Friday 6 July, 2007

मैं मूर्ख हूं क्योंकि मैंने ताज को...

मैं ताज को वोट देने की मूर्खता करने का दोषी हूं। इसलिए नहीं कि ताज को दुनिया के सात अजूबों में नहीं शुमार किया जाना चाहिए, बल्कि इसलिए कि मैं नए अजूबों के नाम पर मुनाफा बटोरने वाली एक निजी संस्था के झांसे का शिकार हो गया। मैंने तो ताज को वोट देकर अपनी राष्ट्रवादी भावना का इजहार किया था। लेकिन मुझे क्या पता था कि अब राष्ट्रवाद की भावना के भी सौदागर पैदा हो गए हैं।
हकीकत ये है कि दुनिया के नए सात अजूबों को चुनने का जो अभियान चल रहा है, उसका संचालक है स्विटजरलैंड का एक संगठन, न्यू ओपन वर्ल्ड कॉरपोरेशन (एनओडब्ल्यूसी) जिसका मकसद इससे लाभ कमाना है। इसके लिए मुझ जैसे कुछ मूर्ख लोग मुफ्त में वोट दे रहे हैं, लेकिन इसके लिए वोट खरीदे भी जा रहे हैं। एनओडब्ल्यूसी निजी डोनेशन जुटाता है और कप व शर्ट जैसी चीजों के साथ ही ब्रॉडकास्टिंग अधिकार भी बेचकर मुनाफा बटोरता है। इसे एक स्विस बिजनेसमैन बर्नार्ड वेबर ने प्रमोट किया है और यूनेस्को के पूर्व डायरेक्टर जनरल फेडेरिको मेयर इससे निजी हैसियत से जुड़े हैं। लेकिन यूनेस्को या किसी दूसरी विश्व संस्था से इसका कोई लेनादेना नहीं है।
दूसरा आंखें खोल देनेवाला सच ये है कि वोट को गिनने के लिए एनओडब्ल्यूसी की अपनी टर्म्स एंड कंडीशंस हैं। उसने साफ-साफ कहा है कि वह चाहे तो किसी भी वोट को खारिज कर सकता है। यानी, ताज को कितने भी वोट दें, स्विटजरलैंड के इस मुनाफाखोर संगठन के पास उसे निरस्त करने का सर्वाधिकार सुरक्षित है।
अब आप ही बताइए कि ताज को अगर मैंने वोट दिया है तो मैं दोषी हूं या नहीं। और अगर आप भी मेरी तरह भावुकता में आकर भारत में फेयर एंड लवली के अभियान का हिस्सा बने हैं, तो आप भी मेरी तरह एक निपट राष्ट्रवादी मूर्ख है। भूल सुधार के लिए मैं अपने ब्लॉग के साइड बार में ताज से जुड़े ए आर रहमान के गाने की क्लिप हटा रहा हूं क्योंकि वह भी फेयर एंड लवली के झांसे में आने का ही नतीजा था। वैसे भी, कल यानी 7 जुलाई 2007 को दुनिया के नए सात अजूबों का ‘फैसला’ होनेवाला है।

6 comments:

Sagar Chand Nahar said...

मुझे भी उस मूर्ख राष्ट्रवादी की लिस्ट में शामिल समझें।

अभय तिवारी said...

ये अच्छा बताया आप ने..

Sanjeet Tripathi said...

शामिल तो मै भी हूं!!

Udan Tashtari said...

गल्ती अगर भविष्य में फिर वैसी ही गल्ती न करने की सीख दे दे तो वह गल्ती न कहला कर सबक बन जाती है. आपने गल्ती को स्विकारा, एक सबक लिया, इसलिये आप मूर्ख नहीं कहलाये. आपको साधुवाद-मूर्ख तो हम कहलाये, जो गल्ती कर भी चुके हैं और शर्म में किसी को बता भी नहीं रहे .दांतों में ऊंगली दबाये बैठे हैं, बस्स!!

रवि रतलामी said...

तरकश स्तंभ पढ़ते रहा करिए... ये बात मैंने 20 जून 07 को ही बता दी थी इस आलेख में-
http://www.tarakash.com/content/view/298/464/

अनिल रघुराज said...

रतलामी जी, मैंने तो अपने ब्लॉग पर आपको अपना गुरु घोषित कर रखा है। आपके हिंदी ब्लॉग से मैं बहुत कुछ सीखता रहता हूं। तरकश का लेख मैंने अभी देखा। तर्क अच्छे हैं, बात पते की है।