कला के तीन क्षणों से गुजरना एक सुदीर्घ प्रक्रिया है। मुक्तिबोध के शब्दों में संवेदनात्मक ज्ञान, ज्ञानात्मक संवेदन और भाषा के अभ्यास से ही सार्थक अभिव्यक्ति तक पहुंचा जा सकता है।
अक्सर खुद से बात करता हूं तो बड़ी संजीदगी से सोचता हूं कि मोदी सरकार, भाजपा व संघ को आखिर भारत से इतनी दुश्मनी क्यों है ? आखिर क्यों वे भारत को हर स्तर पर खोखला करते जा रहे हैं ? भारत आज अंदर से जितना विभाजित है, उतना तो शायद बंटवारे के वक्त भी नहीं था। मोदी सरकार ने दो साल पहले अचानक लॉकडाउन लगाकर लाखों मजदूरों को मरने के लिए क्यो छोड़ दिया ? अभी उसने यूक्रेन में फंसे हज़ारों छात्रो को क्यों इस कदर असहाय छोड़ दिया ? आखिर क्यों वह ऊपर से दिखावा करती है, मगर अंदर से तोड़ने का काम करती है ? इसका सबसे बड़ा सबूत है कि नोटबंदी में उसे अर्थव्यवस्था को फॉर्मल बनाने के नाम पर करोड़ों छोटी इकाइयों व उद्यमियों को बरबाद कर दिया। जिस इन्फॉर्मल क्षेत्र या छोटे-छोटे कारोबारियों का योगदान 2016 से पहले तक देश की अर्थव्यवस्था में 80-82 प्रतिशत हुआ करता था, वह अब घटकर मात्र 18-20 प्रतिशत रह गया है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था की कमर ऐसी टूटी कि सारा आर्थिक आधार ही चकनाचूर हो गया। असल में मोदी सरकार, भाजपा व संघ के इस भारत-विरोधी चरित्र का स्रोत उस आक्रमणकारी आर्य या ब्राह्मण धारा में है जो हमारे जम्बू द्वीप
संत कबीर का यह दुर्लभ पद पेश कर रहा हूं। मुझे यह न तो किताबों में दिखा और न ही इंटरनेट पर। मेरी पत्नी बताती हैं कि वे जब छोटी थीं तो उनकी मां इसे घर के झूले पर बैठे गा-गाकर सुनाती थी। उन्हीं की मां की डायरी में ये पद लिखा हुआ मिल गया तो मैंने सोचा क्यों न आप सभी से बांट लिया जाए। पद में कबीर की उलटबांसियों जैसी बातें कही गई हैं। मैं हर पद पर चौंक कर कहता रहा – अरे, ये कैसे संभव है। तो आप भी चौंकिए और चमत्कृत होइए। हां, इसमें कोई अशुद्धि हो तो ज़रूर बताइएगा। गुरु ने मंगाई भिक्षा, चेला झोली भरके लाना हो चेला झोली भरके लाना... पहली भिक्षा आटा लाना, गांव बस्ती के बीच न जाना नगर द्वार को छोडके चेला, दौरी भरके आना हो चेला झोली भरके लाना... दूसरी भिक्षा पानी लाना, नदी तलाब के पास न जाना कुआं-वाव को छोड़के चेला, तुम्बा भरके लाना हो चेला झोली भरके लाना... तीसरी भिक्षा लकड़ी लाना, जंगल-झाड़ के पास न जाना गीली-सूखी छोड़के चेला, भारी लेके आना हो चेला झोली भरके लाना.... चौथी भिक्षा अग्नि लाना, लोह-चकमक के पास न जाना धुनी-चिता को छोड़के चेला, धगधगती ले आना हो चेला झोली भरके लाना... कहत कबीर सुनो भई
जो जानते हैं, वो रो रहे हैं और जो अनजान हैं, वो तालियां बजा रहे हैं। चिदंबरम के बजट में घोषित किसानों की कर्ज़माफी पर शहरी लोग वाह-वाह कर रहे हैं, लेकिन विदर्भ के जिन किसानों के नाम पर यह कदम उठाया गया है, वो आज भी आह-आह कर रहे हैं। कैसी विडंबना है!! लालू तो विदूषक हैं, इसलिए उन पर हंसी नहीं आती तो गुस्सा भी नहीं आता। गुस्सा तो शरद पवार पर आता है जो हकीकत जानते हुए भी 60,000 करोड़ रुपए की कर्ज़माफी को ऐतिहासिक कदम बता रहे हैं। शरद पवार को सब इसीलिए नहीं पता है कि वे कृषि मंत्री हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि वे खुद महाराष्ट्र के हैं। चिंदबरम ने ऐलान किया है कि 5 एकड़ तक की जोत वाले सभी किसानों के किसी भी तरह के बैंक से लिए 31 दिसंबर 2007 तक के कर्ज ब्याज समेत माफ किए जा रहे हैं, जबकि 5 एकड़ से ज्यादा जोत वाले किसानों के लिए 75 फीसदी कर्ज चुकाने देने पर बाकी 25 फीसदी कर्ज माफ कर दिया जाएगा। इस योजना से 5 एकड तक के लाभ पाने वाले किसानों की संख्या तीन करोड़ है, जबकि एक चौथाई कर्जमाफी का लाभ एक करोड़ किसानों को मिलेगा। सच यह है कि विदर्भ के खुदकुशी कर रहे किसानों के नाम पर उठाए गए इस कदम का ल
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