ye bhi suna hoga--ab tak wahan bhi ye suvidha uplabdh hogi--yah to tay hai--
-dhnyawaad

Alpana Verma said...

waise bahut bahut badhayee ho Sir!
aap ki yah post aaj ki sab se lokpriy post ho gayee hai....

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

इतनी गहरी चिंता? क्या बात है! जहाँ न पहुँचा ब्लॉग समाज, वहाँ जा पहुंचे अनिल रघुराज. लगे रहिये!

अनूप शुक्ल said...

चिंतित हो गये हम तो!

डा. अमर कुमार said...

बड़े मार्मिक तरीके से एक मार्मिक पहलू को कुरेद ही दिया है, तो मेरे एक अमार्मिक सवाल का उत्तर भी देते जाइये.. .. .. ..
अपने लक्कड़दादा का नाम बतायें, वही जिसे आजकल रूट्स
कह कह कर लोग दूरदेश से दौड़े चले आते हैं ! दिमाग पर जोर लग
रहा होगा, यही सच है ! रोहिला के संग बिताये ख़ुशनुमाँ पलों को
जीवित रखिये, उनका स्थान वहीं है । मेरी घृष्टता को क्षमा करें

हरिमोहन सिंह said...

माफी मागंते हुये कहना चाहता हू कि आपका इरादा क्‍या है । देखो बडे भाई ऐसा मत करो कि हमको कहना पडे कि उसने तो ब्‍लाग मे भी हिन्‍ट दिया था फिर भी कोई उसके मन की बात नही जान पाया । मत करो भई ऐसा ।









कैसा लगा आशा है माफी दे देगें

अजित वडनेरकर said...

हम इन सवालों से जूझे बिना हर तीसरे दिन ब्लाग को ही अकाल मौत देने की सोचते हैं। यानी डिलीट करने की बात.....