माओवादी इंसान नहीं, जानवर से भी बदतर!

मुझे अलग से कुछ नहीं कहना है। बस दो तस्वीरें लगा रहा हूं। पहली तस्वीर बुधवार की है जिसमें हमारे सिपाही पश्चिम बंगाल में इनकाउंटर के दौरान मारी गई एक महिला माओवादी को ढोकर ले जा रहे हैं। दूसरी तस्वीर देश की नहीं, विदेश की है जिसमें एक मरे हुए सुअर को दो लोग ढोकर ले जा रहे हैं।



Comments

कहाँ हो मानवाधिकारवादी गद्दारों ?
तुलनात्मक चित्र।
क्या मृत लोगों को ढोने किये कोई आचारसंहिता नहीं है?
Unknown said…
भारत के वीर सैनिकों को एक बार बांग्लादेश की सेना ने भी ऐसे ही लटकाकर भेजा था…
माओवादी हमारे सैनिकों के साथ कैसा व्यवहार करते?
ghughutibasuti said…
मुझे माओवाद से कोई सहानुभूति नहीं है किन्तु मरे हुए तो शत्रु को भी आदर से विदा किया जाता है। यह फोटो देख मुझे भी लिखने का मन था।
मृतक को ले जाने का यह तरीका बेहद आपत्तिजनक तो है ही, सरकार व सरकारी लोगों का यही रवैया नक्सलवादी बनाने में सहायक है। वैसे किसी दुर्घटना के बाद भी जिस तरह से मृतकों व घायलों को उठाया जाता है वह किसी विकसित या विकासशील देश को नहीं एक हजार साल पहले के युग में जीने वालों को दर्शाता है।
इस फोटो पर आपत्ति होनी ही चाहिए।
घुघूती बासूती
शायदा said…
घूघूती जी से पूरी तरह सहमत। इस तरीके का विरोध करना बनता ही है। मेरी भी आपत्ति दर्ज करें।
Cancerian said…
धन्यवाद रघु जी, इस युद्ध में अपनी स्थिति साफ़ करने के लिए|

हम तो भारत की ही तरफ थे, हैं और रहेंगे|

आप इस देश का नमक खाकर जारी रखें गद्दारी| आपकी मर्जी| हां ब्लॉग का नाम "एक नक्सलवादी की डायरी" रखें तो ज्यादा सार्थक रहेगा| डर-डर कर क्या समर्थन करना|

कभी समय मिले तो ७६ शहीदों की लाशों के चित्र देखना| उस समय तो आपकी जबान नहीं खुली| हम सब समझते हैं|
Ashoke Mehta said…
मेरे विचार से तो ऐसे चित्र लगा कर सिर्फ नक्सलवादियों की ही सहानुभूति प्राप्त कर सकते हैं , कभी आम जनता के विचारों को भी जानने का प्रयास कीजियेगा, जो नक्सलवादियों के अत्याचारों, ट्रेन उड़ाने की वारदातों और रोज- रोज के बंद के इनके फरमानों से परेशान है|
I think Ashok, Vyom, Suresh and Sanjay have a point to be noted and i support these gentlemen .
dil ko jhakjhorne wali taswir.....bhut dardnak...
विचित्र लोग हैं…इस चित्र पर आदमियत नहीं पुलिस की मजबूरी दिख रही है सुरेश जी को…विवाद बढ़ सकता है वरना बहुत कुछ कह जाते…
Suraj Patel said…
हो सकता है सरकार द्वारा इससे भी बुरा सलूक उनके साथ हुआ हो। यहाँ मौजूद सभी लोग इस माओवादी लोगों को बेहद बर्बर और जानवर कह रहे है। मैं एक घटना बताता हूँ जो मैंने बीबीसी पर पढ़ा है- रिबैका नाम की एक माओवादी लड़की ने जो कंधमाल ज़िले में रहती है उसने अपने इंटरव्यू में बताया कि "उसकी बहन को पुलिस द्वारा पहले गिरफ्तार किया गया और और बाद में फर्ज़ी इनकाउंटर में मार दिया और हमारे गांव में अन्य महिलाओं को डराने के लिए कि वो कभी कंधमाल माओवादी लोगों में ना शामिल हो उन्होंने उसके साथ उसकी मौत के 24 घंटे बाद तक बारी-बारी से सभी पुलिस वालों और कांस्टेबलों ने बलात्कार किया और उसकी लाश को उसी तरह नंगी, खून से सनी हालत में गावं में हमारे बीच छोड़कर चले गए। उस वक़्त तक मैं बंदूखो से बहुत डरती थी , पर उस घटना ने मेरी जिन्दगी को बदल कर रख दिया। आज मैं हर पुलिस वाले को मर देना चाहती हूँ क्योंकि हर एक की शक्ल में मुझे मेरी बहन का खूनी-बलात्कारी नजर आता है। (रो पड़ती है)"
आप लोगों से निवेदन है बिना पूरी जानकारी के किसी को कृपया गलत ना ठहरायें।
Anonymous said…
हो सकता है सरकार द्वारा इससे भी बुरा सलूक उनके साथ हुआ हो। यहाँ मौजूद सभी लोग इस माओवादी लोगों को बेहद बर्बर और जानवर कह रहे है। मैं एक घटना बताता हूँ जो मैंने बीबीसी पर पढ़ा है- रिबैका नाम की एक माओवादी लड़की ने जो कंधमाल ज़िले में रहती है उसने अपने इंटरव्यू में बताया कि "उसकी बहन को पुलिस द्वारा पहले गिरफ्तार किया गया और और बाद में फर्ज़ी इनकाउंटर में मार दिया और हमारे गांव में अन्य महिलाओं को डराने के लिए कि वो कभी कंधमाल माओवादी लोगों में ना शामिल हो उन्होंने उसके साथ उसकी मौत के 24 घंटे बाद तक बारी-बारी से सभी पुलिस वालों और कांस्टेबलों ने बलात्कार किया और उसकी लाश को उसी तरह नंगी, खून से सनी हालत में गावं में हमारे बीच छोड़कर चले गए। उस वक़्त तक मैं बंदूखो से बहुत डरती थी , पर उस घटना ने मेरी जिन्दगी को बदल कर रख दिया। आज मैं हर पुलिस वाले को मर देना चाहती हूँ क्योंकि हर एक की शक्ल में मुझे मेरी बहन का खूनी-बलात्कारी नजर आता है। (रो पड़ती है)"
आप लोगों से निवेदन है बिना पूरी जानकारी के किसी को कृपया गलत ना ठहरायें।
http://pittpat.blogspot.in/2010/06/blog-post_18.html?m=1

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