अपने से चली बड़-बड़, तड़-बड़

पिता ने कहा – हवन करो। लेकिन मैं हवन क्यों करूं? मैं तो सोते-जागते निरंतर आहुतियां देता रहता हूं। जब बोलता हूं तो सांसों की आहुति देता हूं और जब सांस लेता हूं तो वचन की आहुति देता हूं।
दोस्तों ने कहा – जिंदगी में नशा ज़रूरी है। मैंने कहा - हर नशे से दूर हूं क्योंकि भोजन के नशे का आदी हो गया हूं। सिगरेट का नशा क्यों करूं? मैं तो हवा का नशा करता हूं। शराब का नशा क्यों करूं? मैं तो पानी का नशा करता हूं।
उसने कहा - मनुष्य के रूप में ये तुम्हारा पहला जन्म है। तभी तो तुम्हें दुनिया की रीति-नीति, छल-छद्म एकदम नहीं आते। मैंने कहा - शायद तुम ठीक कहते हो।
बॉस ने कहा – तुम जो कुछ हो, मैंने तुम्हें बनाया है। मैंने कहा – तुम मुझे क्या बनाओगे। मैं सूर्य-पुत्र, सरस्वती का बेटा। मैं असीम हूं, अनंत हूं। सूरज मेरा पिता है, नेता और दोस्त भी। जैसे वह पेड़-पौधों को बढ़ाता है, बनाता है, वैसे ही मुझे भी आगे बढ़ाएगा। उसका प्रकाश मेरे लिए भी जिंदगी और ज्ञान का स्रोत बन जाएगा। दोस्त की हैसियत से सूरज हर सफर में तब तक मेरे साथ चलता रहता है, जब तक वह डूब नहीं जाता। पेड़ों, घरों और बादलों की ओट आती जरूर है, लेकिन उनके पीछे भी सूरज लगातार मेरे साथ चलता रहता है। लेकिन उसका साथ तो केवल दिन का है, रात में क्या होगा, जिंदगी के अंधेरे में क्या होगा। कुछ नहीं होगा, मां सरस्वती की छाया तो मेरे साथ रहेगी।

Comments

क्या बात है..
Udan Tashtari said…
मां स्वरस्वती की कृपा बनी रहे.
Udan Tashtari said…
उपर: मां सरस्वती पढ़ें.

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