Friday 13 July, 2007

शास्त्रीजी ने ले ली अपनी क्लास

शरीर क्या है? क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व यह अधम शरीरा। ये तो छह-सात सौ साल पहले कही गई पुरानी बात है, नया क्या है? नहीं पता। क्यों नहीं पता? नहीं पढ़ा। पढ़ना चाहिए था ना!
प्राण क्या है? आत्मा ही प्राण है। आत्मा क्या है? परमात्मा का अंश। परमात्मा क्या है? नहीं पता। क्यों नहीं पता? सोचा नहीं। सोचना चाहिए था ना!
जीवन के लिए बुनियादी ज़रूरत क्या है? रोटी, कपड़ा और मकान। अरे बेवकूफ, मैं ये नहीं पूछ रहा। मेरा सवाल है कि जीवन की उत्पत्ति के लिए बुनियादी ज़रूरतें क्या हैं? पता है। अच्छा! कैसे? कल ही पढ़ा है। तो बताओ...
जीवन की उत्पत्ति के लिए बुनियादी ज़रूरतें हैं – पानी जैसा कोई एक तरल बायो-सॉल्वेंट, कार्बन आधारित मेटाबॉलिज्म, अणुओं की ऐसी व्यवस्था जो इवॉल्व कर सके, खुद को विकसित कर सके, और बाहरी पर्यावरण से ऊर्जा के आदान-प्रदान की क्षमता।
लेकिन क्या जीवन के लिए केवल यही शर्तें रह गई हैं?
...पता है, पता है, बताता हूं। अमेरिका की नेशनल रिसर्च काउंसिल की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती से भिन्न रूपों में भी जीवन का होना संभव है। जिन ग्रहों पर पानी और ऑक्सीजन नहीं है, वहां भी जीवन हो सकता है। हमें इस सोच से बाहर निकलना होगा कि जीवन जहां भी होगा, धरती के जीवन जैसा होगा या उससे संबधित ज़रूर होगा।
वैसे धरती पर विचित्र-विचित्र किस्म के जीव-जंतु हैं। कुछ ऐसे जीवाणु हैं जिन्हें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन नहीं चाहिए, बल्कि वे ऑक्सीजन की उपस्थिति में मर जाते हैं। साल 2003 में ही एकल कोशिका वाले एक जीवाणु की खोज की गई है। स्ट्रेन-121 नाम का ये जीवाणु 120 डिग्री सेंटीग्रेट पर भी आराम से रह सकता है, बच्चे पैदा कर सकता है। ये वह तापमान है, जिस पर अस्पताओं में चीरने-फाड़ने के औजारों को स्टेरलाइज किया जाता है। समुद्र की तलहटी में हजारों गुना वायुमंडलीय दबाव के बीच भी जीव होते हैं, जबकि इस दबाव में सामान्य पानी का जहाज चाक की तरह चकनाचूर हो जाएगा। रूस में रेडियो-एक्टिव लीकेज के हादसे से गुजरे चेर्नोबिल इलाके में ऐसा बैक्टीरिया पाया गया है, जो इंसान को मारने लायक रेडिएशन से 10,000 गुना ज्यादा रेडिएशन में भी मजे से जिंदा रहता है।
शाबाश। अच्छी पढ़ाई की है। अब इसे पचाने की कोशिश करो। अपने जेहन में जीव, जीवन और शरीर की साफ सोच और चिंतन विकसित करो।

3 comments:

अभय तिवारी said...

जी गुरु जी

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अरे भाई. आप उन नेताओं, अफसरों और पूजीपतियों को तर्क क्यों दे रहे हैं जो यह चाहते हैं कि श्रमिक बिना खाए-पिए ही जिंदा रहे. कोई फैक्ट्री लगाने जा रहे हैं क्या?

Udan Tashtari said...

नहीं पच पा रहा, मास्साब!! पेट में मरोड़ हो रही है.