लिखें तो ऐसा कि दूसरे लोग जुड़ते चले जाएं

वैसे तो टेक्नोराती की अथॉरिटी का हम हिंदी ब्लॉगरों के लिए फिलहाल कोई विशेष मतलब नहीं है। फिर भी आपकी औकात ज्यादा आंकी जाए तो भला किसको अच्छा नहीं लगता। लेकिन इधर हफ्ते-दो हफ्ते से टेक्नोराती की अथॉरिटी में तेज़ गिरावट आ रही है। कभी 92 तक जा चुकी मेरी अथॉरिटी घटते-घटते अब 74 पर आ गई है और हो सकता है जब आप यह पोस्ट पढ़ रहे हों तब तक वह 1-2 सीढ़ी और नीचे गिर गई हो। टेक्नोराती के सहायता फोरम में झांककर देखा तो कइयों के साथ यही समस्या नज़र आई। मुझे लगा कि शिकायत वगैरह करने का कोई फायदा नहीं है तो अथॉरिटी की मूल धारणा ही समझ ली जाए।

टेक्नोराती अथॉरिटी उन ब्लॉगों की संख्या है जिन्होंने पिछले छह महीने (180 दिन) में आपके ब्लॉग का लिंक दिया है, चाहे ब्लॉगरोल में या किसी पोस्ट में। जितने ज्यादा से ज्यादा लोग आपको लिंक करेंगे, आपके ब्लॉग की अथॉरिटी उतनी ही बढ़ती जाएगी। इसमें एक बात और गौर करने लायक है कि 180 दिन होते ही अथॉरिटी में पिछले लिंक्स की अहमियत शून्य हो जाती है। साथ ही कोई ब्लॉग अगर आपको 180 दिन में सौ बार भी लिंक करे तब भी टेक्नोराती अथॉरिटी में उसका योगदान केवल एक का रहेगा। मतलब साफ है कि टेक्नोराती अथॉरिटी दिखाती है कि आप औरों के लिए कितने प्रासंगिक हैं और इस प्रासंगिकता में कितनी गत्यात्मकता है।

अपने यहां हिंदी में भी इस तरह का कोई पैमाना लोगों को सक्रिय और प्रासंगिक लिखने के लिए प्रेरित कर सकता है। चिट्ठाजगत ने धाक, सक्रियता क्रमांक के ज़रिए यह कोशिश की थी, जो अब क्रमांक और हवाले में तब्दील हो गया है। लेकिन उनकी पूरी धारणा का प्रचार कम हुआ है। क्रमांक वगैरह का व्यावहारिक, वैज्ञानिक आधार क्या है, नहीं मालूम। मुझे लगता है कि अंग्रेज़ी के किसी स्थापित मानदंड को कॉपी करने के बजाय हिंदी ब्लॉगिंग की मूल प्रकृति और स्थिति को ध्यान में रखते हुए कोई तरीका निकाला जाना चाहिए। क्योंकि कोई लाख मुंडी हिलाए, लेकिन होड़ में आगे रहना इंसान की बड़ी बुनियादी फितरत है। कंप्टीशन का माहौल किसी भी क्षेत्र में स्वस्थ सक्रियता बनाने के लिए बेहद ज़रूरी है। और, अथॉरिटी की होड़ इसमें मददगार साबित होगी।

टेक्नोराती की मानें तो अथॉरिटी बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप ऐसी बातें लिखें जिनमें दूसरे ब्लॉगरों की दिलचस्पी हो ताकि वे आपका लिंक दे दें। साथ ही जब भी आप अपनी पोस्ट में कोई जानकारी दें तो उसके स्रोत का भी लिंक दें ताकि पढ़नेवाले वहां पर जा सकें और आपसी संवाद की स्थिति बनें। यानी, अथॉरिटी बढ़ाना चाहते हैं तो स्वांत: सुखाय लिखने का इरादा छोड़ दीजिए और फिलहाल पाठकों के किसी अदृश्य समूह के लिए नहीं, बल्कि करीब 3000 हिंदी ब्लॉगरों से सार्थक संवाद बनाने के लिए लिखिए।

अब कुछ अपनी बात कर ली जाए। मुझे इस बात का बड़ा दुख है कि मैंने अपने साइडबार में 140 ब्लॉगों को लिंक किया है और हर हफ्ते किसी न किसी पोस्ट में इनसे भिन्न दूसरे ब्लॉगरों (मोहल्ला और भड़ास को छोड़कर) का लिंक देता रहता हूं, लेकिन इनमें से लगभग आधे ब्लॉगों ने मुझे जोड़ने की ज़रूरत ही नहीं समझी। इसकी दो वजह हो सकती है। एक, लोग अपने में इतने में डूबे हैं कि उन्हें होश ही नहीं है कि दूसरा बंदा क्या कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वे अपनी बेहोशी में कृतघ्न बन गए हैं। दो, मेरे ब्लॉग में उन्हें अपने किसी काम की कोई बात नहीं नज़र आती। खैर, मैंने तो अपनी तरफ से और भी ज्यादा ब्लॉगों के लिंक देने की योजना बना रखी है। आधी दुनिया की दस्तक, जिनसे गुलज़ार है महफिल और जो लगते हैं अपने से के अलावा जल्दी ही साहित्य से जुड़े ब्लॉगों की अलग श्रेणी जोड़ने जा रहा हूं। हालांकि मुझे पता है कि शायद ही कविता/साहित्य से जुड़े किसी ब्लॉग ने मुझे अपने स्तर का समझा है।

अंत में टेक्नोराती अथॉरिटी के कुछ आंकड़े। हमारे चिट्ठाजगत की अथॉरिटी इस समय 308 चल रही है, ब्लॉगवाणी की अथॉरिटी 137 है, जबकि नारद जी की महिमा तिरोहित होते-होते 55 पर जा पहुंची है। दुख होता है कि नारद का ये हाल क्यों और कैसे हो गया। लेकिन प्रतिस्पर्धा के भाव से निकली खुशी भी होती है कि चलो हम गिरते-पड़ते भी आज नारद से आगे हैं। आप में से जो भी अपने या किसी और के ब्लॉग की अथॉरिटी जानना चाहता हो, वो टेक्नोराती के सर्च में उसका यूआरएल डालकर जान सकता है।
फोटो सौजन्य : dabcanboulet

Comments

बात पते की है और ज़मीनी भी .
लेकिन, आजकल चीज़ें प्रायोजित ज़्यादा मालूम पड़ती हैं.
मुझे लगता है अच्छी और प्रामाणिक बातों का संप्रेषण
अधिक धैर्य और अडिग संलग्नता से ही संभव है.
मुक्तिबोध जैसी संकल्पधर्मा चेतना हो तो
कोई भी रुकावट थकान पैदा नहीं कर सकती.
विषय चयन में आपका ज़वाब नहीं !

आपके साथ लिंकित है हमारा मन .
लिखते रहिए ...... हम पढ़ते रहेंगे !!
=======================
शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन
Sanjay Tiwari said…
लोगअपने में हप डूबे हैं. यह सही है.
गूगल पेजरैंक भी इसी सिद्धांत पर काम करता है. पता नहीं लोग लिंक करने का महत्व कब समझेंगे
vikas pandey said…
अनिल जी,
आपने फिर से एक रोचक विषय चुना, इसके लिए धन्यवाद.
मेरा एक सुझाव है.अगर कमेंट्स के बाद ब्लॉग ओनर भी रिप्लाइ करे तो संवाद की स्थिति बनेगी. सार्थक बहस से नये विचारों का जन्म होगा.
शायद हम ब्लॉग इसीलिए तो लिखते हैं.
Abhishek Ojha said…
इसकी तो कभी जरुरत ही नहीं महसूस हुई... चलिए आपने कहा है तो हम भी ब्लोगरोल डालते हैं जल्दी ही.
लिंकिंग बहुत बढ़िया चीज है, पर केवल मार-काट के लिये लिंक करने वालों से भी भगवान बचायें! :)
अच्छा लिखने के बारे में सोचा जा सकता है पर लिखना बहुत मुश्किल है...रही बात लिंक देने की लोग तो टीप तक नहीं देते....कही उनकी टीप से कोई ब्लॉगर अजर अमर न हो जाए..
Manish Kumar said…
फिलहाल पाठकों के किसी अदृश्य समूह के लिए नहीं, बल्कि करीब 3000 हिंदी ब्लॉगरों से सार्थक संवाद बनाने के लिए लिखिए

अनिल भाई जिससे आपका मन और विचार मिलेंगे तभी तो आप उससे संवाद बनायेंगे ना कि जबरदस्ती अपनी अथारटी बढ़ाने के लिए। कम से कम मूक पाठक भी आपकी भावनाओं को समझ कर जाए तो वो आपकों दुबारा पढ़ने जरूर आएँगे। इनमें से कई चिट्ठे की बेहतरी के लिए सुझाव भी देते हैं और कभी खुशी से भरे खत भी। औपचारिक लिंकिंग और टिप्पणियों से ज्यादा कहीं इनकी एक कर्मठ चिटठेकार को इनकी जरूरत है ।

एक दूसरे को बिना वज़ह लिंकित करना मेरी समझ से सही नहीं है। ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि हमने अपने लिखने के लिए कौन सा विषय चुना है और उस विषय से जुड़ी बात पहले कौन लिख चुका है।
मैं फिर भी कहूँगा कि स्वान्तः सुखाय ही लिखिये.. वरना यह प्रवृत्ति जादू-मंतर और सेक्स-वायलेंस तक ले के जा सकती है..
दूसरे क्या चाहते हैं आप सिर्फ़ अनुमान लगा सकते हैं पर अपना मन तो सभी जानते हैं.. अपने मन के लिए लिखिये.. सभी को पसन्द आएगा.. या हम दूसरों से इतने अलग हैं?
अनिल जी,
मेरा ब्लॉग भी दस दिन पुराना हो गया है लेकिन मुझे यह लिंक देने का ढंग नहीं आ रहा है. थोड़ी मदद कीजिये .
http://satyarthmitra.blogspot.com
अभय जी के साथ एक हाथ मेरा भी गिन लीजिये
Unknown said…
आपके ब्लॉगरोल का बड़ा महात्म्य है - आपका ब्लॉगरोल मेरे लिए तो बहुत से नायाब ब्लॉग पढने का पहला कदम रहा है - अभी भी अधिकांश नए ठिकाने यहीं से मिलते हैं - मेरे जैसे और भी होंगे - आलस है कि अपना बनाना नहीं सीखा [ कृतघ्नता नहीं है [:-)] - सादर - मनीष

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