बातों का रफूगर हूं, पैबंद नहीं लगाता
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राजा ने पूछा - सुनते हैं कि तुम बातों के रफूगर हो। उसने कहा – हां। राजा ने कहा – ठीक है। मैं तुम्हें कुछ वाकये सुनाता हूं। तुम उनका रफू करो और नहीं कर सके तो तुम्हें शूली पर चढ़ा दिया जाएगा। उसने कहा – सुनाइए हुजूर, मैं तैयार हूं।
राजा ने पहला किस्सा सुनाया – एक बार मैं शिकार करने गया। जंगल में पहुंचा तो शेर सामने था। मैंने धनुष पर तीर चढ़ाकर चला दिया। तीर शेर के पंजे में लगकर कान से बाहर निकल गया। रफूगर, करो इसका रफू।
रफूगर बोला – इसमें क्या है। जब आपने तीर चलाया तो शेर पंजे से अपना कान खुजला रहा था।
राजा ने कहा - अब दूसरा किस्सा सुनो। मैं फिर शिकार खेलने गया। जंगल पहुंचा तो वहां आग लगी थी। आग से सभी जानवर भाग रहे थे। शेर भी जंगल से भाग रहा था। मैंने धनुष पर तीर चढ़ाकर उस पर वार किया। शेर आग के बावजूद जंगल में वापस कूद गया और जलकर मर गया।
रफूगर बोला – राजा साहब, इसके जवाब से पहले मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं। अगर आपकी मौत तय हो तो आप अपने राज्य में मरना पसंद करेंगे या बाहर।
राजा ने कहा – जाहिर है अपने राज्य में।
- तो हुजूर, जैसे आप अपने राज्य के राजा हैं, वैसे ही शेर भी जंगल का राजा था। आपके तीर से उसकी मौत तय थी और आग से भी मरना तय था। तो, उसने सोचा कि जब मरना ही है तो अपने राज्य में क्यों न मरा जाए।
राजा उस रफूगर के जवाब से संतुष्ट हो गए। उन्होंने कहा, अब तीसरा किस्सा सुनो। अगर कायदे से रफू न किया तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।
राजा ने बोलना शुरू किया – एक बार मैं फिर शिकार करने गया। शेर मुझे देखकर भागने लगा। मैंने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उस पर तीर छोड़ दिया। तीर शेर के पीछे लग गया। कभी शेर आगे तो कभी तीर आगे। कभी तीर आगे तो कभी शेर पीछे। करो, इसका रफू...
रफूगर ने बिना कुछ सोचे-समझे फौरन हाथ जोड़ लिया। झुककर बोला – हुजूर, गुस्ताखी माफ हो। मैं बातों का रफूगर हूं, पैबंद नहीं लगाता।
राजा ने उसे डांट कर भगा दिया यह कहते हुए कि तुम 21वीं सदी के भारत में पत्रकार नहीं बन सकते।
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देखिए मैंने आपकी बात में पैबंद लगा दिया!!!