प्यार में नहीं चलती जागीरदारी

अमेरिका के ओहायो प्रांत का एक्रॉन शहर। इसी शहर में रहा करते थे एक अनिवासी भारतीय डॉक्टर, जिनका नाम था गुलाम मूंडा। सालों पहले भारत से गए तो अमेरिका के ही बनकर रह गए। जमकर दौलत कमाई। लेकिन प्यार में ओवर-पज़ेसिव होना उनकी मौत का सबब बन गया। उनकी मौत का ज़रिया बन गई वही औरत जो पहले उनकी क्लीनिक में नर्स थी और बाद में उनकी बीवी बन गई, जिसे वो अपनी ज़ागीर की तरह सहेज कर, संवार कर रखते थे।
जी हां, डोना मूंडा, यही नाम है डॉ. गुलाम मूंडा की 48 साल की पत्नी का, जिस पर इल्जाम है कि उसने 26 साल के एक नौजवान को अपनी लाखों डॉलर की जायदाद का आधा हिस्सा देने का लालच दिखाया और उसके हाथों 69 साल के अपने पति की हत्या करवा दी। डोना को गिरफ्तार किया जा चुका है और सज़ा का फैसला भी होनेवाला है। उसे या तो उम्रकैद मिलेगी या मिलेगी सज़ा-ए-मौत। अगर उसे मौत की सज़ा मिलती है तो वह अमेरिका के इतिहास में मौत की सज़ा पानेवाली तीसरी महिला होगी। वैसे, जो औरत ताज़िंदगी तिल-तिल कर मरती रही, शायद उसके लिए मौत की सज़ा ज्यादा तकलीफदेह नहीं होगी।
डॉ. गुलाम मूंडा डोना का इतना ख्याल रखते थे कि पूछिए मत। वह कब कौन-सी जूतियां पहनेगी, कब कौन से सैंडल या चप्पल पहनेगी, इससे लेकर डॉक्टर साहब ही तय करते थे कि वह कौन-सा पर्स रखेगी, कौन-सी परफ्यूम लगाएगी। यहां तक कि डिनर की मेज़ पर उसके रिश्तेदार कहां-कहां बैठेंगे, इसका भी फैसला वे ही करते थे।
डॉक्टर साहब जब काम से घर लौटते तो उन्हें फलों की प्लेट तैयार चाहिए होती थी। उसके बाद वो जब आराम करते थे तो घर में पूरी शांति रहनी जरूरी होती थी, नहीं तो उनका पारा सातवें आसमान तक चढ़ जाता था। जागीर बनी डोना को उनकी ये सारी की सारी ख्वाहिशें पूरी करनी पड़ती थीं। डोना समझ ही नहीं पाई कि उसका वजूद कब मिटता गया और कब वह गुलाम की बांदी बन गई। लेकिन एक दिन उसके वजूद ने उससे अपने होने का मतलब पूछा तो उस पर छाये ओवर-पज़ेसिव प्यार का कवच फट पड़ा।
उसने डैमियन ब्रैडफोर्ड को पहले अपना ब्वॉयफ्रेंड बनाया और फिर उससे कहा कि अगर वह उसे उसके पति से निजात दिला दे तो वह अपनी आधी जायदाद उसके नाम कर देगी। ब्रैडफोर्ड इस झांसे में आ गया। उसने 13 मई 2005 को डॉक्टर गुलाम मूंडा के सिर पर सीधे गोली मारी और उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया। लेकिन वह जब पुलिस के हत्थे चढ़ा तो उसने डोना की साजिश को बेपरदा कर दिया। ब्रैडफोर्ड को साढ़े सत्रह साल कैद की सज़ा मिल चुकी है।
लेकिन एक सवाल मेरे मन में उठता है कि क्या प्यार में ओवर-पज़ेसिव होना सही है, मानवीय है? क्या अपने प्यार में किसी के वजूद को ही मिटा देना वाज़िब है? आखिर हर किसी का अपना अलग व्यक्तित्व होता है, शख्सियत होती है। कबीर जब कहते हैं कि नैना अंतर आव तू, पलक छांपि तोहि लेहु, न मैं देखूं और को, तुज्झ न देखन देहूं, तो यकीनन इसमें ओवर-पज़ेसिव प्यार का ही इजहार है, लेकिन इससे पहले वो अपना सीस उतार कर ज़मीन पर भी रख चुके होते हैं, खुद का बलिदान कर चुके होते हैं। प्यार में अपना बलिदान पहली शर्त होती है, नहीं तो वह डॉ. गुलाम मूंडा की तरह दूसरों को अपनी जागीर बनाने का ज़रिया भर रह जाता है।
अपडेट : डोना मूंडा को जूरी ने सज़ा-ए-मौत के बजाय उम्रकैद की सज़ा सुनाई है।

Comments

का न करे अबला प्रबल...
अनिल जी, कबीर जब कहते हैं कि नैना अंतर आव तू, पलक छांपि तोहि लेहु, न मैं देखूं और को, तुज्झ न देखन देहूं.. तो वहां 'दुई' नहीं है। सीस उतर चुका है।
इसलिए वहां से यहां का कोई तुक-तान नहीं बैठता।
शुक्रिया आशीष जी, वैसे भी कबीर ने ब्रह्म के सिलसिए में शायद ये दोहा कहा था। मैंने तो बस ओवर-पज़ेसिवनेस को साफ करने के लिए इस दोहे को कोट किया था। इसमें अबला की ही बात नहीं है, प्यार में ओवर-पज़ेसिवनेस किसी की भी तरफ से हो सकता है, पुरुष की तरफ से भी और महिला की तरफ से भी। अभी लिखते-लिखते एक उक्ति याद आ गयी। जाट रे जाट तेरे सर पर खाट, के जवाब में जाट ने कहा - तेली रे तेली तेरे सर पर कोल्हू। जाट के जवाब में तुक-तान नहीं था, लेकिन 'वजन' तो था। खैर, सही बात उठाने के लिए एक बार फिर, शुक्रिया दोस्त।
azdak said…
प्‍यार के समर क्षेत्र में कब कौन शिकार है कौन शिकारी.. इस मायालोक में काले-सफ़ेद का स्‍पष्‍ट भेद करना आसान नहीं.. मूंडा परिवार की आपकी लिखी कहानी में मेरे तईं दोनों ही विलेन हैं, और दोनों ही विक्टिम..
प्रमोद जी की बात से हम भी सहमत हैं।

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