टीना बहुत उदास करनेवाली चीज़ है। इसलिए उसे छोड़कर आइए बीन बजाते हैं। चौंकिए मत, इस धीर-गंभीर रघुराज का पतन नहीं हुआ है और वह किसी लड़की को छोड़कर नागिन को रिझाने की बात नहीं कर रहा है। मैं तो उन जुमलों की बात कर रहा हूं, जिन्हें पिछले कुछ सालों से दुनिया भर के बुद्धिजीवियों के साथ ही अपने अंग्रेजीदां बुद्धिजीवी भी चलाए हुए हैं। टीना का विस्तृत रूप है There is No Alternative, जबकि इस सोच को खारिज करनेवाले लोग कहते हैं कि विकल्प ज़रूर है और Build it Now, जिसका संक्षिप्त रूप है बीन।
मैं भी बीन वाली सोच का पैरोकार हूं और मानता हूं कि देश-दुनिया, समाज को बदलने के विकल्प मौजूद हैं, बशर्ते कोई उन्हें देखना चाहे। मसलन, देश में किसानों की सेज़ (स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन) की बात ही ले ली जाए। इसी हफ्ते केंद्र सरकार ने मुकेश अंबानी के चौथे एसईज़ेड को मंजूरी दे दी। संसद की स्थाई समिति ने नए एसईज़ेड की मंजूरी पर फ्रीज लगाने की सिफारिश की थी, लेकिन गुरुवार, 12 जुलाई को एक ही दिन में 27 एसईज़ेड को हरी झंडी दे गई। कुल मिलाकर देश भर में अभी तक 511 एसईज़ेड की तैयारी अलग-अलग चरणों में है। इन सभी का मालिकाना बड़ी कंपनियों के पास है और सरकार इनमें किसानों को मौत की नींद सुलाने की सेज सजा रही है। लेकिन किसान खुद भी एसईज़ेड बनाने की कुव्वत रखते हैं, इस विकल्प को सरकार देखना ही नहीं चाहती।
किसानों की असल कुव्वत का एक सच्चा नमूना पेश है। महाराष्ट्र में पुणे से करीब 40 किलोमीटर दूर है अवसारी खुर्द नाम का गांव। यहां के तकरीबन डेढ़ हजार किसानों ने ग्रामसभा की बैठक में सर्वसम्मति ने अपने गांव को एसईज़ेड में तब्दील करने का फैसला किया है। इसके लिए वो एक कंपनी बना रहे हैं जिसका नाम होगा, अवसारी खुर्द इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड। गांव के सभी किसान इस कंपनी के शेयरधारक होंगे और शुरुआती पूंजी के रूप में कहीं से एक-एक लाख रुपए जुटाकर लगाएंगे। किसानों की जमीन तो अलग से पूंजी के रूप में रहेगी ही। किसानों के इस प्रयास को अंजाम तक पहुचाने में मदद की है माहरट्टा चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्रीज एंड एग्रीकल्चर ने।
इस चैंबर के प्रवक्ता सोपन भोर के मुताबिक, अवसारी खुर्द में एसईज़ेड बनाने की पूरी योजना केंद्र सरकार द्वारा तय सभी नियमों के हिसाब से बनाई गई है। गांव की कुल 6250 एकड़ जमीन का 40 फीसदी हिस्सा एसईज़ेड के लिए, 43 फीसदी हिस्सा खेती के लिए और 17 फीसदी हिस्सा रिहाइशी मकानों के लिए रखा गया है। करीब 2500 एकड़ के एसईज़ेड में ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल, केमिकल, इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल और बायो-टेक्नोलॉजी के साथ ही हॉर्टीकल्चर सेक्टर की कंपनियों को उद्योग चलाने का मौका दिया जाएगा। ग्रामसभा ने अपनी योजना में गोदामों से लेकर सड़कों और मॉल्स तक का प्रावधान भी रखा है।
गांव वालों का कहना है कि सरकार उनकी जमीन लेकर किसी बाहरी कंपनी को दे दे, इससे बेहतर ये है कि वो खुद ही औद्योगिकीकरण के बढते अवसरों का फायदा उठाएं। जरूरत भर की खेती करेंगे औद्योगिक तरीके से, साथ ही कंपनी भी चलाएंगे पूरे कारोबारी अंदाज में। इस तरह पुणे के इस अवसारी खुर्द गांव के किसानों ने आपसी रजामंदी के साथ एक विकल्प पेश किया है। उन्होंने अपना प्रस्ताव केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के मंजूरी के लिए भेज दिया है। किसानों ने सरकार की तरफ टीना के खिलाफ बीना का विकल्प फेंका है। देखिए, सरकार करती क्या है।
वैसे आपको बता दूं कि रिटेल सेक्टर में कॉरपोरेट मॉल्स के आने के खिलाफ कुछ ही महीने पहले पंजाब में गुरदासपुर के दुकानदारों ने भी मिलकर अपना मॉल बनाने की पहल की है।
मतदाता जागरूकता गीत
2 months ago
4 comments:
मुझे नहीं लगता कि बड़ी पूंजी ऐसे किसी प्रयास के पैर टिकने देगी.. और सरकार तो उनके हाथ का खिलौना है..
सहकारिता के ऐसे कई उदाहरण गुजरात में मौजूद हैं, जो कि पूँजीवाद के आगे भारी पड़े. पूँजीवादियों ने बल्कि इन संस्थाओं से हाथ मिलना बेहतर समझा और उनके प्रयासों को विस्तार देते हुये अपनी राह बनाई. यह पहल भी एक सार्थक पहल है. ऐसे प्रयास होने चाहिये. सफलता/असफलता तो प्रयास की परिणीति है, जो भविष्य निर्धारित करेगा. दिशा उचित है.
भईया लोकतंत्र पूंजीवादियों की रखैल बन गया है । आगे आगे देखिये होता है क्या । एक बात और । आपका स्प्लैशकास्ट लोगो आधा कट रहा है । या तो उसे अज़दक जी की तरह नीचे लगाईये या फिर मेरे चिट्ठे की तरह पिकल प्लेयर पर लगाईये । अधिक जानकारी के लिए ई पंडित की क्लास में जाईये । वहां सब लिखा है ।
यूनुस भाई, शुकिया। मुझे लगता है कि जो भी विकल्प आम लोगों के बीच में उभरते हैं, उनके जरिए हमें सत्ता को एक्सपोज करते रहना चाहिए कि उसकी बातें, उसका लोकतंत्र कैसे झूठा है। और, स्प्लैशकास्ट के लिए आपने बताया कि ई-पंडित की शरण में जा रहा हूं। तब तक अजदक से लिया गया स्प्लैशकास्ट हटा रहा हूं।
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