Thursday 19 July, 2007

देश के माथे पर बिंदी या कलंक का टीका

शाम ढल चुकी है। दिल्ली और राज्यों की राजधानियों में घड़ी की सुइयां दो घंटे पहले ही पांच बजा चुकी हैं। राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट पड़ चुके हैं। देश भर के 4,896 जन प्रतिनिधियों (776 सांसद, 4120 विधायक) के मतों के बहुमत से नए राष्ट्रपति का फैसला शनिवार 21 जुलाई की शाम तक सबके सामने आ जाएगा। यूपीए को यकीन है कि प्रतिभा पाटिल बहुमत से चुन ली जाएंगी और तब उनके माथे पर चिपके दाग-धब्बों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
कांग्रेस प्रतिभा पाटिल पर को-ऑपरेटिव बैंक, चीनी मिल, शिक्षा ट्रस्ट और सांसद निधि में घोटाला करने और हत्या के आरोपी अपने भाई को बचाने के आरोपों को बेबुनियाद मानती है। वह कहती है कि इन आरोपों के कोई दस्तावेज़ी सबूत नहीं है। वैसे आपको बता दूं कि इन आरोपों को अब हम दो दिन तक ही दोहरा सकते हैं। कह सकते हैं कि कैसी अंधविश्वासी महिला को हम आधुनिक भारत की राष्ट्रपति बना रहे हैं जो किसी मरे हुए शख्स से बात करने का दावा करती है। लेकिन कांग्रेस जानती है और हमें भी समझ लेना होगा कि राष्ट्रपति बन जाने के बाद हम प्रतिभा ताई की कोई आलोचना नहीं कर सकते, क्योंकि तब देश की महामहिम होने के नाते वे सारी आलोचनाओं और जवाबदेहियों से ऊपर उठ जाएंगी।
कांग्रेस और सरकारी वामपंथी बेशर्मी से कह रहे हैं कि प्रतिभा पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति होंगी और यह महिला एम्पावरमेंट का प्रतीक है। लेकिन देश की तमाम मुखर महिलाओं ने इसे समूचे महिला समुदाय का अपमान करार दिया है। रानी जेठमलानी, मधु किश्वर, इरा पांडे, कामिनी जायसवाल, ब्यास भौमिक और बीना रमानी जैसी कई प्रमुख हस्तियों ने सांसदों और विधायकों से विवेक के आधार पर वोट देने की अपील की थी। सांसद चाहते तो पार्टी की राय से खिलाफ जाकर अपने विवेक से वोट दे सकते थे क्योंकि राष्ट्रपति चुनावों में पार्टी का व्हिप नहीं चलता। लेकिन लगता नहीं कि ऐसा उन्होंने किया होगा क्योंकि निजी ‘सामुदायिक’ स्वार्थ उनके विवेक को कब का मार चुका है और प्रतिभा पाटिल से अच्छा उनके समुदाय का नुमाइंदा कोई और हो ही नहीं सकता। वैसे ये अच्छा भी है क्योंकि कलाम जैसे लोग हमारे राजनेताओं का असली प्रतिनिधित्व नहीं करते। कलाम एक अपवाद थे, जबकि प्रतिभा पाटिल एक नियम हैं, देश के नाम पर कलंक हैं।
इस बार का राष्ट्रपति चुनाव इसलिए भी दिलचस्प रहा कि अलग-अलग जेलों में बंद करीब आधा दर्जन सांसदों और पांच दर्जन विधायकों को भी वोट देने का पूरा मौका चुनाव आयोग ने मुहैया कराया। इस सहूलियत का फायदा उठाते हुए तिहाड़ जेल में बंद आरजेडी सांसद पप्पू यादव और बीजेपी सांसद बाबूलाल कटारा ने संसद में आकर वोट डाला। सीवान जेल में बंद आरजेडी सांसद शहाबुद्दीन ने पटना जाकर वोट डाला, जबकि दुमका जेल में बंद जेएमएम के सांसद और पूर्व कोयला मंत्री ने रांची में प्रतिभा ताई के मतों में 708 (प्रति सांसद नियत वोट) की संख्या जोड़ दी होगी।

8 comments:

Udan Tashtari said...

कैसी विडंबना है...क्या कहें.

आशीष "अंशुमाली" said...

आओ रानी हम ढोयेंगे पालकी।

Anonymous said...

अनिल रघुराज जी, नमस्कार
देश के माथे पर बिंदी तो नही हे लेकिन कलंक का टीका ही इस मोनिया ने लगा दिया हे के चारो तरफ़ अब दाग ओर दागदार ही नजर आते हे,

Anonymous said...

ाज के नेता तो कलंक ही है तभी कोई शरीफ इन्सान नेता बनने की चाहत नहीं रखता।

बोधिसत्व said...

आप को तो पता होना चाहिए सर कि नामांकन के बाद से ही मैडम को महामहिम वाला सत्कार मिल रहा है। आप समझ रहे हैं ना । बिंदी का खेल दूर तक जाएगा। दो मुहरों के साथ असल राज तो असल मैडम चला रहीं हैं। आज के बाद आप कलंक-वलंक सब भूल जाइए। यह सलाह ही है।

परमजीत सिहँ बाली said...

अंधेर नगरी चौपट राजा...कांग्रेस से और क्या उम्मीद रखते है आप? हमे तो सिर्फ देखने का अधिकार है।

संजय बेंगाणी said...

महिला सशक्तिकरण? क्या मजाक है! ऐसा हिअ तो महिला आरक्षण बिल लाईये ना.


मोहरा चाहिए,जो मिल गया है.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

मित्र ! हमारी बात का सरकार के लिए भले कोई मतलब न हो, लेकिन एक सच को सच की तरह कहने का अपना सुख तो है ही. इसके लिए बधाई आपको.