रिश्ता पब्लिक टॉयलेट और कोला की बिक्री का

नगरों-महानगरों में पब्लिक टॉयलेट और मर्दाना कमज़ोरी की दवाओं का रिश्ता तो मेरा देखा-पढ़ा है। पब्लिक टॉयलेट्स के ‘भित्ति-चित्र’ भी मैंने सालों से देखे-परखे हैं। लेकिन इस सार्वजनिक सुविधा और कोला की बिक्री में कोई सीधा रिश्ता है, इसका पता मुझे कल रमा बीजापुरकर के एक इंटरव्यू से चला। रमा बीजापुरकर बाज़ार की रणनीतिकार हैं। तमाम देशी-विदेशी कंपनियां अपने माल और सेवाओं के बारे में उनसे सलाह लेती हैं। सोमवार को ही उनकी नई किताब – We are like that only : Understanding the logic of consumer India बाज़ार में आई है, मुंबई में जिसका विमोचन खुद वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने किया।

बीजापुरकर भारत के बाज़ार की खासियत बताते हुए कहती हैं : कोला कंपनी का कोई मॉडल मेक्सिको में चल गया, पोलैंड में चल गया तो मान लिया जाता है कि वह भारत में भी कारगर होगा। लेकिन वह यहां नहीं चलेगा क्योंकि यहां पर्याप्त आउटडोर टॉयलेट नहीं हैं और लोग ज्यादा कोला नहीं पिएंगे। देश का जीडीपी बढ़ सकता है, लेकिन शायद आउटडोर टॉयलेट्स की संख्या नहीं।

मतलब साफ है कि भारतीय लोग ज्यादा कोला इसलिए नहीं पिएंगे क्योंकि इसके बाद उन्हें बार-बार मुतारी की सेवाएं लेनी पड़ेंगी। मुंबई से लेकर दिल्ली तक में पब्लिक टॉयलेट्स का जो इंतज़ाम है, उसे देखते हुए उन्हें या तो खुद को दबाकर रखना पड़ेगा या सार्वजनिक जगहों पर गंदगी करनी पड़ेगी जिसके लिए उन्हें मुंबई में पुलिस पकड़ सकती है और सबके सामने फजीहत करने के साथ ही उन पर जुर्माना भी लगा सकती है।

वाकई, बीजापुरकर की बुनियादी सोच और दृष्टि की दाद देनी पड़ेगी। अगर उनकी इस बात से सहमत होते हुए कोला कंपनियों ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया और उसके चलते शहरों में पब्लिक टॉयलेट्स की संख्या बढ़ा दी गई तो हम बीजापुरकर के बड़े आभारी होंगे। कोला तो हम जिस रफ्तार से पीते रहे हैं, उसी रफ्तार से पीते रहेंगे, लेकिन उसका साइड एफेक्ट निश्चित दूरी पर बने पब्लिक टॉयलेट्स के रूप में सामने आ जाएगा। क्या बात है!! हालांकि कोला में कीटनाशकों के पाए जाने पर एक कम्युनिस्ट सांसद और योगगुरु बाबा रामदेव ने भी बताया था कि इससे टॉयलेट बहुत अच्छा साफ होता, लेकिन न तो कंपनियों ने और न ही सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

साइड-बार में आधी दुनिया की दस्तक

दोस्तों, चिट्ठाजगत में पंजीकृत हिंदी ब्लॉगों की संख्या 1216 हो चुकी है। लेकिन इनमें से बमुश्किल 25 ब्लॉग ही महिलाओं के हैं। वैसे तो गांधी जी भी कहा करते थे कि हर पुरुष में एक स्त्री होती है और उनमें भी है। लेकिन संवेदनशीलता के मामले में पुरुष शायद महिलाओं का मुकाबला नहीं कर सकते। मैंने इस संवेदशीलता को दर्ज करने के लिए अपने साइड बार में अभी तक जिनका-जिनका मुझे पता चल सका, उन महिलाओं के ब्लॉगों की घूमती हुई सूची लगाई है। इसमें रसोई वाले ब्लॉग मैंने जान-बूझकर नहीं लगाए हैं। कोई महिला ब्लॉगर छूट रही हों, तो मुझे सूचित कर सकती हैं। मुझे लगता है कि हम सभी को अपने ब्लॉग रोल में हिंदी ब्लॉगिंग की पूरी की पूरी आधी दुनिया को जगह देनी चाहिए।
इस घूमते हुए ब्लॉगरोल के चमत्कार के लिए मैं सागरचंद नाहर जी का आभारी हूं।

Comments

काकेश said…
This comment has been removed by the author.
काकेश said…
और हम आपके आभारी हैं कि आपने रमा जी के बारे में बताया और आधी दुनिया को जगह दी.
Batangad said…
अभी मैं आपसे ये ब्लॉगरोल बनाना सीखता हूं। फिर आपका आदेश मानकर सभी को अपने पन्ने पर भी जोड़ता हूं।
बीजापुरकर ने पब्लिक टॉयलेट और कोला का जो सम्बन्ध बताया वह वास्तव मे रोचक है. आपके द्वारा ब्लोग्रोल संबंधित जानकारी भी बड़ी काम की है इसे व्यवहार करने का प्रयास करूंगा.
आलोक said…
अनिल जी, इस दिलचस्प जानकारी ने फ़्रीकोनॉमिक्स नामक किताब की याद दिला दी जिसमें इसी तरह के संबंध जोड़े गए हैं।

वैसे पब्लिक टॉयलेट और मर्दाना कमज़ोरी की दवाइयों के रिश्ते के बारे में खुलासा करेंगे तो ज्ञान बढ़ेगा। थोड़ा मूढ़ हूँ :) आपकी कम शब्दों में कही गूढ़ बात समझ नहीं पाया।
लगभग 25 वर्ष पहले की बात है - मेरे एक मित्र लहक कर बता रहे थे कि कैसे एक जेण्ट्स टॉयलेट का प्रयोग विदेशी महिला को करते देखा था दिल्ली के भरे बाजार में। वहाँ महिलाओं के टॉयलेट थे ही नहीं।
उन्हे यह फनी लग रहा था और मुझे भारत में बेसिक सुविधाओं की कमी पर शर्म आ रही थी।
शर्म इतनी थी कि आप समझ सकते हैं - वह बात मुझे अब भी याद है। और सुविधायें बढ़ी नहीं होंगी जनसंख्या के अनुपात में।
काकेश said…
देखा!! ज्ञान जी ऎसी ही सुबह सुबह ज्ञान नही झाड़ते हैं.उनके और मित्रों के अनुभव भी उनमें शामिल हैं.तभी में कहूँ कि लिज....खैर जाने दीजिये वरना ज्ञान जी कहेंगे कि हम पीछे पड़ गये. :-)
रोचक!!
बेसिक फ़ंडे पे नज़र!1
आपको सलाम कि आपने आधी दुनिया को जगह दी!!

@काकेश भाई , ये ठीक बात नही, आप लिज़ को कुछ भी कहो चलेगा पन ये ज्ञान दद्दा और लिज़ का नाम एक साथ………………कोई लोचा है क्या…खैर हो तो भी जाने दो, दीवाली मनाने दो ज्ञान दद्दा को (लिज़)बोनस के साथ
Manisha said…
महिला ब्लागर में हमारा भी नाम जोड़ लीजिये

मनीषा
hindibaat.blogspot.com
मनीषा जी, जुड़ गया अच्छी बातों का ब्लॉग...
अनिल जी आपका धन्यवाद मेरे ब्लोग का लिंक देने के लिए। पर अगर ये सिर्फ महिला होने की वज़ह से है सो कृपया निकाल दे। मैं अपने आप को अगर पुरुषों से ज्यादा नही तो कमतर भी नही समझती। और मुझे जिस तरह महिलाओं पर लगी बन्दिशो से चिढ है , उतनी ही नफरत महिलायों के नाम पर मिलने वाली सुविधायों से भी। मैं गुलामी के आनंद और आज़ादी के खतरों से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हूँ। अगर रुप और तथ्य के हिस्साब से मेरी बातें आप को अच्छी लगती हो या किसी दूसरे को भी तभी मेरा लिंक डाले, अन्यथा हटा दे , आपका उपकार होगा!!!!!!!!!!!!!
स्वप्नदर्शी जी, ये तेवर ही आपकी ताकत को दिखा देते हैं और तथ्य, कथ्य व रूप के आधार ही आपके ब्लॉग को मैंने अपने ब्लॉग रोल में रखा है। बस सुविधा के लिए एक अलग श्रेणी बना ली। आप गौर करें मैंने रसोई जैसे ब्लॉग इसमें नहीं रखे हैं।
Udan Tashtari said…
दिलचस्प जानकारी -और हाँ, ब्लॉगरोल तो तुरंत लगाना है.आपने याद दिला दिया.
Dear Anilji,
If you realy like my blog than please include it in your favourate blogs, I hate ladies lines, ladies toilets, ladies politics..... (which means keep ladies out of the common space and compartmentalize them).
Otherwise sorry, please remove my blog.
आधी दुनिया की दस्तक नाम देने से ही आप सम्मान के पात्र हो जाते हैं.इससे स्पष्ट होता है कि हमारे सहयोग से ही पूरी दुनिया सम्भव है. अचानक वृंदावन लाल वर्मा जी की कुछ पंक्तियाँ याद आ गईं - " नारी का गौरव, सौन्दर्य, महत्त्व स्थिरता में है,जैसे उस नदी का जो बरसा के मटमैले, तेज़ प्रवाह के बाद शरद ऋतु में नीले जल वाली मंथर गतिमानिनी हो जाती है- दूर से बिल्कुल स्थिर , बहुत पास से प्रगतिशालिनी"
arbuda said…
बहुत बढिया अनिल जी. बहुत शोध किया है इस रोल को लगाने के लिये। नारी को इस प्रकार से सम्मान देने का अच्छा प्रयास है। शुक्रिया।

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