
पाकिस्तान ने दो सौ सालों के अंग्रेजी शासन से विरासत में मिले डीएम के पद को खत्म कर दिया है और अभी नहीं, सात साल पहले से। इसकी जगह ज़िला वित्त आयोग और ज़िला-स्तरीय पब्लिक सर्विस कमीशन बनाए गए हैं। ज़िले के अधिकारियों-कर्मचारियों का चयन ज़िला समितियां करती है और ये लोग राज्य या केंद्र सरकार के प्रति नहीं, इन समितियों के प्रति जवाबदेह होते हैं। हर ज़िला समिति के सदस्यों में महिलाओं का भी एक निश्चित अनुपात होता है। ज़िलों की इस नई प्रशासनिक व्यवस्था को पाकिस्तान के संविधान में शामिल कर लिया गया है।
हाल ही में लाहौर में स्थानीय स्वशासन पर एक संगोष्ठी की गई, जिसमें भारत और पाकिस्तान के कुछ केंद्रीय व प्रांतीय मंत्रियों, अफसरों, बुद्धिजीवियो और पंचायती स्तर तक के नुमाइंदों ने शिरकत की। उसी संगोष्ठी में प्रशासनिक सुधारों पर चर्चा के दौरान पाकिस्तान में डीएम के पद को खत्म करने के अनुभव पर भी बात की गई। इसी संगोष्ठी में नक्कारखाने में तूती बने हमारे पंचायती-राज मंत्री मणिशंकर अय्यर ने अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा कि भारत में 530 ज़िला पंचायतें हैं और यहां 32 लाख चुने हुए व्यक्ति हैं जो एक अरब भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वैसे, जिस देश में सालों-साल से चुनाव नहीं हुए हो, उसके लिए यह सच्चाई वाकई जलन की बात है और हमारे लिए गर्व की। ये अलग बात है कि हमारे पंचायती तंत्र की धमनियों में अभी तक सही रक्त संचार नहीं शुरू हो पाया है।

मेरे कहने का मतलब ये है कि आईएएस-पीसीएस जैसे अफसरों के खिलाफ एक सुगबुगाहट देश में लंबे समय से चल रही है। ऐसी ही सुगबुगाहट के चलते नौकरशाही के लाख विरोध के बावजूद राइट टू इनफॉरमेशन एक्ट आज अवाम के हाथों का एक मजबूत अस्त्र बन चुका है। ऐसे में किसी दिन डीएम साहब का ओहदा भी घेरे में न आ जाए। इसलिए देश भर के जिलाधिकारियों सावधान! वैसे भी आप लोग अपनी कम तनख्वाह और नेताओं के दखल से काफी समय से काफी परेशान चल रहे हैं। जारी...
6 comments:
ह्म्म, अफ़सरशाही पर अंकुश लगाने की एक अच्छी कोशिश!
शुक्रिया इस खबर के लिए!!
अफसरशाही का केन्द्रीय प्रस्थान बिन्दु कलक्टर ही होता है. ऊपर और नीचे के बीच ऐसी कड़ी जो जोड़ता कम उलझाता ज्यादा है.
सर्वज्ञ होने के बोझ से दबी अफसरशाही को नापने के लिए जरूरी है कि कलेक्टर की भूमिका पर कतर-ब्यौंत हो. जवाबदेह प्रशासन बनाने की मुहिम पता नहीं किस गर्त में है लेकिन अफसरशाही वह घुन है जो लगातार देश को खोखला कर रहा है. आम आदमी की धारणा यह है कि नेता भ्रष्ट होता है. लेकिन हकीकत इसके उलट है. अफसर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए भ्रष्टाचार के रास्ते तैयार करता है. आज देश जिस भूमंडलीकरण की चुनौती से जूझ रहा है उसका ले-आऊट भी इन्हीं अफसरशाहों ने तैयार किया है.
केवल कलेक्टर नहीं पूरी अफसरशाही से मुक्ति जरूरी है. लोकस्वराज्य की कुंजी भी इसीमें छिपी है. लिखना जारी रहे.
Badhiya, aapake vichar aur Sanjay ji ki Tippani bhi
हमारे देश में अभी लोकतंत्र की जो स्थिति है उससे तो ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में चुनाव की परम्परा ख़त्म करके यहाँ सिर्फ नियुक्तियाँ होंगी, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे पदों पर भी. अभी का ही परिदृश्य देख लें. नियुक्तियाँ होंगी तो जाहिर है कि इन पदों पर आई ए एस ही आएंगे. क्योंकि पालतूपने में इनका कोई जवाब नहीं है. आप कह रहे हैं कि जिलाधिकारी जाएगा. संभव ही नहीं है. ज्यादा से ज्यादा यही होगा कि नाम बदल जाएगा.
जारी रहें. अनिल भाई, मुझे भी यही लगता है कि बस नाम बदलेगा. प्रक्रिया वही रहेगी.
अगर नाम ही बदला और प्रक्रिया वही रही तो क्या फायदा! मेरा तो ये कहना है कि ऊपर से आरोपित डीएम के बजाय जिले के लोगों से चुना प्रतिनिधि आएगा तो नाम ही नहीं, उसका काम भी बदल जाएगा। उसके पूरी तरह जनोन्मुख होने में वक्त जरूर लगेगा, लेकिन एक सकारात्क शुरुआत हो जाए तो अच्छा ही रहेगा।
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