लगता है राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल जी यही कह रही हैं। आज दिल्ली में दीपावली के मौके पर आम सभा के दौरान उनकी यह फोटो उतारी पीटीआई के फोटोग्राफर सुभाव शुक्ला ने।
मुझे लगता है 'किसी से' शिकायत कर रही हैं; 'देखिए ये लोग पठाखा दिखा कर डरा रहे हैं. कहते हैं; 'भाषण देने का विचार हो तो भूल जाइये नहीं तो हम पटाखा.....'........:-)
दीपावली की अर्द्धरात्रि हो गई है... राष्ट्रपति जी की उठी उंगली और कुछ बोलती तस्वीर देख कर लगता है जैसे कह रही हों कि किसी पर एक उंगली उठे तो बाकि आपनी तरफ होती हैं. दीपावली के शुभ पर्व पर शुभ कामनाएँ !
अक्सर खुद से बात करता हूं तो बड़ी संजीदगी से सोचता हूं कि मोदी सरकार, भाजपा व संघ को आखिर भारत से इतनी दुश्मनी क्यों है ? आखिर क्यों वे भारत को हर स्तर पर खोखला करते जा रहे हैं ? भारत आज अंदर से जितना विभाजित है, उतना तो शायद बंटवारे के वक्त भी नहीं था। मोदी सरकार ने दो साल पहले अचानक लॉकडाउन लगाकर लाखों मजदूरों को मरने के लिए क्यो छोड़ दिया ? अभी उसने यूक्रेन में फंसे हज़ारों छात्रो को क्यों इस कदर असहाय छोड़ दिया ? आखिर क्यों वह ऊपर से दिखावा करती है, मगर अंदर से तोड़ने का काम करती है ? इसका सबसे बड़ा सबूत है कि नोटबंदी में उसे अर्थव्यवस्था को फॉर्मल बनाने के नाम पर करोड़ों छोटी इकाइयों व उद्यमियों को बरबाद कर दिया। जिस इन्फॉर्मल क्षेत्र या छोटे-छोटे कारोबारियों का योगदान 2016 से पहले तक देश की अर्थव्यवस्था में 80-82 प्रतिशत हुआ करता था, वह अब घटकर मात्र 18-20 प्रतिशत रह गया है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था की कमर ऐसी टूटी कि सारा आर्थिक आधार ही चकनाचूर हो गया। असल में मोदी सरकार, भाजपा व संघ के इस भारत-विरोधी चरित्र का स्रोत उस आक्रमणकारी आर्य या ब्राह्मण धारा में है जो हमारे जम्बू द्वीप...
संत कबीर का यह दुर्लभ पद पेश कर रहा हूं। मुझे यह न तो किताबों में दिखा और न ही इंटरनेट पर। मेरी पत्नी बताती हैं कि वे जब छोटी थीं तो उनकी मां इसे घर के झूले पर बैठे गा-गाकर सुनाती थी। उन्हीं की मां की डायरी में ये पद लिखा हुआ मिल गया तो मैंने सोचा क्यों न आप सभी से बांट लिया जाए। पद में कबीर की उलटबांसियों जैसी बातें कही गई हैं। मैं हर पद पर चौंक कर कहता रहा – अरे, ये कैसे संभव है। तो आप भी चौंकिए और चमत्कृत होइए। हां, इसमें कोई अशुद्धि हो तो ज़रूर बताइएगा। गुरु ने मंगाई भिक्षा, चेला झोली भरके लाना हो चेला झोली भरके लाना... पहली भिक्षा आटा लाना, गांव बस्ती के बीच न जाना नगर द्वार को छोडके चेला, दौरी भरके आना हो चेला झोली भरके लाना... दूसरी भिक्षा पानी लाना, नदी तलाब के पास न जाना कुआं-वाव को छोड़के चेला, तुम्बा भरके लाना हो चेला झोली भरके लाना... तीसरी भिक्षा लकड़ी लाना, जंगल-झाड़ के पास न जाना गीली-सूखी छोड़के चेला, भारी लेके आना हो चेला झोली भरके लाना.... चौथी भिक्षा अग्नि लाना, लोह-चकमक के पास न जाना धुनी-चिता को छोड़के चेला, धगधगती ले आना हो चेला झोली भरके लाना... कहत कबीर सुनो भई...
साल भर पहले ब्लॉग बनाया था तो यही सोचा था कि बरसों से दबे हुए सारे उदगार निकाल डालूंगा। अनलिखी कहानियां और उपन्यास अब मेरी इस चलती-फिरती डायरी में दर्ज हो जाएंगे। डायरी सार्वजनिक है तो क्या? जिसको पढ़ना है, पढ़ लेगा। नहीं पढ़े तो अच्छा ही है। मुझ पर क्या फर्क पड़ेगा? अपना एकांतिक लेखन चलता रहेगा। साल-दो साल में जब रचनाएं सज-संवर तक पूरी तरह तैयार हो जाएंगी, तब किसी प्रकाशक के पास जाऊंगा और रचनाओं में क्योंकि नायाब अनुभव होंगे, इसलिए शायद ही कोई प्रकाशक इन्हें छापने से इनकार करेगा। अगर, हिंदी प्रकाशकों ने इनकार भी कर दिया तो अंग्रेज़ी प्रकाशक तो हैं ही, जिनके लिए अपनी किताबों का अंग्रेज़ी अनुवाद खुद कर दूंगा या किसी से पैसे देकर करवा लूंगा। लेकिन साल भर होने पर पूरा नज़रिया ही बदल गया है। अनलिखी कहानियों और उपन्यास के नोट्स अब भी पुरानी डायरियों में जहां-तहां बिखरे पड़े हैं। अब तो मन में चलते-फिरते, आते-जाते जो स्फुट विचार आते हैं, उन्हें ही सूत्रबद्ध करने की उतावली लगी रहती है। कभी अपने हिसाब से कोई अच्छा विश्लेषण लिख दिया या जानकारी दे दी और उस पर खुदा न खास्ता कई घंटों बाद भी कोई टिप...
Comments
मुझे लगता है 'किसी से' शिकायत कर रही हैं; 'देखिए ये लोग पठाखा दिखा कर डरा रहे हैं. कहते हैं; 'भाषण देने का विचार हो तो भूल जाइये नहीं तो हम पटाखा.....'........:-)
आपको दीपावली की ढेर सारी शुभ कामनायें.
आपने सही चित्र को उपयुक्त संवाद दिया है। इस समन्वय के लिए आपको,चित्र खींचक और चित्रवालों को मौन बधाई।
दीपावली की शुभकामनायें.
दीपावली के शुभ पर्व पर शुभ कामनाएँ !