फट सकती है नोकिया की बैटरी!
आज जब मैंने न्यूज चैनलों पर खबर देखी कि नोकिया मोबाइल फोन में बैटरी चार्ज करते समय विस्फोट हो सकता है तो मैं हड़बड़ा गया। बताया गया कि ये विस्फोट बीएल-5सी सीरीज की बैटरियों में हो सकता है। मैंने फौरन अपने मोबाइल की बैटरी खोलकर देखी तो उस पर बीएल-5सी ही लिखा हुआ था। मैं थोड़ा परेशान हो गया। फिर नोकिया के प्रवक्ता ने बताया कि विस्फोट का खतरा उन्हीं बैटरियों में है जो दिसंबर 2005 से नवंबर 2006 में बनाई गई हैं। ये जानकर मुझे थोड़ी तसल्ली हुई क्योंकि मैंने अपना मोबाइल सेट नवंबर 2004 में खरीदा था।
धीरे-धीरे खबर साफ हुई तो पता चला कि इस बीएल-5सी सीरीज की 30 करोड़ बैटरियां जापान की मात्सुशिता बैटरी इंडस्ट्रियल कंपनी ने बनाई थी। लेकिन नोकिया के मुताबिक समस्या केवल 4.60 करोड़ बैटरियों के साथ हैं और वह दुनिया भर में इसे बदलने को तैयार है।
इन बैटरियों के साथ समस्या ओवरहीटिंग की है। चार्ज करने के दौरान इसमें शॉर्ट सर्किट से धमाका हो सकता है। दिक्कत ये है कि इस सीरीज की बैटरियां नोकिया-1100 के सस्ते सेट से लेकर एन-91 और ई-60 जैसे महंगे सेटों तक में इस्तेमाल की जाती हैं। हाल ही भारत में इस तरह का एक विस्फोट भी हो चुका है। पूरी दुनिया में लगभग 100 ऐसे हादसे हो चुके हैं। सवाल उठता है कि दो साल पहले बनाई गई बैटरियां जब समस्याग्रस्त थीं, तो नोकिया का क्वालिटी कंट्रोल विभाग कर क्या रहा था?
मूलत: फिनलैंड की कंपनी नोकिया पूरी दुनिया में मोबाइल सेटों की सबसे बड़ी निर्माता है। क्या उससे यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए थी कि वह उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखती? आखिर हादसे हो जाने के बाद ही उसकी नींद क्यों टूटी? सवाल ये भी उठता है कि साल 2006 में नोकिया ने 34.7 करोड़ मोबाइल सेट बेचे हैं, फिर हम कैसे मान लें कि केवल 4.6 करोड़ बैटरियों में ही समस्या है, जिन्हें बदलने की पेशकश की जा रही है?
धीरे-धीरे खबर साफ हुई तो पता चला कि इस बीएल-5सी सीरीज की 30 करोड़ बैटरियां जापान की मात्सुशिता बैटरी इंडस्ट्रियल कंपनी ने बनाई थी। लेकिन नोकिया के मुताबिक समस्या केवल 4.60 करोड़ बैटरियों के साथ हैं और वह दुनिया भर में इसे बदलने को तैयार है।
इन बैटरियों के साथ समस्या ओवरहीटिंग की है। चार्ज करने के दौरान इसमें शॉर्ट सर्किट से धमाका हो सकता है। दिक्कत ये है कि इस सीरीज की बैटरियां नोकिया-1100 के सस्ते सेट से लेकर एन-91 और ई-60 जैसे महंगे सेटों तक में इस्तेमाल की जाती हैं। हाल ही भारत में इस तरह का एक विस्फोट भी हो चुका है। पूरी दुनिया में लगभग 100 ऐसे हादसे हो चुके हैं। सवाल उठता है कि दो साल पहले बनाई गई बैटरियां जब समस्याग्रस्त थीं, तो नोकिया का क्वालिटी कंट्रोल विभाग कर क्या रहा था?
मूलत: फिनलैंड की कंपनी नोकिया पूरी दुनिया में मोबाइल सेटों की सबसे बड़ी निर्माता है। क्या उससे यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए थी कि वह उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखती? आखिर हादसे हो जाने के बाद ही उसकी नींद क्यों टूटी? सवाल ये भी उठता है कि साल 2006 में नोकिया ने 34.7 करोड़ मोबाइल सेट बेचे हैं, फिर हम कैसे मान लें कि केवल 4.6 करोड़ बैटरियों में ही समस्या है, जिन्हें बदलने की पेशकश की जा रही है?
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