हमें आदत है स्वांग को सच समझने की

आर के नारायणन ने जब गाइड उपन्यास लिखा होगा और 1965 में विजय आनंद ने इस पर शानदार फिल्म बनाई होगी तो ज़रूर सोचा होगा कि इससे भारतीय अवाम की स्वांग को सच समझने की आदत बदल सकती है। इस फिल्म को बहुतों ने देखा और सराहा, लेकिन 42 साल बाद भी हालत जस की तस है। आर्म्स एक्ट में छह साल के कठोर कारावास की सज़ा भुगत रहा मुजरिम संजय दत्त जब जेल से बेल पर छूटता है तो उसे देखने के लिए लोगों का तांता लग जाता है। यहां तक कि पुलिसवाले भी उससे हाथ मिलाने को बेताब नज़र आते हैं। हम संजय दत्त को मुन्नाभाई से अलग हटकर खलनायक मानने को तैयार ही नहीं है।
यही हाल शाहरुख खान का है। चक दे इंडिया बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई है। फिल्म में शाहरुख का किरदार कबीर खान भारतीय हॉकी टीम का कैप्टन था, लेकिन विश्व कप फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ पेनाल्टी स्ट्रोक को गोल में न बदल पाने पर उसे गद्दार करार दिया गया। एक दिन वही कबीर खान कोच बनकर भारतीय महिला हॉकी टीम को विश्व कप दिलवाने में कामयाब रहता है। इस रोल ने स्वदेश के शाहरुख की राष्ट्रवादी छवि को और चमका दिया है। लेकिन हम केवल यही देखते हैं। नहीं देखते कि वही शाहरुख खान इस समय मर्दों को गोरा बनानेवाली क्रीम बेच रहा है, जबकि विज्ञान कहता है कि सांवले को गोरा बनाने का दावा सरासर गलत है। लेकिन हम छवि के गुलाम हैं। किसी को संत मान लिया तो उसे संत ही माने रहेंगे, भले ही चाहे कुछ भी हो जाए।
लोगों के अंधे प्यार का यही भरोसा है कि अमिताभ बच्चन आज ललकार कर कहते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार चाहे तो उन्हें जेल में डाल दे, उन्होंने गलती की हो तो उन्हें गोली मार दी जाए। उन्हें यकीन है कि अगर ऐसा किया गया तो उनके फैन अपने ‘भगवान’ के लिए कुछ भी कर गुजरेंगे। यूपी में दम है क्योंकि जुर्म यहां कम है जैसे झूठे विज्ञापन पर उनसे पूछा गया तो अमिताभ ने साफ कह दिया कि वो तो अभिनेता है, स्क्रिप्ट में जो लिखा होगा वैसा ही बोलेंगे। असल ज़िदगी में अमिताभ बच्चन क्या हैं, सेट पर उनकी शामें कैसे गुजरती हैं, इसे उनके साथ काम करनेवाले कलाकारों और प्रोड्यूसरों से पूछा जा सकता है। कई सालों से फिल्में कवर करनेवाले मेरे एक पत्रकार मित्र ने ऐसी बातें बताईं कि मुझे यकीन ही नहीं आया। अमिताभ आखिरी वक्त तक कोशिश करते रहे कि अभिषेक से ऐश्वर्या की शादी न हो पाए। वजह ऐसी है कि जिसे मैं लिख दूं तो बिग-बी से लेकर एक नामी उद्योगपति तक मुझे अदालत में घसीट ले जाएंगे।
अमिताभ बच्चन अपने बाबूजी और भारतीय संस्कारों की बराबर दुहाई देते हैं। लेकिन पिछले शनिवार (18 अगस्त) को न्यूयॉर्क में जब वे अपने उन्हीं बाबूजी की सौंवी वर्षगांठ के मनाने के समारोह में अपनी बहू के साथ पहुंचे तो क्या नज़ारा था, आप इस तस्वीर में साफ देख सकते हैं। बीबीसी की साइट पर छपी इस तस्वीर में ससुर के बगल में नई-नई बहू कैसे अपना क्लीवेज दिखा रही है, इससे आप समझ सकते हैं कि राय-बच्चन परिवार में अब भारतीय संस्कारों का कितना अवशेष बचा रह गया है। आप कह सकते हैं कि इनका तो पेशा ही अभिनय है, सेलिब्रिटी हैं तो सार्वजनिक जीवन में लोगों की मांग के हिसाब से ही चलेंगे न! बात सही है। तो इनको वहीं समझिए जो ये असल में हैं। इनके स्वांग को सच समझने का झूठ हम क्यों और कब तक ढोते रहेंगे?
अमिताभ ने जाली कागजों के दम पर बाराबंकी में ज़मीन हासिल की है तो उन पर जालसाजी का मुकदमा चलाया ही जाना चाहिए, भले ही वो कहते रहें कि इस फ्रॉड के लिए दोषी विजय कुमार शुक्ला है जिसे उन्होंने पावर ऑफ अटॉर्नी दे रखी थी।

Comments

आलोक said…
अनिल जी, आपने काम की बात तो बताई ही नहीं :) लगता है मुलाकात ही करनी पड़ेगी।
ePandit said…
सही कहते हैं आप, अक्सर लोग अभिनेताओं की स्क्रीन इमेज के आधार पर ही उनकी असली छवि दिमाग में बना लेते हैं। जबकि कई 'गुडें' हीरो से 'सज्जन' विलेन अच्छे हैं।
इसमें दोष अभिनेताओं का नहीं हमारा है जो इन लोगों को इतना मान देते हैं, जिसके ये लायक ही नहीं है।
आज सुबह टीवी पर संजय दत्त की रिहाई के समय लोगों और चैनलों का पागलपन देखने लायक था मानों कोई महाण देशभक्त या स्वतंत्रता सेनानी रिहा हो कर आ रहे हों।
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समाज के ठेकेदारो ने देश की जनता को अपने फायदे के लिए अंधेरे कूएं मे ढकेला है...अब उस से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है...जो लोग सच और झूठ को समझते हैं उन की गिनती बहुत कम है या यूँ कहे नही के बराबर है...अब तो राम जी ही मदद कर सकते हैं...:(
असली बात तो गोलगप्पा कर गए हजुर!! :)
अनिल जी,एक फिल्म है कालिया जिसमें अमिताभ बच्च्न ने अपनी गर्ल फ्रेंड से कहा कि - भाभी जी के पास साड़ी पहन कर चलना और माथे पर आंचल रखना क्यों कि अंग दिखाना पश्चिम का फैशन है और भारत में लज्जा औरतों का गहना है। शायद अमिताभ अपने ही डायलॉग भूल गये हैं। कला के नाम पर सभी तथ्यों को सहीं नहीं ठहराया जा सकता है। सिर्फ अमिताभ हीं क्यों ऐसे दर्जनों उदाहरण मिल जायेंगें पर अमिताभ से सभ्यता की उम्मीद रखी जाती है इसलिये उनका उदाहरण लाजमी है।

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