पीछे पड़े लेफ्ट को क्यों झिड़कता है मध्यवर्ग?
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लेकिन मध्यवर्ग का बहुमत लेफ्ट को अपना नहीं मानता। मध्यवर्ग को भ्रष्टाचार से हमेशा शिकायत रहती है। जहां दूसरी पार्टियों के नेता या तो खुद भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं या भ्रष्टाचार में लगे अफसरों को बचाते हैं, वहीं लेफ्ट पार्टियां वार्ड से लेकर प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ रैलियां निकालती हैं। लेफ्ट का एक भी नेता नहीं है, जिस पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे हों। लेफ्ट के लिए महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी लड़ाई के शाश्वत मुद्दे हैं। इन तीनों ही मुद्दों का वास्ता आम मध्यवर्ग से है। फिर भी मध्यवर्ग लेफ्ट पार्टियों को गले लगाने को तैयार नहीं।
हां, लेफ्ट से इधर नंदीग्राम और सिंगूर में कुछ गुस्ताखियां ज़रूर हुई हैं। लेकिन उसकी ये गुस्ताखियां तो किसानों के खिलाफ थीं, मध्यवर्ग के खिलाफ नहीं। बैंकों की हड़ताल, बंद या चक्का जाम से जरूर शहर के आम लोगों को परेशानी होती है, लेकिन एकाध दिन की परेशानी का मकसद नौकरीपेशा मध्यवर्ग की बेहतरी ही होता है। हमारे मध्यवर्ग को यह बात समझ में क्यों नहीं आती?
लेफ्ट के ज्यादातर नेता गांधीजी के सादा जीवन, उच्च विचार के आदर्श पर अमल करते हैं। उनके चिंतन और कर्म में आमतौर पर दोगलापन नहीं होता, पाखंड नहीं होता। जैसा सोचते हैं, वैसा बोलते हैं, भले ही इससे उन पर कोई गलत तोहमत लग जाए। गरीब-नवाज़ होते हैं। किसी गरीब को हिकारत की निगाह से नहीं देखते। जात-पांत, छुआछूत कुछ नहीं मानते। खुद नास्तिक होते हैं, लेकिन दूसरे के धार्मिक विश्वासों की कद्र करते हैं। फिर भी मध्यवर्ग के ज्यादातर लोग उन्हें अछूत जैसा मानते हैं।
आप कहेंगे कि इसकी खास वजह है कि इन्होंने जब भी नाज़ुक मौके आये हैं, अपने देश के बजाय गैर-मुल्कों की तरफदारी की है। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इन्होंने अंग्रेज़ों का साथ दिया। 1962 में चीन का हमला हुआ तो इनके एक हिस्से ने कहा कि चीन ने नहीं, भारत ने हमला किया है। अभी भारत-अमेरिका परमाणु संधि का मसला आया तो इन्होंने चीन के इशारों पर काम किया। लेकिन इन तीनों ही मामलों में उन्होंने अपनी समझ से सच और मानवता का साथ देने की कोशिश की। उनकी समझ गलत हो सकती है, नीयत नहीं। फिर भी मध्यवर्ग को लेफ्ट की नीयत पर संदेह है। मेरे गांव के एक चाचा हमेशा कम्युनिस्टों को गाली देते हुए कहा करते थे कि रूस या चीन में पानी बरसता है तो ये स्साले भारत में छाता लगा लेते हैं।
लेफ्ट से मध्यवर्ग की ये बेरुखी क्यों? इस सवाल के बहुत सारे जवाब आपके पास हो सकते हैं। लेकिन मेरे पास इसका केवल एक जवाब है और वो यह कि लेफ्ट सपने नहीं दिखाता। वह गति को नहीं देखता, केवल स्थिरता को देखता है। वह केवल आज को देखता है, आज की समस्याओं को देखता है, कल को नहीं देखता, भविष्य के गर्भ में छिपी संभावनाओं को नहीं देखता। नब्बे के दशक में उसने बैंकों में कंप्यूटरीकरण का जबरदस्त विरोध किया। उसने ये तो देखा कि इससे कितनों की नौकरी जा सकती है, लेकिन ये नहीं देखा कि बैंकों में इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के आने से कितनी नई नौकरियां पैदा होंगी और आम खाताधारकों को कितनी सहूलियत हो जाएगी।
भारतीय मध्यवर्ग कितना भी उपभोक्तावादी हो जाए, वह त्याग और बलिदान की कद्र करना जानता है, क्रांति उसके लिए एक पवित्र शब्द है। हां, उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी ये है कि वो आज से ज्यादा कल के सपनों में जीता है। लेफ्ट को ये बात गांठ बांध लेनी चाहिए।
Comments
सभी आने वाले कल के सपनों की आशा में जीते हैं. यदि आनेवाले कल की आशा न हो तो आदमी आत्महत्या कर ले.
Nishant kaushik
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