Friday 20 April, 2007

आरक्षण कटार है, कल्याण नहीं

सरकार ही नहीं, सभी विपक्षी पार्टियां भी उच्च शिक्षा में आरक्षण के पक्ष में हैं, तो इसकी स्पष्ट वजह राजनीतिक नफा-नुकसान है। आज ओबीसी तबका उत्तर भारत में राजनीतिक रूप से सबसे सशक्त है। खुद गिन लीजिए कि कितने राज्यों के मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री इन्हीं जातियों के हैं। और, विश्वनाथ प्रताप सिंह या अर्जुन सिंह कोई ओबीसी के सगे नहीं हैं। उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन बनानी या बचानी थी, इसलिए वो आरक्षण का डंका पीट रहे हैं।
एक बात और साफ समझ लेनी चाहिए कि आरक्षण कोई कल्याणकारी कार्यक्रम नहीं है, ये सत्ता में हिस्सेदारी का जरिया है। इसलिए पहली दो किश्तों में मैंने जो आंकड़े पेश किए हैं, वो सत्ता की इस लड़ाई में निरर्थक साबित हो जाएंगे क्योंकि यहां तर्कों की नहीं, ताकत की जुबान, राजनीतिक हैसिय़त की जुबान चलेगी। यहां वोटों की ताकत ही असली तर्क और ताकत है। ये महाभारत जैसा 'धर्म-युद्ध' है, जहां नियम से नहीं, नरोवा कुंजरोवा की चाल से जीत होती है।
बात अगर देश के पिछड़ों को शिक्षा और उच्च शिक्षा में आगे बढ़ाने की होती तो पहले सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर सुधारा जाता। कम से कम सौ नए आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थान खोले जाते। अभी एक अरब की आबादी पर आईआईटी की 6000 सीटें और आईआईएम की करीब 2000 सीटें हैं, जबकि हर साल इनमें बैठनेवालों की संख्या दो लाख से ज्यादा होती है। विकास के लिए आज सभी चीन का गुणगान करते हैं, लेकिन चीन सौ नए इंजीनियरिंग संस्थान खोलने का अभियान चला रहा है और हम आरक्षण के नाम पर सौ-दो सौ सीटें बढ़ाने का झुनझुना बजा रहे हैं।
फिर... आरक्षण के नाम पर टकराव होने लगते हैं। लाठियां चलती हैं, आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं। मेरिट के खराब हो जाने के तर्क दिए जाते हैं, जबकि इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों को लाख-दो लाख का डोनेशन मिल जाने पर मेरिट को लेकर कोई समस्या नहीं होती। आईआईटी और आईआईएम में एडमिशन के नाम पर सरकार हमसे लॉटरी खिलवा रही है और हम हैं कि आपस में गालियां देने में लगे हैं। यकीनन जिन्होंने पांच हजार सालों से जातिप्रथा का दंश झेला है, उन्हें आगे बढ़ने के मौके दिए जाने चाहिए। लेकिन पहले ये तो सोचिए कि पांच हजार सालों का नाम लेकर कोई साठ सालों की अपनी नाकामी और लूट पर परदा तो नहीं डाल रहा है।
बस, थोड़ा कहा, ज्यादा समझना। घर जाने की जल्दी है, देर हो रही है।

2 comments:

Srijan Shilpi said...

अनिल जी,

अच्छा है कि आप फिर से हिन्दी चिट्ठाकारी में आरक्षण पर बहस शुरू किए हैं। पिछले वर्ष जब इस मुद्दे पर सरगर्मी शुरु हुई थी तो हमने भी काफी बहस की थी। आपके अवलोकनार्थ कड़ियां प्रस्तुत हैं:
http://srijanshilpi.com/?p=18
http://srijanshilpi.com/?p=19
http://srijanshilpi.com/?p=20
http://srijanshilpi.com/?p=21
http://srijanshilpi.com/?p=22
http://srijanshilpi.com/?p=23
http://srijanshilpi.com/?p=24

शायद इन लेखों से आपको अपने पक्ष में कुछ नई बातें कहने का अवसर मिल सके। मुझे अच्छा लगेगा, यदि इस मुद्दे पर ऐसी नई, ठोस और तर्कसंगत बातें आप रख सकें, जिनपर मेरा ध्यान अभी तक नहीं गया है।

हरिराम said...

आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य पिछड़े दलित वर्ग को कुछ ऊँचा उठाकर समानता लाना था। अब इस व्यवस्था का भयंकर दुरुपयोग हो रहा है। एक अ.जा. के किसान हैं, जिन्होंने अपने बेटे की शादी में 30 करोड़ का खर्चा किया। एक अ.जा. के मंत्री हैं, जिनकी घोषित सम्पत्ति 50 करोड़ की है। ... ऐसी ही अनेक अति सम्पन्न लोग भी आरक्षण का अनुचित लाभ उठा रहे हैं।

जिस प्रकार जिस परिवार में आयकर देनेवाला (अर्थात् पर्याप्त कमानेवाला)कोई भी सदस्य हो, उसे राशन की चीनी नहीं मिलती है। इसी प्रकार जिस परिवार में कोई एक भी सदस्य आयकर देनेयोग्य है, उस परिवार के किसी भी सदस्य को कहीं भी आरक्षण व्यवस्था के लाभ से वंचित किया जाना अनिवार्य हो गया है।