मिसफिट लोगों का जमावड़ा है ब्लॉगिंग में
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता
बाज़ार में अपनी कीमत खोजने निकले ज्यादातर लोगों को भी मुकम्मल जहां नहीं मिलता, सही और वाजिब कीमत नहीं मिलती। मिलती भी है तो उस काबिलियत की नहीं जो उनके पास है। जिसने जिंदगी भर साइंस पढ़ा, फिजिक्स में एमएससी टॉप किया, उसे असम के करीमगंज ज़िले का डीएम बना दिया जाता है। जिसने इलेक्ट्रॉनिक्स में आईआईटी किया, उसे कायमगंज का एसपी बना दिया जाता है। किसी कवि को रेलवे में डायरेक्टर-फाइनेंस बनना पड़ता है तो किसी फुटबॉल खिलाड़ी को हस्तशिल्प विभाग में ज्वाइंट सेक्रेटरी की कुर्सी संभालनी पड़ती है। ऊपर से सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में कम से कम 3.50 करोड़ बेरोज़गार हैं जिनको बाज़ार दो कौड़ी का नहीं समझता।
जिनको कीमत मिली है, वो भी फ्रस्टेटेड हैं और जिनको अपनी कोई कीमत नहीं मिल रही, वो भी विकट फ्रस्टेशन के शिकार हैं। हमारे इसी हिंदीभाषी समाज के करीब हज़ार-पंद्रह सौ लोग आज ब्लॉग के ज़रिए अपना मूल्य आंकने निकल पड़े हैं। इनमें से कुछ सरकारी अफसर है, कुछ प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां करते हैं, बहुत से पत्रकार हैं और बहुत से स्ट्रगलर हैं। यहां फ्रस्टेशन का निगेटिव अर्थ न लिया जाए। यह एक तरह का पॉजिटिव फ्रस्टेशन है जो हर तरह के ठहराव को तोड़ने की बेचैनी पैदा करता है, आपको चैन से नहीं बैठने देता। आपको मिसफिट बना देता है।
ऐसे ही मिसफिट लोग ब्लॉग में अपने संवाद के ज़रिए खुद के होने की अहमियत साबित करना चाहते हैं। किसी को लगता है कि वह सबका दोस्त, दार्शनिक और गाइड है तो किसी को लगता है कि वह आज के जमाने का सबसे बड़ा उपन्यासकार बनने की प्रतिभा रखता है और आज के ज़माने का रामचरित मानस वही लिख सकता है। कोई भाषाशास्त्री है तो कोई महान सेकुलर बुद्धिजीवी। कोई साम्यवाद तो कोई हिंदू राष्ट्र की स्थापना का बीड़ा उठाए हुए है। कोई साहित्य की नई धारा ही शुरू कर रहा है। किसी को कुछ नहीं मिल रहा तो अपनी पाक-कला ही परोस रहा है, निवेश की सलाह दे रहा है। कहने का मतलब यह कि सभी अपनी-अपनी विशेषज्ञता के हीरे-मोतियों के साथ इंटरनेट के सागर में कूद पड़े हैं।
लोग भले ही कहें कि वे स्वांत: सुखाय लिख रहे हैं। लेकिन हिट और कमेंट के लिए हर कोई बेचैन रहता है। ब्लॉग से कैसे कमाई हो सकती है, ऐसी कोई भी पोस्ट शायद ही कोई ब्लॉगर ऐसा होगा जो नहीं पढ़ता होगा। सभी अपनी वास्तविक प्राइस डिस्कवरी में लगे हुए हैं। लेकिन इस कशिश में, अंदर और बाहर के इस मंथन में नकारात्मक कुछ नहीं, सकारात्मक बहुत कुछ है। आज हिंदी के संवेदनशील पाठक खुद ही लेखक बन गए हैं और इस तरह उन्होंने जीवन पर साहित्यकारों के एकाधिकार को तोड़ने का अघोषित अभियान शुरू कर दिया है। यही वजह है कि अब स्थापित कवियों और साहित्यकारों को भी ब्लॉग की दुनिया में आने को मजबूर होना पड़ा है। साहित्यकार चाहें तो ब्लॉग के लेखक अनुभूतियों का जो कच्चा माल पेश कर रहे हैं, उसकी मदद से वो शानदार रचना का महल खड़ा कर सकते हैं।
इसलिए जिस तरह ट्वेंटी-ट्वेंटी विश्व कप में हमने खड़े होकर भारत की जीत का स्वागत किया, वैसे ही हमें सारे हिंदी ब्लॉगर्स के आगमन का स्वागत करना चाहिए। ये ही लोग हैं नए ज़माने के रचनाकार, नए ज़माने के साहित्य के नायक। आखिर में मुक्तिबोध की कविता 'कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं' की इन पंक्तियों को दोहराने का मन करता है कि ...
तुम्हारे पास, हमारे पास सिर्फ एक चीज़ है
बाज़ार में अपनी कीमत खोजने निकले ज्यादातर लोगों को भी मुकम्मल जहां नहीं मिलता, सही और वाजिब कीमत नहीं मिलती। मिलती भी है तो उस काबिलियत की नहीं जो उनके पास है। जिसने जिंदगी भर साइंस पढ़ा, फिजिक्स में एमएससी टॉप किया, उसे असम के करीमगंज ज़िले का डीएम बना दिया जाता है। जिसने इलेक्ट्रॉनिक्स में आईआईटी किया, उसे कायमगंज का एसपी बना दिया जाता है। किसी कवि को रेलवे में डायरेक्टर-फाइनेंस बनना पड़ता है तो किसी फुटबॉल खिलाड़ी को हस्तशिल्प विभाग में ज्वाइंट सेक्रेटरी की कुर्सी संभालनी पड़ती है। ऊपर से सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में कम से कम 3.50 करोड़ बेरोज़गार हैं जिनको बाज़ार दो कौड़ी का नहीं समझता।
जिनको कीमत मिली है, वो भी फ्रस्टेटेड हैं और जिनको अपनी कोई कीमत नहीं मिल रही, वो भी विकट फ्रस्टेशन के शिकार हैं। हमारे इसी हिंदीभाषी समाज के करीब हज़ार-पंद्रह सौ लोग आज ब्लॉग के ज़रिए अपना मूल्य आंकने निकल पड़े हैं। इनमें से कुछ सरकारी अफसर है, कुछ प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां करते हैं, बहुत से पत्रकार हैं और बहुत से स्ट्रगलर हैं। यहां फ्रस्टेशन का निगेटिव अर्थ न लिया जाए। यह एक तरह का पॉजिटिव फ्रस्टेशन है जो हर तरह के ठहराव को तोड़ने की बेचैनी पैदा करता है, आपको चैन से नहीं बैठने देता। आपको मिसफिट बना देता है।
ऐसे ही मिसफिट लोग ब्लॉग में अपने संवाद के ज़रिए खुद के होने की अहमियत साबित करना चाहते हैं। किसी को लगता है कि वह सबका दोस्त, दार्शनिक और गाइड है तो किसी को लगता है कि वह आज के जमाने का सबसे बड़ा उपन्यासकार बनने की प्रतिभा रखता है और आज के ज़माने का रामचरित मानस वही लिख सकता है। कोई भाषाशास्त्री है तो कोई महान सेकुलर बुद्धिजीवी। कोई साम्यवाद तो कोई हिंदू राष्ट्र की स्थापना का बीड़ा उठाए हुए है। कोई साहित्य की नई धारा ही शुरू कर रहा है। किसी को कुछ नहीं मिल रहा तो अपनी पाक-कला ही परोस रहा है, निवेश की सलाह दे रहा है। कहने का मतलब यह कि सभी अपनी-अपनी विशेषज्ञता के हीरे-मोतियों के साथ इंटरनेट के सागर में कूद पड़े हैं।
लोग भले ही कहें कि वे स्वांत: सुखाय लिख रहे हैं। लेकिन हिट और कमेंट के लिए हर कोई बेचैन रहता है। ब्लॉग से कैसे कमाई हो सकती है, ऐसी कोई भी पोस्ट शायद ही कोई ब्लॉगर ऐसा होगा जो नहीं पढ़ता होगा। सभी अपनी वास्तविक प्राइस डिस्कवरी में लगे हुए हैं। लेकिन इस कशिश में, अंदर और बाहर के इस मंथन में नकारात्मक कुछ नहीं, सकारात्मक बहुत कुछ है। आज हिंदी के संवेदनशील पाठक खुद ही लेखक बन गए हैं और इस तरह उन्होंने जीवन पर साहित्यकारों के एकाधिकार को तोड़ने का अघोषित अभियान शुरू कर दिया है। यही वजह है कि अब स्थापित कवियों और साहित्यकारों को भी ब्लॉग की दुनिया में आने को मजबूर होना पड़ा है। साहित्यकार चाहें तो ब्लॉग के लेखक अनुभूतियों का जो कच्चा माल पेश कर रहे हैं, उसकी मदद से वो शानदार रचना का महल खड़ा कर सकते हैं।
इसलिए जिस तरह ट्वेंटी-ट्वेंटी विश्व कप में हमने खड़े होकर भारत की जीत का स्वागत किया, वैसे ही हमें सारे हिंदी ब्लॉगर्स के आगमन का स्वागत करना चाहिए। ये ही लोग हैं नए ज़माने के रचनाकार, नए ज़माने के साहित्य के नायक। आखिर में मुक्तिबोध की कविता 'कहने दो उन्हें जो यह कहते हैं' की इन पंक्तियों को दोहराने का मन करता है कि ...
तुम्हारे पास, हमारे पास सिर्फ एक चीज़ है
ईमान का डंडा है, बुद्धि का बल्लम है
अभय की गेती है, हृदय की तगारी है, तसला है
नए-नए बनाने के लिए भवन आत्मा के, मनुष्य के....
Comments
हालांकि मैं थोड़ा खुशनसीब हूं कि जहां चाहा था, वहीं पहुंचा । लेकिन अब भी लगता है कि इससे आगे क्या ।
दूसरी बात जो बड़ी तकलीफ देती है कि इस देश में जिम्मेदार जगहों पर वो लोग हैं जिन्हें वहां नहीं होना चाहिये ।
बहरहाल मुझे सबसे अच्छी बात ये लगी कि साहित्यकारों के एकाधिकार को तोड़ने का मंच है ब्लॉग ।
देखते हैं ये कितना एकाधिकार तोड़ता है और कितनी नई दुनिया रचता है ।
बहुत ही बढ़िया लिखा, अनिल जी आपने.
चलिए हम जैसे मिसफ़िट लोगों के लिए लिखा तो सही आपने
बहुत खूब लिखा है-आपका एक अनफिट
वैसे आप कैसे हैं? ठीक ही होंगे, उम्मीद है.
--- सर, आपकी सारी बातें ठीक हैं...सिवाय इन पंक्तियों के।
अच्छा लगा आपको पढ्ना।