मनमोहन का कृषि-दर्शन
मनमोहन सिंह को कोई कुछ भला-बुरा कहता है तो अच्छा नहीं लगता। असल में मनमोहन सिंह बहुत कुछ अपने से लगते हैं। एक ईमानदार आदमी, जिसका राजनीतिक छल-छद्म और दिखावे से कोई लेना-देना नहीं। सामान्य मध्य-वर्गीय इंसान, जो संवेदनशील है, गरीबी से उठा है, कूपमंडूक नहीं है, किसी अंध विचारधारा के चंगुल में नहीं फंसा है, पढ़ा-लिखा है, बेहद अनुभवी है। बड़ी उम्मीद थी कि रिजर्व बैंक के गवर्नर से लेकर अंकटाड, आईएमएफ, विश्व बैंक और साउथ कमीशन तक के अनुभव के साथ वो देश की कृषि अर्थव्यवस्था पर एक जनोन्मुखी सोच पेश करेंगे। उम्मीद थी कि नियति ने इस गरीब के होनहार बेटे को जो ऐतिहासिक मौका दिया है, उसका फायदा उठाते हुए ऐसा कार्यक्रम पेश करेंगे जिससे खेती पर निर्भर देश की दो तिहाई आबादी का उद्धार हो सकेगा। लेकिन अफसोस, ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने ऐतिहासिक मौके को बेकार जाने दिया। उम्मीदों पर बर्फ फेर दी। दिखा दिया कि वे महज एक काबिल नौकरशाह हैं, उनके अंदर का राष्ट्रभक्त, संवेदनशील हिंदुस्तानी न जाने कब का दफ्न चुका है। उनसे नया कुछ करने की आस बेमानी है। बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मनमोहन सिंह ने इस सोच को प...