याकूब को सज़ा-ए-मौत : अच्छा नहीं लगा
विशेष टाडा अदालत ने याकूब मेमन को मौत की सजा सुना दी। न जाने क्यों ये फैसला सुनकर दिल को अच्छा नहीं लगा। ये सच है कि उसके बड़े भाई टाइगर मेमन ने ही अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम के साथ मिल कर 1993 के मुबंई बम धमाकों की साजिश रची थी। लेकिन ये भी सच है कि वह मेमन परिवार का एक शरीफ और पढ़ा लिखा सदस्य है जो धमाकों से पहले तक चार्टर्ड एकाउंटेंट की हैसियत से एक फर्म चलाता था। हम मान लें कि धमाकों की साजिश की जानकारी उसे थी। लेकिन जब टाइगर मेमन पूरे परिवार के साथ धमाकों से ठीक पहले दुबई भाग गया और वहीं कहीं सेटल हो गया था, तब सवा साल बाद ही 28 जुलाई 1994 को याकूब जिद करके भारत लौट आया था और उसने पुलिस के सामने जाकर खुद सरेंडर कर दिया। याकूब को यकीन था कि उसे सरकारी गवाह बना लिया जाएगा और एक बार फिर उसकी जिंदगी पटरी पर लौट आएगी। उसी ने सीबीआई के सामने इस साजिश से परत-दर-परत परदा उठाया, नहीं तो वह अंधेरे में ही तीर मारती रह जाती।
लेकिन जेल में बारह साल गुजारने के बाद जब सितंबर 2006 में विशेष टाडा अदालत ने याकूब मेमन को दोषी करार दिया तो वह कोर्ट में फट पड़ा। उसने अपने बड़े भाई टाइगर मेमन का जिक्र करते हुए कहा था, ‘वह सच कहता था कि तुम ..तिया हो। गांधीवाद करोगे और सब के सब टेररिस्ट बन जाओगे। तेरह साल लग गए (इसे) समझने में।’
आज याकूब को जज प्रमोद कोडे ने जब फांसी की सज़ा सुनाई तो वह एक बार फिर बिफर पड़ा। वह पूरा फैसला सुने बगैर ही चिल्लाने लगा, ‘हे परवरदिगार इस बंदे को माफ कर देना क्योंकि ये नहीं जानता कि ये क्या कर रहा है। मैं इस अदालत में अब एक मिनट भी नहीं रह सकता।’ ये कहते हुए याकूब कोर्ट से बाहर निकल गया। पुलिस वालों ने उसे किसी तरह संभाला। अब उसे पुणे की यरवदा जेल ले जाया जाएगा और इससे पहले उसे अपने बचे-खुचे रिश्तेदारों से भी मिलने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
धमाकों की मुख्य साजिश रचनेवाले टाइगर मेमन और अयूब मेमन फरार है, जबकि यूसुफ मेमन, ईशा मेमन और रुबीना मेमन को उम्रकैद की सज़ा दी गई है। याकूब ने पिछले साल सितंबर में दोषी करार दिए जाने के बावजूद कहा था कि उसे कानून पर पूरा भरोसा है और इसमें देर है पर अंधेर नहीं है। लेकिन अब उसका कानून से पूरा भरोसा उठ गया है। उसे लगता है कि कानून दो आंख कर रहा है क्योंकि उसी के बराबर इल्जाम वाले उसके सहयोगी मूलचंद शाह को इसी टाडा कोर्ट ने फांसी की नहीं, उम्रकैद की सज़ा सुनाई है।
कुछ लोग कह सकते हैं कि याकूब मेमन चालाक है और वह जान-बूझकर ईसामसीह जैसी बातें बोल रहा है। लेकिन हम सभी को जरूर सोचना चाहिए, जिस देश में दंगों को लेकर बराबर क्रिया-प्रतिक्रिया की बात की जाती है, उस देश में 1992 के मुंबई दंगों की प्रतिक्रिया में किए गए सीरियल बम धमाकों के दोषियों को तो सज़ा दी जा रही है, लेकिन इन दंगों में हज़ार से ज्यादा लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतारने वालों के खिलाफ अभी तक कार्रवाई की ही बात की जा रही है, जबकि श्रीकृष्णा आयोग नौ साल पहले ही पूरी जांच के बाद सारा सच सामने ला चुका है।
शायद याकूब को मिली मौत की सज़ा पर मुझे इसलिए भी दुख हो रहा होगा क्योंकि उसकी और मेरी दोनों की उम्र 45 साल की है और दोनों ही दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं। फिर भी हमारे कानून की दो आंखें हैं, शायद इस बात से आप भी नहीं इनकार कर पाएंगे।
लेकिन जेल में बारह साल गुजारने के बाद जब सितंबर 2006 में विशेष टाडा अदालत ने याकूब मेमन को दोषी करार दिया तो वह कोर्ट में फट पड़ा। उसने अपने बड़े भाई टाइगर मेमन का जिक्र करते हुए कहा था, ‘वह सच कहता था कि तुम ..तिया हो। गांधीवाद करोगे और सब के सब टेररिस्ट बन जाओगे। तेरह साल लग गए (इसे) समझने में।’
आज याकूब को जज प्रमोद कोडे ने जब फांसी की सज़ा सुनाई तो वह एक बार फिर बिफर पड़ा। वह पूरा फैसला सुने बगैर ही चिल्लाने लगा, ‘हे परवरदिगार इस बंदे को माफ कर देना क्योंकि ये नहीं जानता कि ये क्या कर रहा है। मैं इस अदालत में अब एक मिनट भी नहीं रह सकता।’ ये कहते हुए याकूब कोर्ट से बाहर निकल गया। पुलिस वालों ने उसे किसी तरह संभाला। अब उसे पुणे की यरवदा जेल ले जाया जाएगा और इससे पहले उसे अपने बचे-खुचे रिश्तेदारों से भी मिलने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
धमाकों की मुख्य साजिश रचनेवाले टाइगर मेमन और अयूब मेमन फरार है, जबकि यूसुफ मेमन, ईशा मेमन और रुबीना मेमन को उम्रकैद की सज़ा दी गई है। याकूब ने पिछले साल सितंबर में दोषी करार दिए जाने के बावजूद कहा था कि उसे कानून पर पूरा भरोसा है और इसमें देर है पर अंधेर नहीं है। लेकिन अब उसका कानून से पूरा भरोसा उठ गया है। उसे लगता है कि कानून दो आंख कर रहा है क्योंकि उसी के बराबर इल्जाम वाले उसके सहयोगी मूलचंद शाह को इसी टाडा कोर्ट ने फांसी की नहीं, उम्रकैद की सज़ा सुनाई है।
कुछ लोग कह सकते हैं कि याकूब मेमन चालाक है और वह जान-बूझकर ईसामसीह जैसी बातें बोल रहा है। लेकिन हम सभी को जरूर सोचना चाहिए, जिस देश में दंगों को लेकर बराबर क्रिया-प्रतिक्रिया की बात की जाती है, उस देश में 1992 के मुंबई दंगों की प्रतिक्रिया में किए गए सीरियल बम धमाकों के दोषियों को तो सज़ा दी जा रही है, लेकिन इन दंगों में हज़ार से ज्यादा लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतारने वालों के खिलाफ अभी तक कार्रवाई की ही बात की जा रही है, जबकि श्रीकृष्णा आयोग नौ साल पहले ही पूरी जांच के बाद सारा सच सामने ला चुका है।
शायद याकूब को मिली मौत की सज़ा पर मुझे इसलिए भी दुख हो रहा होगा क्योंकि उसकी और मेरी दोनों की उम्र 45 साल की है और दोनों ही दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं। फिर भी हमारे कानून की दो आंखें हैं, शायद इस बात से आप भी नहीं इनकार कर पाएंगे।
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