समय जब सचमुच ठहर जाता है
बहुत पुरानी बात है। राजा कुकुद्मी की एक बेइंतिहा खूबसूरत कन्या थी, जिसका नाम था रेवती। रेवती से शादी करनेवालों की लाइन लगी हुई थी। लेकिन राजा की चिंता यह थी कि रेवती के लिए उपयुक्त वर कैसे चुना जाए। राजा अपनी यह चिंता लेकर रेवती के साथ ब्रह्मलोक में सृष्टि-रचयिता ब्रह्मा तक जा पहुंचे। ब्रह्मा उस वक्त किसी काम में फंसे हुए थे। उन्होंने राजा से ‘एक पल’ इंतज़ार करने को कहा। ब्रह्मा जब काम खत्म करके आए तो राजा कुकुद्मी ने अपनी समस्या बयां की। इस पर ब्रह्मा हंसकर बोले – इंतज़ार के इन चंद पलों में तो धरती पर कई युग बीत चुके होंगे और इस दरम्यान रेवती के उपयुक्त वर मरखप चुके होंगे। उन्होंने राजा कुकुद्मी को सलाह दी कि वे धरती पर वापस जाएं और रेवती का विवाह कृष्ण के बड़े भाई बलराम से कर दें।
इस पौराणिक कथा और ब्लैक-होल की अवधारणा में गज़ब की समानता है। कैसे, इसे समझने के लिए पहले जानते हैं कि ब्लैक-होल कहते किसे हैं। ब्लैक-होल ऐसा सघन ठोस पिंड है, जिसका गुरुत्वाकर्षण बल प्रकाश को भी अपनी सतह से पार नहीं होने देता। किसी पिंड का गुरुत्व बल इससे नापा जाता है कि किसी वस्तु को उसकी सतह से ऊपर फेंकना कितना कठिन है। आइए, ब्लैक-होल और धरती की तुलना करते हैं। अगर कोई खिलाड़ी फुटबॉल को हवा में उछालता है तो वह धरती के गुरुत्व बल के चलते नीचे आ गिरती है। वह जितनी ज़ोर से मारता है, फुटबॉल उतना ऊपर तक जाती है, लेकिन आखिरकार नीचे ही आ गिरती है। क्या गति की ऐसी कोई सीमा है जिसके बाद बॉल उड़ती ही जाएगी और लौटकर नीचे नहीं आएगी?
बारहवीं क्लास का गणित भी इसका जवाब दे देता है कि अगर 11 किलोमीटर प्रति सेकंड से ज्यादा रफ्तार से बॉल को फेंका जाए तो ऐसा संभव है। वैसे, इतनी गति से फुटबॉल को उछालना पेले और बेखम के भी वश की बात नहीं है। अंतरिक्ष-यान ऐसी ही गति से धरती से बाहर भेजे जाते हैं। उनकी इस गति को पलायन गति कहते हैं और यह किसी पिंड के गुरुत्वाकर्षण बल से तय होती है। जैसे, सूरज पर पलायन गति 42 किलोमीटर प्रति सेकंड है। इसके विपरीत ब्लैक-होल पर पलायन गति, प्रकाश की गति यानी तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकंड मानी जाती है।
अगर धरती को दबाकर उसके एक चौथाई आकार का कर दिया जाए तो इस पर पलायन गति दो-गुनी हो जाएगी। धरती पर रहनेवालों का वजन सोलह गुना हो जाएगा। अगर धरती को और दबाते रहा जाए तो आखिकार यह ब्लैक-होल बन जाएगी और तब इसका व्यास होगा महज 18 मिलीमीटर। सूरज अगर ब्लैक-होल बनेगा तो उसका व्यास 14 लाख किलोमीटर से घटकर केवल छह किलोमीटर रह जाएगा। लेकिन ऐसा कभी होनेवाला नहीं है क्योंकि आंतरिक दबाओं के चलते न तो धरती और न ही सूरज के सिकुड़ते जाने की कोई गुंजाइश है। खगोलशास्त्रियों के मुताबिक वही पिंड ब्लैक-होल बन सकता है जिसमें सिर्फ और सिर्फ गुरुत्वाकर्षण बल हो और उसे लगातार सिकुड़ते जाने से रोकनेवाला कोई दबाव उसके भीतर काम न कर रहा हो। लेकिन अगर ऐसा कोई ब्लैक-होल मिल जाए तो उससे हम राजा कुकुद्मी और ब्रह्मा की कथा को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
मान लीजिए ए और बी काफी दूर पर बैठे दो प्रेक्षक हैं जो एक दूसरे को देख नहीं सकते, लेकिन प्रकाश के सिग्नल भेजकर बराबर संपर्क में हैं। इनमें से बी ऐसे पिंड पर बैठा है जो लगातार सिकुड रहा है। दोनों में तय होता है कि वे हर मिनट पर एक-दूसरे को सिग्नल भेजेंगे। शुरुआत में सब कुछ मज़े से चलता रहता है। लेकिन वक्त गुजरने के साथ ए को पता चलेगा कि बी से उसे हर मिनट पर सिग्नल नहीं मिल रहे हैं। धीरे-धीरे बी के सिग्नलों का अंतराल घंटे, दिन और महीने तक जा पहुंचता है। फिर एक दिन ऐसा आ जाएगा जब ए का इंतज़ार इतना बढ़ जाएगा कि वह बी से किसी सिग्नल के आने की उम्मीद ही छोड़ देगा।
इस रहस्य की गुत्थी को हम आइंस्टाइन के आम सापेक्षता सिद्धांत से सुलझा सकते हैं। इस सिद्धांत के मुताबिक जब भी किसी क्षेत्र में गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ता है तो वहां समय का प्रवाह धीमा पड़ जाता है। बी के पिंड के सिकुड़ते जाने से उसकी घड़ी लगातार ए की घड़ी से धीमी पड़ती चली जाती है। होता यह है कि बी तो एकदम नियम से अपनी घड़ी के हिसाब से हर मिनट पर ए को सिग्नल भेजता है, लेकिन ए के लिए यह अंतराल मिनट से ज्यादा होता चला जाता है। इस प्रभाव को समय-विस्तारण या वितनन (Time-dilatation) कहते हैं। जब वह पिंड ब्लैक-होल बन जाता है तो समय-वितनन अनंत पर पहुंच जाता है और बी का समय एकदम ठहर जाता है जिसका पता बी को नहीं, ए को चलता है।
इसलिए कहा जा सकता है कि ब्रह्मलोक ब्लैक-होल बनने की कगार पर पहुंच चुका था और राजा कुकुद्मी को समय-वितनन के फेर में पड़ना पड़ा था। वैसे हम में से बहुतों के लिए ब्लैक-होल अब भी बहुत दूर की कौड़ी हैं। लेकिन समय कैसे ठहर जाता है, इसका एहसास तो हम अपने सरकारी दफ्तरों के सूरतेहाल को देखकर कर ही सकते हैं।
- जयंत नारलीकर का टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित लेख
इस पौराणिक कथा और ब्लैक-होल की अवधारणा में गज़ब की समानता है। कैसे, इसे समझने के लिए पहले जानते हैं कि ब्लैक-होल कहते किसे हैं। ब्लैक-होल ऐसा सघन ठोस पिंड है, जिसका गुरुत्वाकर्षण बल प्रकाश को भी अपनी सतह से पार नहीं होने देता। किसी पिंड का गुरुत्व बल इससे नापा जाता है कि किसी वस्तु को उसकी सतह से ऊपर फेंकना कितना कठिन है। आइए, ब्लैक-होल और धरती की तुलना करते हैं। अगर कोई खिलाड़ी फुटबॉल को हवा में उछालता है तो वह धरती के गुरुत्व बल के चलते नीचे आ गिरती है। वह जितनी ज़ोर से मारता है, फुटबॉल उतना ऊपर तक जाती है, लेकिन आखिरकार नीचे ही आ गिरती है। क्या गति की ऐसी कोई सीमा है जिसके बाद बॉल उड़ती ही जाएगी और लौटकर नीचे नहीं आएगी?
बारहवीं क्लास का गणित भी इसका जवाब दे देता है कि अगर 11 किलोमीटर प्रति सेकंड से ज्यादा रफ्तार से बॉल को फेंका जाए तो ऐसा संभव है। वैसे, इतनी गति से फुटबॉल को उछालना पेले और बेखम के भी वश की बात नहीं है। अंतरिक्ष-यान ऐसी ही गति से धरती से बाहर भेजे जाते हैं। उनकी इस गति को पलायन गति कहते हैं और यह किसी पिंड के गुरुत्वाकर्षण बल से तय होती है। जैसे, सूरज पर पलायन गति 42 किलोमीटर प्रति सेकंड है। इसके विपरीत ब्लैक-होल पर पलायन गति, प्रकाश की गति यानी तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकंड मानी जाती है।
अगर धरती को दबाकर उसके एक चौथाई आकार का कर दिया जाए तो इस पर पलायन गति दो-गुनी हो जाएगी। धरती पर रहनेवालों का वजन सोलह गुना हो जाएगा। अगर धरती को और दबाते रहा जाए तो आखिकार यह ब्लैक-होल बन जाएगी और तब इसका व्यास होगा महज 18 मिलीमीटर। सूरज अगर ब्लैक-होल बनेगा तो उसका व्यास 14 लाख किलोमीटर से घटकर केवल छह किलोमीटर रह जाएगा। लेकिन ऐसा कभी होनेवाला नहीं है क्योंकि आंतरिक दबाओं के चलते न तो धरती और न ही सूरज के सिकुड़ते जाने की कोई गुंजाइश है। खगोलशास्त्रियों के मुताबिक वही पिंड ब्लैक-होल बन सकता है जिसमें सिर्फ और सिर्फ गुरुत्वाकर्षण बल हो और उसे लगातार सिकुड़ते जाने से रोकनेवाला कोई दबाव उसके भीतर काम न कर रहा हो। लेकिन अगर ऐसा कोई ब्लैक-होल मिल जाए तो उससे हम राजा कुकुद्मी और ब्रह्मा की कथा को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
मान लीजिए ए और बी काफी दूर पर बैठे दो प्रेक्षक हैं जो एक दूसरे को देख नहीं सकते, लेकिन प्रकाश के सिग्नल भेजकर बराबर संपर्क में हैं। इनमें से बी ऐसे पिंड पर बैठा है जो लगातार सिकुड रहा है। दोनों में तय होता है कि वे हर मिनट पर एक-दूसरे को सिग्नल भेजेंगे। शुरुआत में सब कुछ मज़े से चलता रहता है। लेकिन वक्त गुजरने के साथ ए को पता चलेगा कि बी से उसे हर मिनट पर सिग्नल नहीं मिल रहे हैं। धीरे-धीरे बी के सिग्नलों का अंतराल घंटे, दिन और महीने तक जा पहुंचता है। फिर एक दिन ऐसा आ जाएगा जब ए का इंतज़ार इतना बढ़ जाएगा कि वह बी से किसी सिग्नल के आने की उम्मीद ही छोड़ देगा।
इस रहस्य की गुत्थी को हम आइंस्टाइन के आम सापेक्षता सिद्धांत से सुलझा सकते हैं। इस सिद्धांत के मुताबिक जब भी किसी क्षेत्र में गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ता है तो वहां समय का प्रवाह धीमा पड़ जाता है। बी के पिंड के सिकुड़ते जाने से उसकी घड़ी लगातार ए की घड़ी से धीमी पड़ती चली जाती है। होता यह है कि बी तो एकदम नियम से अपनी घड़ी के हिसाब से हर मिनट पर ए को सिग्नल भेजता है, लेकिन ए के लिए यह अंतराल मिनट से ज्यादा होता चला जाता है। इस प्रभाव को समय-विस्तारण या वितनन (Time-dilatation) कहते हैं। जब वह पिंड ब्लैक-होल बन जाता है तो समय-वितनन अनंत पर पहुंच जाता है और बी का समय एकदम ठहर जाता है जिसका पता बी को नहीं, ए को चलता है।
इसलिए कहा जा सकता है कि ब्रह्मलोक ब्लैक-होल बनने की कगार पर पहुंच चुका था और राजा कुकुद्मी को समय-वितनन के फेर में पड़ना पड़ा था। वैसे हम में से बहुतों के लिए ब्लैक-होल अब भी बहुत दूर की कौड़ी हैं। लेकिन समय कैसे ठहर जाता है, इसका एहसास तो हम अपने सरकारी दफ्तरों के सूरतेहाल को देखकर कर ही सकते हैं।
- जयंत नारलीकर का टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित लेख
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