सड़क बनाओ, नक्सली मिटाओ
अगर आप देश के किसी दूरदराज के ऐसे इलाके में रहते हैं, जहां तक पक्की सड़क नहीं पहुंची है और वहां तक आप सड़क पहुंचाना चाहते हैं तो इसके लिए मेरे पास एक आजमाया हुआ नुस्खा है। आप खबर फैला दीजिए कि उस इलाके में नक्सली सक्रिय हो गए हैं। फिर आपसी झगड़े में हुई मौतों के बारे में खबर छपवा दीजिए कि ये नक्सलियों की करतूत है। ये सिलसिला कुछ महीनों तक चलाते रहिए। फिर देखिए कि वहां पक्की सड़क कैसे नहीं पहुंचती।
ये मेरा देखा-परखा नुस्खा है, बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश के कई इलाकों का अनुभव मैं जानता हूं। और, शायद मेरी राय से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इत्तेफाक रखते हैं। तभी तो पीएमओ ने तीन राज्यों, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों को जोड़नेवाली 1,729 किलोमीटर की सड़क परियोजना को हरी झंडी दे दी है। ये सड़क आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा से शुरू होकर उड़ीसा में मलकागिरी, कोरापुट, रायगडा, गजपति, गंजम, कांधामाल, बोलांगीर, अनुगुल, संभलपुर, देवगढ़, क्योंझर और मयूरभंज होते हुए झारखंड में रांची तक पहुंचेगी। रास्ते में पड़नेवाले तमाम आदिवासी इलाके नक्सली हिंसा से प्रभावित हैं। इसमें से 1,219 किलोमीटर सड़क उड़ीसा में पड़ेगी और दो लेन की होगी, जिसका 104.5 किलोमीटर हिस्सा गांवों से होकर गुजरेगा। उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार का दावा है कि इससे आदिवासी इलाके राज्य के दूसरे इलाकों के करीब आ जाएंगे और उनका विकास होगा।
नक्शे से आप देख सकते हैं कि इस ‘कॉरीडोर’ से एक और नक्सल प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ सटा हुआ है। इसलिए वहां के भी आदिवासी इलाकों को इससे जोड़ने में शायद ज्यादा देर न लगे। इसके बाद किसी दिन महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और मध्य प्रदेश के बालाघाट, मांडला, डिनडोरी और सिधि इलाकों को भी इस कॉरीडोर से जोड़ दिया जाएगा। इस अभियान के पूरा होने पर नक्सल प्रभावित इलाकों तक विकास की गाड़ी पहुंचे या न पहुंचे, अर्द्धसैनिक बलों की गाड़ियां जरूर आसानी से पहुंचने लगेंगी।
उम्मीद है कि दूरदराज के इलाकों तक पक्की सड़कें पहुंचाने का ये नुस्खा आपको जरूर पसंद आएगा।
(खबर का स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस, 6 जून 2007)
ये मेरा देखा-परखा नुस्खा है, बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश के कई इलाकों का अनुभव मैं जानता हूं। और, शायद मेरी राय से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इत्तेफाक रखते हैं। तभी तो पीएमओ ने तीन राज्यों, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और झारखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों को जोड़नेवाली 1,729 किलोमीटर की सड़क परियोजना को हरी झंडी दे दी है। ये सड़क आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा से शुरू होकर उड़ीसा में मलकागिरी, कोरापुट, रायगडा, गजपति, गंजम, कांधामाल, बोलांगीर, अनुगुल, संभलपुर, देवगढ़, क्योंझर और मयूरभंज होते हुए झारखंड में रांची तक पहुंचेगी। रास्ते में पड़नेवाले तमाम आदिवासी इलाके नक्सली हिंसा से प्रभावित हैं। इसमें से 1,219 किलोमीटर सड़क उड़ीसा में पड़ेगी और दो लेन की होगी, जिसका 104.5 किलोमीटर हिस्सा गांवों से होकर गुजरेगा। उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार का दावा है कि इससे आदिवासी इलाके राज्य के दूसरे इलाकों के करीब आ जाएंगे और उनका विकास होगा।
नक्शे से आप देख सकते हैं कि इस ‘कॉरीडोर’ से एक और नक्सल प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ सटा हुआ है। इसलिए वहां के भी आदिवासी इलाकों को इससे जोड़ने में शायद ज्यादा देर न लगे। इसके बाद किसी दिन महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और मध्य प्रदेश के बालाघाट, मांडला, डिनडोरी और सिधि इलाकों को भी इस कॉरीडोर से जोड़ दिया जाएगा। इस अभियान के पूरा होने पर नक्सल प्रभावित इलाकों तक विकास की गाड़ी पहुंचे या न पहुंचे, अर्द्धसैनिक बलों की गाड़ियां जरूर आसानी से पहुंचने लगेंगी।
उम्मीद है कि दूरदराज के इलाकों तक पक्की सड़कें पहुंचाने का ये नुस्खा आपको जरूर पसंद आएगा।
(खबर का स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस, 6 जून 2007)
Comments
शुक्रिया
आपने तो सडक माफिआ को एक नुस्खा दे दिया.
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम्