स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो...
जीवन में कुछ ऐसी अवस्थाएं आती हैं, जब स्मृति का लोप होने लगता है, बुद्धि का नाश होने लगता है। वैसे गीता में इसकी कुछ और भी वजहें बताई गई हैं। ध्यायतो विषयान् पुंस: संगस्तेषूपजायते। संगात्संजायते काम: कामात्क्रोधोञंभिजायते।। क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृति विभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।। जब भी किन्हीं वजहों से स्मृति विभ्रमित होने लगे, बुद्धि का नाश होने लगे तो उसे वापस लाने का मेरे पास एक आजमाया हुआ सूत्र है। रामचरित मानस की इस शिव वंदना को जिस दिन आप कंठस्थ कर लेंगे, उसी दिन आपकी स्मृति का लोप होना थम जाएगा। तो आइए, इसका पारायण पाठ करें... नमामिशमीशान निर्वाण रूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।। निजं निर्गुणं निर्किल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।। निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोहं।। तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेंदु कंठे भुजंगा।। चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठ दयालं।। मृगाधीशचर्मा...