माया के जाल की हस्तियां
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने 3 अगस्त 2007 को राज्य के कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधारों के लिए एक नई नीति घोषित की है। तीन दिन पहले ही इसकी अधिसूचना जारी की गई। वैसे, ये नीति अभी तक जिलाधिकारियों और तहसीलदारों तक नहीं पहुंची है, इसलिए वो इस पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं। छोटे अखबारों को समझ में ही नहीं आया कि इस नीति को कैसे कवर करें, लेकिन बड़े-बड़े अखबारों ने इस पर संपादकीय तक लिखे हैं, संपादकीय पेज पर बहसें की गई हैं। मायावती के कसीदे काढ़े गए हैं कि उन्होंने पूरे देश को एक नई राह दिखा दी है। लेकिन किसी ने भी गौर नहीं किया कि किसान हितों के नाम पर बहनजी ने किनके हितों को पूरा करने का बीडा उठाया है।
नीति दस्तावेज़ में कहा गया है कि अभी तक तमाम सरकारों ने समय-समय पर किसानों की हालत सुधारने के लिए नीतियां बनाईं, लेकिन इनका फायदा चंद लोगों को ही मिला। आम किसानों की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है और वो खुदकुशी करने को मजबूर हैं। आज़ादी के साठ साल बीत चुके हैं, लेकिन किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने के प्रयासों का कोई नतीजा नहीं निकला है। एकदम सही।
इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि पूरे देश को खिलानेवाला किसान आज भूखे पेट सोने को मजबूर है। वह नियंत्रित अर्थव्यवस्था के दुष्चक्र में फंसा हुआ है। उसे इस दलदल से निकालने के लिए तत्काल कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे। बिलकुल ठीक।
किसानों की दुर्दशा का दारुण चित्रण करने के बाद मायावती ने पहला ठोस कदम घोषित किया है कि किसानों की उपज और बाज़ार के बीच के बिचौलिये खत्म कर दिए जाएंगे। राज्य में ऐसे निवेशकों को आमंत्रित किया जाएगा, जिनकी न्यूनतम नेटवर्थ 500 करोड़ रुपए होनी चाहिए। किसान सीधे इन ‘निवेशकों’ को अपनी फसल बेचेंगे तो बिचौलिये अभी तक उनका जो शोषण करते रहे हैं, वह खत्म हो जाएगा। बहनजी, साफ क्यों नहीं कहतीं कि आप रिलायंस फ्रेश, भारती-वॉलमार्ट, बिग बाज़ार, सुभिक्षा जैसे बड़े रिटेल मॉल्स के लिए खरीद का सुगम रास्ता बनाना चाहती हैं। जो कोइरी समुदाय गांव के पास के बाज़ार-हाट में सीधे सब्जियां बेचकर अच्छा-खासा मुनाफा कमाता था, वह अब संकरी गली में फंस जाएगा क्योंकि बड़ी जोत वाले किसान भी सब्जियां उगाएंगे और बड़ी कंपनियां मोलतोल के बाद सस्ती दरों पर ही उनसे माल खरीद कर देश भर में बेचेंगी।
उत्तर प्रदेश की नई कृषि नीति में कृषि आधारित उद्योग भी लगाने की बात की गई है। इसके लिए न्यूनतम नेटवर्थ 5,000 करोड़ रुपए रखी गई है। ज़ाहिर है कि इतनी नेटवर्थ तो अंबानी, आईटीसी, भारती, गोदरेज, आदित्य बिड़ला या सहारा जैसे बड़े कॉरपोरेट घरानों की हो सकती है। लेकिन मायावती सरकार ने बड़े प्यार से पुचकारते हुए कहा है कि उन्होंने छोटे निवेशकों को नज़रअंदाज़ नहीं किया है और वो मंडी परिषदों के जरिए इस नीति को कामयाब बनाने में योगदान कर सकते हैं। धन्य हैं आप मायावती जी!
बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए लाल कालीन बिछाने के बाद भी तुर्रा ये कि नीति कहती है कि उत्तर प्रदेश में कांट्रैक्ट फार्मिंग की इजाज़त तो है, लेकिन यह कांट्रैक्ट किसानों से उनकी उपज खरीदने तक सीमित रहेगा और किसी भी सूरत में किसी को किसानों की ज़मीन खरीदने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। यही वो बातें थी, जिन पर नेशनल मीडिया मायावती के गुणगान कर रहा है। लेकिन उसने जान-बूझकर या अनजाने में इस नीति के उन सूत्रों को अनदेखा कर दिया, जो तमाम वाग्जाल के बीच चुपके से डाल दिए गए हैं। जारी...
नीति दस्तावेज़ में कहा गया है कि अभी तक तमाम सरकारों ने समय-समय पर किसानों की हालत सुधारने के लिए नीतियां बनाईं, लेकिन इनका फायदा चंद लोगों को ही मिला। आम किसानों की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है और वो खुदकुशी करने को मजबूर हैं। आज़ादी के साठ साल बीत चुके हैं, लेकिन किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने के प्रयासों का कोई नतीजा नहीं निकला है। एकदम सही।
इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि पूरे देश को खिलानेवाला किसान आज भूखे पेट सोने को मजबूर है। वह नियंत्रित अर्थव्यवस्था के दुष्चक्र में फंसा हुआ है। उसे इस दलदल से निकालने के लिए तत्काल कुछ ठोस कदम उठाने पड़ेंगे। बिलकुल ठीक।
किसानों की दुर्दशा का दारुण चित्रण करने के बाद मायावती ने पहला ठोस कदम घोषित किया है कि किसानों की उपज और बाज़ार के बीच के बिचौलिये खत्म कर दिए जाएंगे। राज्य में ऐसे निवेशकों को आमंत्रित किया जाएगा, जिनकी न्यूनतम नेटवर्थ 500 करोड़ रुपए होनी चाहिए। किसान सीधे इन ‘निवेशकों’ को अपनी फसल बेचेंगे तो बिचौलिये अभी तक उनका जो शोषण करते रहे हैं, वह खत्म हो जाएगा। बहनजी, साफ क्यों नहीं कहतीं कि आप रिलायंस फ्रेश, भारती-वॉलमार्ट, बिग बाज़ार, सुभिक्षा जैसे बड़े रिटेल मॉल्स के लिए खरीद का सुगम रास्ता बनाना चाहती हैं। जो कोइरी समुदाय गांव के पास के बाज़ार-हाट में सीधे सब्जियां बेचकर अच्छा-खासा मुनाफा कमाता था, वह अब संकरी गली में फंस जाएगा क्योंकि बड़ी जोत वाले किसान भी सब्जियां उगाएंगे और बड़ी कंपनियां मोलतोल के बाद सस्ती दरों पर ही उनसे माल खरीद कर देश भर में बेचेंगी।
उत्तर प्रदेश की नई कृषि नीति में कृषि आधारित उद्योग भी लगाने की बात की गई है। इसके लिए न्यूनतम नेटवर्थ 5,000 करोड़ रुपए रखी गई है। ज़ाहिर है कि इतनी नेटवर्थ तो अंबानी, आईटीसी, भारती, गोदरेज, आदित्य बिड़ला या सहारा जैसे बड़े कॉरपोरेट घरानों की हो सकती है। लेकिन मायावती सरकार ने बड़े प्यार से पुचकारते हुए कहा है कि उन्होंने छोटे निवेशकों को नज़रअंदाज़ नहीं किया है और वो मंडी परिषदों के जरिए इस नीति को कामयाब बनाने में योगदान कर सकते हैं। धन्य हैं आप मायावती जी!
बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए लाल कालीन बिछाने के बाद भी तुर्रा ये कि नीति कहती है कि उत्तर प्रदेश में कांट्रैक्ट फार्मिंग की इजाज़त तो है, लेकिन यह कांट्रैक्ट किसानों से उनकी उपज खरीदने तक सीमित रहेगा और किसी भी सूरत में किसी को किसानों की ज़मीन खरीदने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। यही वो बातें थी, जिन पर नेशनल मीडिया मायावती के गुणगान कर रहा है। लेकिन उसने जान-बूझकर या अनजाने में इस नीति के उन सूत्रों को अनदेखा कर दिया, जो तमाम वाग्जाल के बीच चुपके से डाल दिए गए हैं। जारी...
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राजेश कुमार