राजनीति में व्यक्ति की बस इतनी अहमियत होती है कि अवाम के कौन-से तबके उसमें अपनी चाहतों का अक्श देखते हैं। लोगों की चाहतें जिस नेता या पार्टी से कट जाती हैं, वो नेता या पार्टी जड़विहीन पेड़ की तरह सूख जाती है। अब इनके ऊपर नेताओं के भी नेता होते हैं, जैसे सोनिया गांधी और अमर सिंह या अरुण जेटली आदि-इत्यादि। फिर नेताओं के मनोनीत नेता होते हैं जैसे मनमोहन सिंह, राहुल गांधी या अखिलेश सिंह यादव आदि-इत्यादि। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज वामपंथियों और संघ के ज्यादातर कार्यकर्ताओं को छोड़ दें तो जो भी राजनीति में हैं, उनका मकसद सत्ता की rental value का दोहन करना है। उनकी कमाई करोड़ की घात दस की रफ्तार से बढ़ती है। करोड़ से शुरू होकर वह साल-दर-साल दस करोड़, सौ करोड़ और हज़ार करोड़ का आंकड़ा पार करती जाती है।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती भी इसका अपवाद नहीं हैं। लेकिन दो मायनों में वो देश के बाकी नेताओं से भिन्न हैं। पहला यह कि मायावती आज देश की इकलौती ऐसी नेता हैं जिनमें उत्तर भारत का दलित और अति-पिछड़ा समुदाय अपनी ख्वाहिशों, अपने मान-सम्मान का अक्श देखता है और इसी वजह से वो सबसे बड़े जनाधार वाली नेता हैं। दूसरा अंतर यह है कि मायावती आज देश की सबसे ज्यादा टैक्स देनेवाली नेता हैं। यही नहीं, वो देश के सबसे बड़े बीस करदाताओं की सूची में शुमार हैं। उन्होंने साल 2007-08 में 26.26 करोड़ रुपए का टैक्स भरा है। उन्होंने फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार से दोगुना और सचिन तेंदुलकर या कुमारमंगलम बिड़ला से तीन गुना आयकर दिया है। देश का कर-संग्रह बढ़ाने की कसमें खानेवाले हमारे वित्त मंत्री पी. चिदंबरम क्या बताएंगे कि देश ही नहीं, दुनिया के सबसे अमीरों में शुमार मुकेश और अनिल अंबानी हमारे 200 बड़े करदाताओं की सूची तक में क्यों नहीं शामिल हैं?
हमारी सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला ज़रूर दर्ज किया था। लेकिन जांच इतनी लचर हुई कि वो अदालत से बरी हो चुके हैं। क्या सचमुच ऐसा है कि मायावती सबसे ज्यादा टैक्स देने के नाते आज देश की सबसे अमीर राजनेता हैं और अमर सिंह, मुलायम, लालू, शरद पवार, सोनिया गांधी, शिवराज पाटिल सरीखे नेता और विलासराव देशमुख, बाल ठाकरे, करुणानिधि, जयललिता, चंद्रबाबू नायडू या वाईएसआर रेड्डी जैसे क्षत्रप उनकी बनिस्बत काफी गरीब हैं? बात गले नहीं उतरती। आज राज्यसभा से लेकर लोकसभा का चुनाव लड़नेवाले हर नेता के लिए अपनी संपत्ति घोषित करना अनिवार्य है और गलतबयानी पर उनकी सदस्यता खत्म हो सकती है। लेकिन जब सीबीआई अपनी ‘सघन’ जांच के बावजूद प्रत्यक्ष का प्रमाण नहीं जुटा पाती तो कौन इन नेताओं की घोषणाओं की असलियत पता लगा पाएगा?
मायावती घोषित करती हैं कि उनकी आय का स्रोत लोगों की तरफ से मिले ‘उपहार’ हैं। लेकिन बाकी नेता तो इन उपहारों का जिक्र तक नहीं करते। ऊपर से हर परियोजना में उनका अपना ‘कट’ फिक्स रहता है, जिससे उन्हें हर साल करोड़ों की काली कमाई होती है। काली इसलिए क्योंकि उनका यह कैश इनफ्लो कहीं दर्ज नहीं होता, इस पर वो कोई टैक्स नहीं देते। आज राजनीतिक पार्टियां देश में ऐसे काले धन का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जब राजनीति के हम्माम में सभी नंगे हैं, सभी भ्रष्ट हैं, तो हमारे आपके सामने कम और ज्य़ादा भ्रष्ट के बीच चुनाव का ही विकल्प रह जाता है। और, मुझे यह कहने में कोई शर्म नहीं है कि मायावती आज इन भ्रष्टन के बीच सबसे कम भ्रष्ट नेता हैं। उन्होंने सबसे ज्यादा टैक्स देकर साबित कर दिया कि हमारे राजनेताओं में वो सबसे ज्यादा ‘ईमानदार’ हैं। क्या मेरी ‘political correctness’ पर आपको कोई शक है?
फोटो सौजन्य: Sator Arepo
मतदाता जागरूकता गीत
1 month ago
12 comments:
थोड़ा सा है... जिसे मैं शक तो कतई नही कहूँगा.... सब बातें सही लेकिन जब सारे नेता अपनी सम्पति घोषित नही कर रहे तो ये कैसे मान लिया जाए की बहन जी ने घोषित किया उसके बाद कुछ भी अघोषित नही बचा है... मेरे पास कोई प्रमाण नही है...आपके पास है..प्रमाण?
बहनजी की तो बात ही अलग है....वे एक कार्पोरेट घराने की तरह पार्टी को चला रही हैं...खुलेआम पैसा मांगती हैं और लाखों-करोड़ों में टिकट बांटती हैं
सच्चाई को बहुत दिनो तक दबाया नहीं जा सकता। मायावती पहले से हीं अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं से एलान करती आयी हैं कि वे उन्हें चंदा दे। क्योंकि कोई उद्योग घराना उन्हें चंदा नही देगा। मायवती की संपत्ति लगभग 80 करोड़ होगी जो आज कालाबाजारी में डूबे नेताओं के आधे प्रतिशत भी नहीं होगा। सत्ता में बैठे लोग अपराध और भ्रष्टाचार की जांच सही सही नहीं करते। मायावती अपने समर्थकों से कहती है कि आय से अधिक आमदनी की कार्रवाई सिर्फ पिछड़े-दलित नेताओं के खिलाफ होती है बाकि के नहीं। इसलिये हजार आरोंपों के बावजूद लालू-मुलायम-मायावती कमजोर होने की वजाय और ताकतवर तरीके से राजनीति में बने हुए हैं। प्रशासनिक सत्ता में बैठे लोगों को एक नजरीयें से देखना होगा।
मायावती जी महान है. उन्होंने टैक्स दिया है जी.
आप सही कह रहे हैं अनिल जी मायावती को कम भ्रष्ट नेता कहा जा सकता है,मगर राजेश रोशन जी की बात भी सही है हमारे पास उनकी आमदनी का सही आंकड़ा भी तो नही है,जो यह समझें की उन्होने पूरा टैक्स भरा है,मगर इसमे कोई भी शक नही कि देश के जाने-माने धुरंधर अम्बानी व मित्तल भाई जहाँ अमीरों की गिनती में आते है मायावती वहाँ नही है मगर टैक्स भरने में उनसे ऊपर है.
नेता अभिनेता कर्म एक विभिन्न वेशभूषा! हम सभी यही मानते हैं, सही या ग़लत तो दूर की बात है!
मैं तो प्रभावित हूं टेक्स अदायगी से।
जब बात राजनीति के खिलाड़ियों की हो रही हो तो भ्रष्टाचार के पैमाने को टैक्स अदायगी से जोड़कर देखना धोखा दे सकता है।
वैसे यदि नेतागण टैक्स के नाम पर कुछ दे रहे हैं तो अच्छा ही है। अच्छा चिन्तन है।
सहमत - वैसे बिजनेस भी नेतागीरी का तार्किक विस्तार है [ चुनाव के खर्चे?] - मनीष
सब माया है सर।
mujhe to rajniti bakwas chij lagti hai.kuchh kahana hi bekar hai in netaon ko
किसी राजनेता में हिम्मत नहीं है बहनजी से मुक़ाबला करने का. पता नहीं बाक़ी टैक्स देते हैं भी या नहीं.
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